ईनामी क्रिमिनल अब तक फरार

क्राइम-फ्री सिटी की हकीकत यह है कि पिछले तीन महीनों में ऑपरेशन ऑलआउट के दौरान पुलिस ने सिर्फ छुटभैय्ये क्रिमिनल ही पकड़े हैं। इन क्रिमिनल्स को पकडऩे के बाद एसएसपी यशस्वी यादव ने प्रेस कांफ्रेंस भी की थी। जबकि दूसरी ओर कुख्यात ईनामी संतोष गौड़, अशोक नट जैसे शातिर अपराधी अब तक फरार चल रहे हैं। इस फेहरिस्त में सिटी का मोस्ट वॉन्टेड क्रिमिनल मोनू पहाड़ी टॉप पर है। दर्जनों लूट, हत्या, हत्या के प्रयास, एक्सटॉर्शन जैसे संगीन मुकदमों का वांटेड मोनू का खाकी के नुमाइंदों के पास कोई सुराग नहीं है। मोनू तो महज एक उदाहरण है। दर्जनों ऐसे शातिर अपराधी हैं, जिन्हें ट्रेस कर पाने में पुलिस नाकाम साबित हुई है।

यहां भी खाकी हुई फेल  

पुलिस दावे जरूर करती है कि ऑपरेशन ऑलआउट अपराधियों की धरपकड़ के लिए है। मगर, संगीन वारदातों में वांछित अपराधी पुलिस के इस अभियान में नहीं पकड़े जा सके। गंभीर अपराधों के दोषी विपिन हक्कल को भी कानपुर पुलिस नहीं पकड़ सकी। बल्कि, उसकी नाक के नीचे से एसटीएफ की टीम ने विपिन को धर दबोचा था। कई केसेज ऐसे भी हैं, जिनमें पुलिस क्रेडिट बटोरने में जुट जाती है। बर्रा में रहने वाले और कानपुर देहात में पोस्टेड एक डॉक्टर के मर्डर के दौरान भी ऐसा ही हुआ था। तब गोविंद नगर कच्ची बस्ती में रहने वाली युवती के खुद सामने आने के बाद कानपुर नगर और देहात की पुलिस क्रेडिट लेने के लिए ही आपस में भिड़ गईं थीं।

बात सभ्यता की है  

लगभग सभी लोगों का मानना है कि ऑपरेशन ऑलआउट के अलावा ज्यादातर मामलों में पुलिस का व्यवहार और उनकी भाषा अभद्र ही रहती है। 15 दिसंबर को टाटमिल चौराहे पर हूलागंज निवासी बिजनेसमैन संजय गुप्ता भी पुलिस के असभ्य व्यवहार के विक्टिम बने। हेलमेट नहीं लगाने पर जब उन्होंने कहा चालान काट दो। तो सिपाही ने कहा कि चालान नहीं काटूंगा, समझ लो इस पर उन्होंने वहां से गुजर रहे दूसरे वाहन चालकों की ओर इशारा किया और कहा कि दूसरों को क्यों नहीं रोक रहे? तो सिपाही ने बदतमीजी से बात करते हुए कहा कि क्या पूरे कानपुर के ठेकेदार हो? पैसा दो वरना

इसका कोई जवाब नहीं

ऑपरेशन ऑलआउट के नाम पर पब्लिक को असुविधा न हो, इसके लिए पुलिस के पास क्या योजना है? इसका कोई क्लियर-कट सॉल्यूशन ऑफिसर्स के पास नहीं है। आईजी-डीआईजी तो इस मुद्दे पर कोई भी बैकफुट पर ही नजर आ रहे हैं। जबकि एसएसपी यशस्वी यादव बात करने को तैयार नहीं हैं। इसी का असर है कि जूनियर लेवल के पुलिसकर्मी अराजक हो चुके हैं और पब्लिक को पुलिस की ज्यादती का शिकार होना पड़ रहा है।

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क्या कहा था एडीजी लॉ एंड ऑर्डर ने

एडीजी लॉ एंड ऑर्डर मुकुल गोयल ने स्पष्ट कहा है कि जो भी ऑपरेशन चलाया जाता है, पब्लिक की सहूलियत के लिए। ना कि उन्हें परेशान करने  के लिए। अगर किसी को परेशानी हो रही है तो खुद एसएसपी से शिकायत करें। अगर एसएसपी न सुनें तो फिर आईजी-डीआईजी लेवल पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

आईजी के पास वक्त नहीं

ऑपरेशन ऑलआउट के बारे में जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने आईजी सुनील गुप्ता को शाम 7.30 बजे फोन किया तो उन्होंने आधे घंटे बाद फोन करने को कहा। मगर, बाद में उनके फोन की घंटी बजती रही, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव करने की जहमत नहीं उठाई।

डीआईजी भी बैकफुट पर

ऑपरेशन ऑलआउट के मुद्दे पर डीआईजी आरके चतुर्वेदी ने भी माना कि चौराहे-चौराहे होने वाली चेकिंग की वजह से पब्लिक को प्रॉब्लम फेस करनी पड़ती है। मगर, उन्हें शायद अंदाजा नहीं है कि यह ‘प्रॉब्लम’ किसी आम आदमी के लिए कितनी बड़ी समस्या बन जाती है। चौराहे-चौराहे गाड़ी रोककर गाड़ी के पेपर चेक करवाना, पुलिस के अपशब्दों और अभद्रता का शिकार होना और उससे भी ज्यादा अपना कीमती वक्त बर्बाद करना कितना कष्टदायी होता है।

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मित्र पुलिसिंग पर public says

मित्र पुलिसिंग का दावा करने वाली कानपुर पुलिस कहती है, देखते ही बोलो जय हिन्द। लेकिन आप पुलिस को देखते ही क्या कहते-सोचते हैं? इस बारे में पेश है पब्लिक की ओपिनियन -

ø कुछ मत बुलवाइए, जाने क्या-क्या अपशब्द निकल जाएंगे। मेरे मुंह से तो बस यही निकलता है- ये लो एक और मुसीबत आन पड़ी, अब इनसे निपटो मुझे तो चिढ़ आती है खाकी वर्दी से। इनका पब्लिक से पेश आना बहुत गंदा लगता है। ये आम जनता से तो कभी भी सीधे मुंह बात ही नहीं करते और पॉलिटीशियन के सामने चूहे बन जाते हैं।

- पंकज मौर्या

ø खाकी को देखते ही लगता है जाने कौन सी मुसीबत आ गई।

- सैय्यद समीर शाह

ø उन्हें देखकर लगता है कोई प्रॉब्लम न क्रिएट हो जाए।

- राहुल कुमार सिंह

ø पुलिस को देखते ही लगता है कि पैसे ऐंठने वाले मामू लगते हैं।

- गौरव द्विवेदी

ø यू-टर्न ले लो।

- दिव्यांक मिश्रा

ø देखते ही लगता है निकल लो भैय्या, कौन  दिमाग का दही करवाएगा इज्जत से बात तो कर नहीं पाते ये लोग।

- समीर रिजवान

ø कुछ लोग तो अच्छे होते हैं, लेकिन कुछ तो नीचता की हद पार कर देते हैं। उन की वजह से सारे पुलिस वाले कहे जाते हैं।

- शशांक

ø देखते ही बोलना पड़ जाता है, निकलो जल्दी, आज तो फुटकर भी नहीं है। पूरे 100 चले जाएंगे।

- कुशाग्र चौधरी

ø कुछ को देखते ही लगता है कि बोलो जय हिन्द। लेकिन कुछ तो ऐसे हैं जिन्हें देखते ही लगता है कि ‘इन्हें खाना नहीं पैसा चाहिए.’

- कपिल निगम

एमएलए-मिनिस्टर says

-ये तो पुलिस की वसूली के तरीके हैैं। आपरेशन आल आउट के नाम पर चौराहे-चौराहे पर पुलिस पब्लिक के साथ मनमानी कर रही है। जनता परेशान है। हाइवे पर टोलटैक्स की तरह चौराहो-चौराहों पर वसूली की जा रही है। ये ठीक नहीं है।

-सलिल विश्नोई, एमएलए

-पब्लिक की परेशानी का भी पुलिस को ध्यान रखना चाहिए। पुलिस गाडिय़ों की चेकिंग करें। लेकिन ये भी न हो कि हर चौराहे-चौराहे लोगों को गाड़ी खड़ी कराकर चेकिंग व तलाशी ली जाएं। कुछ ऐसी व्यवस्था पुलिस को करनी चाहिए कि एक चौराहे पर चेकिंग हो जाने के बाद दूसरे चौराहे पर उसे नहीं रोका जाना चाहिए।

 -रघुनन्दन सिंह भदौरिया, एमएलए

-हर चौराहे पर पब्लिक को गाड़ी न चेक करानी पड़े, इसके लिए पहले ग्र्रीन कार्ड बनाए जाते थे। चेकिंग के दौरान लोग ग्र्रीन कार्ड और जरूरी होने पर पुलिस ड्राइविंग लाइसेंस देखकर जाने देती थी। पुलिस ऑफिसर्स से मिलकर ऐसी व्यवस्था कराई जाएगी। जिससे लोगों को परेशान ना होना पड़े.- हाजी इरफान सोलंकी, एमएलए

- चेकिंग के दौरान लोगों को परेशान होते हुए देखा है। इसलिए पुलिस को ऐसा तरीका अपनाना चाहिए जिससे कि लोगों को परेशानी भी ना उठानी पड़ी और उनका मकसद भी हल हो जाए।  

-सतीश महाना, एमएलए

- लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करने के लिए अगर अचानक पुलिस सडक़ पर उतरती है और ईमानदारी से गाडिय़ों की चेकिंग करती है। किसी को तंग नहीं करती और पैसा नहीं वसूलती है तो ये सराहनीय है।  

-अजय कपूर, एमएलए

-जांच तो ठीक है लेकिन अगर वह पब्लिक के लिए परेशानी का सबब बन जाए तो ठीक नहीं है। ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि पब्लिक को दिक्कत न हो, उसके साथ मिसविहैव न हो। अगर मिसविहैव व पैसा वसूली की शिकायत मिली तो किसी भी सूरत में वह पुलिस कर्मी कार्रवाई से बच नहीं पाएगा।

- सतीश निगम, एमएलए