मेरठ की आबोहवा में जहर घोल रहा प्रदूषण

विभागों की मनमानी से दिनों-दिन बिगड़ रहे हालात

Meerut। शहर की आबोहवा में प्रदूषण का जहर घुलता जा रहा है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी की गई जुलाई की रिपोर्ट से पता चला कि मेरठ में मानक से तीन गुना से भी ज्यादा वायु प्रदूषण है। जबकि मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। आलम यह है कि वायु प्रदूषण में मेरठ प्रदेश में पांचवें स्थान पर पहुंच गया है।

जांच में हुआ खुलासा

प्रदेश में बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने विगत दिनों 21 शहरों के विभिन्न क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की जांच कराई थी। जांच रिपोर्ट में वाराणसी और कानपुर सबसे ज्यादा प्रदूषित मिले। यहां रेसपरेबल सस्पेंडेड पार्टीकुलेट मैटर (आरएसपीएम) की मात्रा मानक से कहीं ज्यादा बढ़ी हुई है। वाराणसी में प्रदूषण 237 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तो कानपुर में 231, बरेली 219 इलाहाबाद में 199 और मेरठ में 188 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया है।

मेरठ में वायु प्रदूषण

महीना आरएसपीएम

मार्च 180

अप्रैल 181.4

मई 186.7

जून 190.3

जुलाई 188.3

नोट-सभी आंकडे़ माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर में हैं।

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण

1-बाजारों और फैक्ट्रियों में डीजल जनरेटर सेट।

2-सड़कों पर अंधाधुंध दौड़ते पुराने और खटारा पेट्रोल-डीजल वाहन।

3-औद्योगिक इकाइयों की चिमनी से निकलने वाला धुआं।

4-घरेलू और औद्योगिक ठोस अपशिष्ट, प्लास्टिक, कबाड़ जलाने पर धुआं।

5-पटाखे और आतिशबाजी।

6-वाहनों में सीएनजी का प्रयोग महज 5 प्रतिशत, 95 प्रतिशत वाहन डीजल और पेट्रोल से चल रहे हैं।

7-आधुनिक जीवन शैली।

8-सड़कों की खराब स्थिति।

9-बेतरतीब ट्रैफिक व्यवस्था।

धुएं से निकलती हैं गैस

यूपीपीसीबी के मुताबिक मोनो ऑक्साइड, सल्फर-डाई-ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों के हवा में घुलने से वायु प्रदूषण फैलता है। अधिकांश डीजल-पेट्रोल चलित कार, टेंपो, बस और ट्रक जिनकी वैधता समाप्त हो गई है, वे प्रदूषण का बड़ा कारण हैं।

एक तस्वीर यह भी

शहर में प्रदूषण का शिकार सर्वाधिक यातायात व्यवस्था में लगे पुलिसकर्मी हो रहे हैं। यातायात माह में ट्रैफिक पुलिसकर्मियों का चेकअप कराया गया था। जिसमें 25 फीसदी से अधिक पुलिसकर्मियों को धुआं, धूल आदि के कारण बीमारों से जूझना पड़ रहा है।

जहर घोल रहे साढे़ लाख वाहन

शहर की आबोहवा को प्रदूषित करने में परिवहन विभाग का भी महत्वपूर्ण योगदान है। विभाग के आंकडों में मेरठ जनपद में करीब पौने सात लाख वाहन पंजीकृत हैं। इनमें सबसे अधिक मोटर साइकल 381978 और चार पहिया वाहनों में 84372 के करीब कारें रजिस्टर्ड हैं। गौरतलब है कि इनमें से अधिकतर वाहन यूरो थ्री मानकों के अनुसार चल रहे हैं जबकि बीएस फोर लागू हुए साल से अधिक बीत चुका है। ऐसे में वाहनों के काले धुंए से शहर की आबोहवा दूषित होने का स्तर साल दर साल बढ़ रहा है।

जानलेवा है प्रदूषण

शहर में फैल रहा प्रदूषण लोगों में बीमारियां भी बांट रहा है। प्रदूषण से मुख्यत: अस्थमा, दमा, ब्रोंक्राइटिस, सभी प्रकार का कैंसर, कानों में बहरापन, आंखों की जलन व लाल होना, स्किन इंफेक्शन, नपुसंकता, सांस की समस्या, माइग्रेन, सोचने- समझने की क्षमता का कम होना, हार्ट की समस्या, जैसी गंभीर रोग होने की संभावना काफी ज्यादा हाेती है।

मेरठ का कूड़ानामा

पिछले एक दशक में शहर की सबसे गंभीर समस्या के समाधान के लिए किसी अधिकारी ने प्रयास नहीं किया। शहर की 20 लाख से ज्यादा आबादी के लिए कूड़े के पहाड़ मुसीबत बने हुए ही हैं। कूड़ा निस्तारण में फिसड्डी मेरठ स्मार्ट सिटी का दावा लगातार खोता आ रहा है। वर्ष 2009 से कूड़ा निस्तारण के प्रयास परवान नहीं चढ़ पा रहे हैं। उ.प्र। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कूड़ा निस्तारण को लेकर नगर निगम को एनजीटी और विभिन्न ईकाइयों की गाइडलाइन नियमित जारी करता है।

जिस तरह से शहर में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है उससे एक जल्द ही यहां सांस लेना भी मुश्किल हो जाएगा।

प्रशांत कौशिक, समाजसेवी

दिल्ली में जिन पुरानी गाडि़यों को प्रतिबंधित किया गया था, वह गाडि़यां मेरठ में चल रही हैं। लगातार आबोहवा खराब होती जा रही है।

रमन त्यागी, पर्यावरणविद्

प्रदूषण फैलाने वालो पर कार्रवाई औपचारिकता तक न रहे। सघन पौधरोपण हो और पेड़ों के कटान पर अंकुश लगें। तभी हालात सुधर सकते हैं।

अनीता राणा, पर्यावरणविद्

गाडि़यों का धुआं, डस्ट, निर्माण कार्य और चिमनियों से निकलता धुआं जब कोहरे के साथ मिलता है तो इसका प्रभाव दोगुना हो जाता है।

डॉ। मुध वत्स, पर्यावरणविद्

पॉल्यूशन किसी भी फार्म में हो, यह व्यक्ति पर काफी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस वजह से कैंसर व सांस की बीमारी सबसे ज्यादा होती है।

डॉ। वीरोत्तम तोमर, चेस्ट स्पेशलिस्ट

रैपिड फायर इंटरव्यू

सवाल-प्रदूषण जानलेवा हो रहा है, क्या है बचाव?

जवाब-प्रदूषणकारी उद्योगों की नियमित चेकिंग के पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर की जा रही है। जनजागरूकता भी बेहद आवश्यक है।

सवाल-प्रदूषणकारी उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई?

जवाब-जांच में मानकों को पूरा न करने वाले उद्योगों के खिलाफ नियमित कार्रवाई होती है, यह प्रक्रिया का हिस्सा है।

सवाल-फॉग जैसी समस्या से निपटने के लिए क्या प्रयास हैं?

जवाब-वर्षभर प्रदूषणकारी धुंए का उत्पादन कम से कम हो, खटारा बस-ट्रक, टैंपो और वाहन सड़क पर न चलें। प्रदूषण कम होगा तो फॉग जैसी स्थिति नहीं बनेगी।

सवाल-कूड़ा निस्तारण न होने से प्रदूषण बढ़ रहा है, क्या उपाय है?

जवाब-एनजीटी से लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार कूड़ा निस्तारण को लेकर बेहद सख्त है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग रूल्स 2016 का कड़ाई से अनुपालन होना चाहिए।

आरके त्यागी

क्षेत्रीय अधिकारी, यूपी पीसीबी

प्रदूषणकारी उद्योगों पर लगाम लगाई जानी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकार की ओर से ऐसे उद्योगों की नियमित जांच के आदेश हैं। सभी विभागों को अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वहन करना होगा, तभी प्रदूषण पर लगाम लग सकेगी।

राजेंद्र अग्रवाल, सांसद, मेरठ