- प्रदेश के हर जिले में 50 साल से ज्यादा उम्र के नाकारा कर्मचारियों की तलाश जारी

- स्क्रीनिंग में आ रही दिक्कत, जांच के बाद क्लीनचिट पा जाते हैं दागी कर्मचारी

- कामचोरी तय करने का भी मानक नहीं, पुलिस में काम न करने की गुंजाइश भी कम

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW :

केंद्र सरकार की तर्ज पर राज्य सरकार ने भी दागी और कामचोर कर्मचारियों को तलाशने की मुहिम शुरू की तो सबकी नजरें पुलिस महकमे पर जाकर टिक गयी। संभावना जताई जाने लगी कि इस मुहिम का सबसे ज्यादा शिकार पुलिस महकमा बनेगा लेकिन, आपको यह जानकर हैरत होगी कि पुलिस कर्मचारियों की स्क्रीनिंग में ऐसे मामले तलाश करने पर भी नहीं मिल रहे जिनमें 50 साल की उम्र पार कर चुके कर्मचारी को नाकारा या दागी करार दिया जा सके। बावजूद इसके पूरे प्रदेश में स्क्रीनिंग का काम जारी है और जल्द ही कुछ नाम सामने आने की उम्मीद जताई जा रही है।

एक गलती की दो सजा नहीं

इस मामले को लेकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की राय भी अलग-अलग है। कुछ अधिकारियों का मानना है कि यह पुलिसकर्मियों के एनुअल अप्रेजल रिपोर्ट से आसानी से पता लगाया जा सकता है तो कुछ इसमें कानूनी अड़चन सामने आने की बात कह रहे हैं। दरअसल बाकी विभागों की तरह पुलिसकर्मियों की भी विभागीय जांच इत्यादि होती रहती है लेकिन, मामूली दंड देकर खत्म भी हो जाती है। इसी तरह आपराधिक मुकदमों में कोर्ट द्वारा यदि उन्हें सजा भी होती है तो रिहा होने के बाद वे बहाल हो जाते हैं। एक वरिष्ठ आईपीएस की मानें तो ऐसे कुछ मामलों में कोर्ट ने भी कहा कि गलती पर सजा दो बार नहीं दी जा सकती। यह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है लिहाजा उनकी बर्खास्तगी खत्म हो जाती है। इसी तरह 50 की उम्र पार करने वाले कर्मचारियों की कार्यक्षमता का पैमाना तय करने का भी कोई सटीक फार्मूला नहीं है। ऐसे ज्यादातर मामलों में सरकार को अदालत में मात खानी पड़ती है। क्योंकि पत्रावली पर इसे स्पष्ट कर पाना आसान नहीं हो पाता है। पुलिस महकमे में फोर्स की कमी कामचोरी न होने की बड़ी वजह भी मानी जाती है। अब देखना यह है कि स्क्रीनिंग के बाद क्या तस्वीर उभर कर सामने आती है।

हाईकोर्ट के फैसलों से लेंगे सबक

यह समस्या केवल पुलिस महकमे की ही नहीं, बल्कि तमाम अन्य विभागों की भी है लिहाजा इसे लेकर हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में लिए गये कुछ फैसलों का गहराई से अध्ययन किया जा रहा है। सामने आया है कि वर्ष 2010 से लेकर अब तक हाईकोर्ट द्वारा करीब 60 जजों को बर्खास्त किया जा चुका है। इनमें से कुछ अपना टारगेट नहीं पूरा कर सके तो कुछ अनुशासनहीनता और भ्रष्ट आचरण की वजह से बाहर कर दिए गये। इनमें से केवल एक जज को बहाल होने में सफलता मिल पाई थी।

पांच आईएएस हो चुके बर्खास्त

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने पिछले कुछ सालों के दौरान यूपी कैडर के पांच आईएएस को बर्खास्त कर दिया था। बर्खास्त होने वाले शिशिर प्रियदर्शी, अतुल बगाई, रीता सिंह, अरुण आर्या और संजय भाटिया पर आरोप था कि वह बिना बताए सालों से गायब हैं। इनमें से दो अधिकारी विदेश में प्राइवेट जॉब कर रहे थे और उन्होंने सरकार द्वारा भेजी गयी किसी भी नोटिस का जवाब देना तक उचित नहीं समझा था।

यह नियम ब्रिटिश शासनकाल में बना था। इसमें पचास साल से ज्यादा उम्र वाले कर्मचारियों के काम की हर साल समीक्षा होती थी। साथ ही उन्हें सुधार का मौका भी दिया जाता था। सुधार न होने पर उन्हें वीआरएस देने का प्रावधान था, बर्खास्त करने का नहीं। पुलिस महकमे में ऐसे एकाध मामले पूर्व में हुए हैं लेकिन, वे अदालत में टिक नहीं पाए। वर्तमान समय में भी इसे लागू कर पाना आसान नहीं है।

श्रीधर पाठक

रिटायर्ड पुलिस महानिरीक्षक