- एफआईआर दर्ज कराने को भटक रहा सैनिक

- लूट के मामले में तीन दिनों से चल रही जांच

GORAKHPUR: जिले में किसी तरह की वारदात के शिकार होने की सूचना पर थानेदार पहले जांच करेंगे। यदि उनको ठीक लगा कि मुकदमा दर्ज करना वाजिब है तो मुंशी-दीवान को निर्देशित करेंगे। तब कहीं जाकर घटना के दो-तीन दिनों के बाद आप की एफआईआर दर्ज हो सकेगी। जबकि शासन का निर्देश है कि आपराधिक मामलों की एफआईआर दर्ज करने में कोई कोताही नहीं की जाएगी। पीडि़त की तहरीर पर फ‌र्स्ट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट दर्ज कर ली जाएगी। लेकिन जिले में थानेदारों की मनमानी की वजह से फरियादियों को पुलिस अधिकारियों का चक्कर लगाना पड़ रहा है। एसएसपी का कहना है कि यदि कहीं से इस तरह की शिकायत आती है तो उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।

केस 1

शोहदे के डर से छोड़ दी पढ़ाई

खोराबार एरिया के एक मोहल्ले की किशोरी आठवीं क्लास में पढ़ती है। मोहल्ले का एक युवक स्कूल आते-जाते समय छेड़छाड़ करता है। बेटी की शिकायत पर मां ने पुलिस को सूचना दी। लेकिन जांच के बाद कार्रवाई का आश्वासन देकर पुलिस शांत बैठ गई। बुधवार की रात शोहदे ने घर में घुसकर किशोरी संग छेड़छाड़ का प्रयास किया। किशोरी के भाई के विरोध करने पर उसे पीटकर असलहा लहराते हुए फरार हो गया। गुरुवार को जब किशोरी की मां थाने पहुंची तो पुलिस ने कहा कि जाओ जांच कर लेंगे तब मुकदमा लिखा जाएगा। शोहदे के डर से मां ने बेटी का स्कूल जाना बंद करा दिया।

केस 2

तुम्हारे लिए एफआईआर जरूरी तो आओ करता हूं

सोमवार रात चिलुआताल एरिया के चिऊटहां पुल के पास बदमाशों ने रेलवे कर्मचारी महेश प्रसाद से लूटपाट की। तमंचा सटाकर बदमाश उनके पास से ढाई हजार रुपए नकदी और मोबाइल लेकर फरार हो गए। रात में उन्होंने पुलिस को सूचना दी। मंगलवार को दोबारा थाने पर बुलाया गया। तहरीर लेकर एसओ ने जांच का आश्वासन दिया। गुरुवार को जब महेश के बेटे ने एसओ से एफआईआर के बारे में जानकारी मांगी तो वह बिफर गए। एसओ ने कहा कि तुम्हारे लिए एफआईआर जरूरी है तो आओ वहीं कर देता हूं।

केस 3

सैनिक की नहीं सुनी तो आमजन का क्या

झंगहा, राघोपट्टी पड़री निवासी संजय कुमार यादव सेना में हैं। उनकी पोस्टिंग झांसी में है। जनवरी माह में उनको पता लगा कि उनके बैंक एकाउंट से कोई नकदी निकाल ले रहा है। पासबुक अपडेट कराने पर सामने आया कि करीब 12 लाख रुपए निकल गए हैं। चार दिन पूर्व उन्होंने झंगहा पुलिस को सूचना दी। जालसाज के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराकर कार्रवाई की मांग उठाई। खुद के फौज में होने का हवाला भी दिया। लेकिन चार दिनों से पुलिस आज-कल करके टरका रही। गुरुवार को सैनिक ने बताया कि एफआईआर दर्ज कराने के लिए तहरीर दे दी है लेकिन अभी तक उसकी कोई कॉपी नहीं मिली।

क्यों दर्ज नहीं करते एफआईआर

एफआईआर दर्ज करने से रिकॉर्ड खराब होगा। विपक्ष हावी होगा।

मुकदमा दर्ज करने पर विवेचना की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा।

एफआईआर दर्ज होने पर थाना क्षेत्र के क्राइम का ग्राफ बढ़ जाएगा।

हर माह होने वाली समीक्षा में थानेदार-विवेचक को जवाब देना पड़ेगा।

कई शिकायतों में पुलिस पहल करके सुलह-समझौता करा देती है।

लूट, छेड़छाड़, महिला अपराध सहित अन्य मामलों में पुलिस की भद पिटती है।

बॉक्स

पुलिस के टरकाने पर कोर्ट जाने का विकल्प

कानूनन पुलिस के लिए एफआईआर दर्ज कराना अनिवार्य है। वह इससे इनकार नहीं कर सकते हैं। बार-बार थाना जाने के बाद पुलिस एफआईआर दर्ज न करे तो सीनियर ऑफिसर्स के पास इसकी शिकायत की जा सकती है। रोजाना पुलिस अधिकारियों के पास तहरीर लेकर लोग भटकते रहते हैं। यदि सीनियर पुलिस अधिकारियों के कहने पर भी एफआईआर नहीं लिखी गई तो अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में एप्लीकेशन दिया जा सकता है। मजिस्ट्रेट को यह अधिकार और शक्ति प्राप्त है कि वो पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश जारी कर सकें। अगर कोई पुलिस अधिकारी या पुलिस कर्मी किसी व्यक्ति की एफआईआर दर्ज नहीं करते तो उन पर कार्रवाई की जा सकती है। उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जा सकती है।

वर्जन

मुकदमो की संख्या के आधार पर अपराध का ग्राफ किस थाना में कितना रहा है इसका आंकलन किया जाता है। ग्राफ बढ़ने पर पुलिस की विफलता मानी जाती है। शासन, सत्ता पक्ष चाहता है कि मुकदमे कम से कम हों। ज्यादा संख्या होने पर ज्यादा अपराध माना जाता है। इसलिए कई बार संबंधित पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी होती है। इसलिए थानेदार चाहते हैं कि उनको कम से कम मुकदमा लिखना पड़े। तहरीर मिलने पर वह मामलों को मैनेज करने में जुट जाते हैं।

- ओंकारनाथ भट्ट, एडवोकेट, दीवानी कचहरी