- देश में 20 परसेंट नवजात सांस नहीं ले पाने से मरते हैं

- पहले मिनट में सांस न ले पाने की स्थिति में आर्टिफिशियल सांस से मिलती है हेल्प

- एनएनएफ वर्कशॉप में दस ट्रेनर कर रहे हैं डॉक्टरों को ट्रेन

PATNA : देश में हर साल सात लाख अस्सी हजार बच्चे मरते हैं और इसमें दस परसेंट बिहार के हैं। ऐसे बच्चों में ख्0 परसेंट बच्चे ऐसे हैं जिनकी मौत सांस लेने की तकलीफ के कारण होती है। इस प्रकार की स्थिति में कैसे काम करें और क्या प्रोटोकॉल को फॉलो करना चाहिए। इसी कंसर्न को लेकर नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम की ओर से एक वर्कशॉप का आयोजन होटल पाटलिपुत्रा अशोक में किया गया। फोरम के सेक्रेटरी जेनरल डॉ विक्रम दत्ता ने कहा कि अगर जन्म के पहले मिनट तक बच्चे सांस न ले पाएं तो उसे आर्टिफिशियल ऑक्सीजन का सपोर्ट दिया जाता है। साथ ही अन्य संबंधित पक्षों के बारे में भी बताया जाता है। लेकिन बिना स्किल ट्रांसफर के लक्ष्य पाना मुश्किल है।

ट्रेनिंग से प्लान होगा कारगर

अभी इंडिया में ऐसे ट्रेंड डॉक्टर्स और नर्सेस की कमी है जो बच्चों को सांस नहीं लेने की बीमारी के खतरे से बचा सके। इसके लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया है। इसमें देश भर के सात प्रमुख नियोनेटोलॉजिस्ट और विदेश के तीन डॉक्टर्स ट्रेनिंग के लिए लाए गए हैं। उन्होंने दावा किया कि ऐसे ट्रेनिंग प्रोग्राम से नवजातों की मृत्यु दर में करीब ख्0 परसेंट तक कमी लायी जा सकती है। इसमें देश भर के फ्भ् डॉक्टर पार्टिसिपेट कर रहे हैं और सात इंडिया के डॉक्टर और तीन यूएसए के डॉक्टर्स वर्कशॉप ट्रेनिंग में पार्टिसिपेट कर रहें हैं।

प्राइमरी लेवल पर डॉक्टरों की कमी

डॉ वासुदेव कामत की मानें तो यहां स्किल डॉक्टर्स की कमी है। यह कार्यक्रम अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक के द्वारा विकसित है। जानकारी हो कि इंडिया में प्राइमरी लेवल पर डॉक्टरों की बहुत कमी है और ट्रेंड नर्सो की भी कमी है। ऐसे में ट्रेनिंग से इसको बहुत सपोर्ट मिलेगा। यूएसए से ट्रेनिंग देने के लिए आए डॉ वासुदेव कामत ने कहा कि बिना ट्रेनिंग के हमलोग नवजातों की मृत्यु दर में कमी लाने में कामयाब नहीं हो सकते है। आज जो ट्रेनिंग पा रहे हैं वे अन्य नए डाक्टरों को भी ट्रेंन स्टाफ तैयार करेंगे।

क्योंकि बच्चे नहीं बोल सकते

डॉ विक्रम दत्ता ने कहा कि बच्चे बोल नहीं सकते हैं लेकिन उनकी प्रॉब्लम सभी को परेशान करती रहती है। ऐसे में सभी को इसका बेहतर इलाज ही एक कारगर कदम है। इसके लिए फोरम ने एक ऐसा प्लान डेवलप किया है, जिसमें इसके सही से इम्पलीमेंटेशन के लिए काम किया जा रहा है। इसमें तीन डॉक्टर यूएसए के हैं। ये हैं-डॉ विनीत भंडारी (येल यूनिवर्सिटी), डॉ निरूपमा लरोईया (रोचेस्टर यूनिवर्सिटी) और डॉ वासुदेव कामत (कोलंबिया यूनिवर्सिटी)।

हर जिला में ट्रेनिंग की होगी व्यवस्था

वर्कशॉप के दौरान डॉक्टरों ने डिलेवरी के बाद सांस लेने की समस्या के उपायों के बारे में बताया। डॉ विक्रम दत्ता ने बताया कि गवर्नमेंट ऑफ इंडिया भी इस बात पर सहमत है कि देश भर के हर जिले में नर्सो की ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी। इसमें बच्चों को सांस लेने के सपोर्ट सिस्टम बैग एंड मास्क के बारे में भी बताया जाएगा।

जन्म के समय सांस में परेशानी के लक्षण

-नवजात का सांस न ले पाना या सांस कमजोर चलना।

-स्किन का रंग नीला पड़ने लगना।

-हार्ट बीट कम हो जाना।

- ब्लड में एसिड की मात्रा बढ़ना।