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हरे भरे इलाके और पापुलेशन बेस स्थानो में हमेशा रहता है दो से तीन डिग्री का फर्क

हवा में तेजी से बढ़ रहे एरोसोल पार्टिकल, इससे बढ़ रही है स्किन डिजीज

ALLAHABAD: लगातार बढ़ती आबादी और कम होते जंगल जीवन के विनाश का कारण बन रहे हैं। जल, जंगल और जमीन का उजड़ना कुछ इस तरह से जारी है कि हवा और पानी सब प्रदूषित हो रहे हैं। जाड़ा, गर्मी और बरसात समय से नहीं पड़ रहे। इलाहाबाद में पिछले कुछ वर्षो से बरसात औसत से कम हो रही है। गर्मी की तीव्रता इतनी ज्यादा है कि आम आदमी इसे झेल नहीं पा रहा। कभी ठंडी ज्यादा तो कभी इतनी कम पड़ रही है कि लोगों का इसमें एडजस्ट कर पाना मुश्किल हो रहा है।

खतरे में सिटी की 75 फीसदी जनता

पर्यावरण विशेषज्ञ इसके पीछे का एकमात्र कारण लगातार हरियाली का कम होना और प्रदूषण के बढ़ते जा रहे लेवल को मान रहे हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के प्रो। एआर सिद्दकी कहते हैं कि सिटी तेजी से सफाचट मैदान बनती जा रही है। पुराने शहर में रहने वाली 75 फीसदी पापुलेशन के बीच हरियाली लगातार कम होती जा रही है। नया शहर स्मार्ट सिटी के दायरे में है। लेकिन इसका डेवलपमेंट भी पर्यावरण के अनुकूल नहीं हो रहा। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की स्थित का आंकलन वहां के टेम्परेचर, आबोहवा, जल एवं वायु प्रदूषण, वाटर टेबिल, वेकिल पल्यूशन, गार्बेज मैनेजमेंट इत्यादि चीजों से किया जाता है।

घट रहा वनस्पति आवरण

प्रोफेसर एआर सिद्दकी ने कहा कि 10 लाख से ऊपर की आबादी वाले मेट्रोपोलिटन सिटी में शामिल हो चुके इलाहाबाद का जनसंख्या घनत्व देखें तो इसके मुकाबले वनस्पति आवरण लगातार कम हो रहा है। उन्होंने कहा कि सड़क का चौड़ीकरण इतने बेतरतीब तरीके से हो रहा है कि या तो पेड़ पौधे नष्ट कर दिये जा रहे हैं या उनकी प्रोडिक्टिविटी ही खत्म हो जा रही है। उन्होंने कहा कि सालिड वेस्ट मैनेजमेंट समेत एनवायरमेंट की मानिटरिंग का कोई सिस्टम ही मौजूद नहीं है।

खतरे का संकेत है क्लामेट चेंज रिपोर्ट

सामाजिक विज्ञान और मनोविज्ञान के जानकार वरिष्ठ प्रोफेसर ए। सत्यनारायण कहते हैं कि लोगों का मानसिक संतुलन ठंडे स्थानो पर अनुकूल होता है। खुले और पेड़ पौधों से भरे इलाकों और खड़ंजा बनते जा रहे शहर की तुलना करें तो दोनो स्थानो पर दो से तीन डिग्री तापमान का अंतर मिलता है। गौरतलब है कि इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अपनी रिपोर्ट में इलाहाबाद समेत दूसरे शहरों के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस के अंतर का दावा किया है।

इन बातों पर करें गौर

16

लाख है इलाहाबाद सिटी की आबादी

2.19

लाख मकान हैं शहरी एरिया में

70.5

स्क्वॉयर किलोमीटर में निवास करती है यह आबादी

15000

लोग रहते हैं एक स्क्वॉयर किमी। में पुराने शहर में

5000

हजार लोग रह रहे हैं नये शहर में एक स्कवायर किलोमीटर

75

प्रतिशत आबादी पुराने शहर में निवास कर रही है

473

ग्राम कूड़ा एक आदमी एक दिन में निकालता है

7,56,800

किलोग्राम कूड़ा निकलता है प्रतिदिन

04

ग्राम पालीथीन एक आदमी एक दिन में निकालता है

6400

किलोग्राम पालीथीन एक दिन में निकल रहा है

140

लीटर पानी की है औसत जरूरत एक आदमी के लिए

2011 में मेट्रोपोलिटन सिटी बना था इलाहाबाद

1901 में दो सिटी थे मेट्रोपोलिटन

1951 में चार शहर थे शामिल

1981 में 12 शहर थे शामिल

1991 में 23 शहर थे शामिल

2001 में 35 शहर थे शामिल

2011 में 53 मेट्रोपोलिटन शहर में शामिल हो गया इलाहाबाद

हवा में लटके एरोसोल पार्टिकल की संख्या बढ़ी है। इससे स्किन डिजीज के मामले भी बढ़ रहे हैं। पेड़ पौधों की प्रोडिक्टिविटी कम होना चिंता का विषय है। स्मार्ट सिटी का प्लान तब सक्सेसफुल माना जायेगा, जब डेवलपमेंट पर्यावरण के अनुकूल हो।

प्रो। एआर सिद्दीकी,

ज्योग्राफी डिपार्टमेंट इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

ठंडी जगहों पर लोग मानसिक सुकून ज्यादा महसूस करते हैं। हम ऐसे हालात पैदा कर रहे हैं कि लोग भयंकर गर्मी के दिनो में हिल स्टेशंस की ओर निकल जाते हैं। पर्यावरण का नकारात्मक असर लोगों के मानसिक रूप से परेशान कर रहा है। यह चिंता की बात है।

प्रो। ए सत्यनारायण,

सामाजिक विज्ञान एवं मनोविज्ञान विशेषज्ञ