देशप्रेम के भाव को फिर जगाया
गजेंद्र ने देशभक्ति को कविता के शब्दों में पिरोकर लोगों को जीवंत कर दिया।
बनारस की सुबह, अवध की शाम लाया हूं,
मोहब्बत का खजाना तुम्हारे नाम लाया हूं।
युगों युगों तक इस इस धरती में भारत मां की शान रहे,
राम कृष्ण गौतम के वंसज वाली ये पहचान रहे।
वीर भोगते है, वसुधा के वैभवों को सदा,
शक्तिहीन दीनहीन जीवन बिताते हैं।
नहीं वेदना गांधी जी का सम्मान होता यहां,
मन तो घायल होता देख बलिदानों का अपमान होता यहां।
देश धर्म संस्कृति की रक्षा चाहते हो,
युवा को शास्त्र संघ शस्त्र का भी ज्ञान दो।
हंसते -हंसते कह गए गहरी बात
कवि प्रवीन शुक्ला ने मंच पर आते ही लोगों को गुदगुदाना शुरू कर दिया। उनके द्वारा कही कविताओं की कुछ मुख्य पंक्तियां
एक फोटोग्राफर ने एक आंख मींचकर कहा,
जो पोज खींचता हूं वो पोज लगती हो तुम
खाट पर पड़े मरीज ने कहा मुझे जीवन बचाने वाली डोज लगती हो तुम।
मोहब्बत के सैर का आबोदाना छोड़ देंगे क्या
जुदा होने के डर से दिल लगाना छोड़ देंगे क्या
बला से इनकी बारिश हो सुनामी हो,
बच्चे रेत में घरौंदे बनाना छोड़ देंगे क्या।
जरा सा वक्त क्या बदला, चेहरे पर उदासी है
गमों के खौफ से मुस्कुराना छोड़ देंगे क्या।
आज की शाम तेरी जुल्फों की छाव में आराम करना चाहता हूं,
नकली बाल लगाए लड़की बोली शाम छोड़ एक महीने आराम कर मुझे भी कोई जल्दी नहीं है।
माली बोला बार बार सूंघने को मन करें,
नया नया खिला रेड रोज लगती हो तुम।
लार टपकते हुए चौबे जी चहक उठे,
भूखा चार दिन से हूं, भोज लगती हो तुम।
रिश्तों में परिर्वतन की पक्तियां रहीं खास
विष्णु सक्सेना ने प्यार के रिश्तों को कविता के माध्यम से पेशकर एक अलग ही अंदाज में पेश किया।
आएंगे तो काटेंगे एक रात तुम्हारी बस्ती में
चाहोगे तो कर लेंगे दो बात तुम्हारी बस्ती में।
जमीन चल रही है फिर भी चल रहा हंू मैं
खीजा का वक्त है फूल फल रहा हूं मैं।
हम तो वरदान को शाप समझ बैठे हैं
सामने पुण्य है, हम पाप समझ बैठे है।
हम नहीं जानते तुमको तो खूब आता है
जाने क्यों आदमी अपनों से ऊब जाता है।
जिंदगी अपनी बना लीजिए हवन की तरह
प्यार भी गैर पर बरसाओगे सावन की तरह।
जो हाथ थाम लो वो फिर छूटने न पाएं
प्यार की दौलत को न छूटने पाएं।
आसमान छू लो तो मत भूल जाना
ये ही डोला गुरूर का है, झूल मत जाना।