-रिमांड के दौरान जल्लाद दरोगा ज्ञानेंद्र पर बरस रही पुलिस की कृपा, दोस्त की तरह पेश आ रही

- न हथकड़ी, न रस्सी, कांस्टेबल बोल रहे सर, पुलिसकर्मियों के गले में हाथ डालकर कर रहा बात

- उर्सला में मेडिकल कराने के दौरान बेखौफ, हंसता हुआ और टेंशन फ्री अदांज में दिखा

KANPUR: न अफसोस, न कोई पछतावा और न पुलिस या कोर्ट का तनाव। चेहरे पर खिलखिलाती मुस्कान, चाल में पूरा आत्मविश्वास, बेखौफ अंदाज और अंजाम से बेपरवाह। देखने वाले सोच भी नहीं सकते कि यह शख्स अपनी पत्नी की गलाकाट कर हत्या करने का आरोपी है और पुलिस रिमांड से जेल जा रहा है। लग तो ऐसा रहा था मानो अपने ही घर परिवार के लोगों के साथ पिकनिक मनाकर लौट रहा हो। शुक्रवार को पुलिस के साथ मेडिकल कराने उर्सला हॉस्पिटल पहुंचा जल्लाद दरोगा ज्ञानेंद्र कुछ ऐसे ही अंदाज में दिखा। ऐसा हो भी क्यों न जब पुलिस डिपार्टमेंट की पूरी 'कृपा' उस पर बरस रही हो। शायद पुलिस भी मान बैठी है कि छोटी सी भूल हो गई तो क्याहै तो अपना ही बच्चा। डिपार्टमेंट का होने के नाते पुलिस उससे सख्ती से पेश आने के बजाए दोस्त जैसा व्यवहार कर रही है। सवाल है इन हालात में जल्लाद दरोगा के खिलाफ कैसे ईमानदारी से जांच होगी?

चेहरे पर एक शिकन तक नहीं

जल्लाद दरोगा ज्ञानेंद्र को पुलिस ने कोर्ट से 55 घंटे की रिमांड पर लिया था जिससे ईशा के कत्ल के बारे में उससे पूछताछ की जा सके और आला-ए-कत्ल बरामद हो सके। शुक्रवार को उसकी रिमांड पूरी हो गई। इसीलिए जेल में दाखिल कराने से पहले पुलिस उसका मेडिकल कराने उर्सला हॉस्पिटल ले गई थी। इस दौरान ज्ञानेंद्र परेशान या तनावग्रस्त होने के बजाए पूरी तरह बेखौफ और हंसता हुआ नजर आया। उसके चेहर पर एक शिकन तक नहीं दिखी। मेडिकल कराने के लिए जो पुलिसकर्मी उसे उर्सला ले गए थे उनके साथ वो हंस-हंसकर बातें कर रहा था।

आखिर इतनी मेहरबानी क्यों?

वैसे तो पुलिस मारपीट, चोरी जैसी छोटी धाराओं के अपराधियों को रस्सी या हथकड़ी बांधकर जेल ले जाती है, लेकिन जल्लाद दरोगा के साथ पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसके हाथ खुले थे। एक जघन्य अपराध में मुल्जिम होने के बावजूद पुलिस उससे साथी पुलिस कर्मी की तरह बर्ताव कर रहे थे। कांस्टेबल तो उसे अभी भी सर-सर बोल रहे थे। वो दरोगा और कांस्टेबल से गले में हाथ डालकर बात कर रहा था। इसी बीच मीडिया कर्मी वहां पहुंच गए जिन्हें देख वो सतर्क हो गया।

जेल के बाहर मौजूद थे साथी

पुलिस जल्लाद दरोगा को जेल ले गई तो वहां पर पहले से उसके मददगार खड़े थे। उसने जेल के बाहर उनसे बात की। वे जल्लाद दरोगा के लिए दो झोले में भरकर खाने-पीने की चीजें और राशन लाए थे। इसके अलावा उन लोगों ने जल्लाद दरोगा नोटों की एक गड्डी भी दी। जिसे लेकर वो अंदर चला गया। उसकी जेल में न तो तलाशी हुई और न ही उसे बाहरी सामान ले जाने से रोका गया।