-कल-कारखानों की चिमनियों से निकल रहे धुएं फैला रहे पॉल्यूशन, शहर में छोटे-बडे़ 500 से अधिक हैं फैक्ट्रियां

-कोयले से संचालित फैक्ट्रियों की चिमनियों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नहीं है नजर

VARANASI

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में बनारस को मोस्ट पॉल्यूटेड शहर डिक्लेयर किया गया तो चिंता जताना स्वभाविक भी है। यूपी की राजधानी लखनऊ से भी बनारस को पॉल्यूशन में नंबर वन माना गया है। हो भी क्यों न जब पार्टिकुलेट मैटर 10 शहर की फिजा में तीन गुना असर घोल रहा हो। खोदी हुई सड़कें और धुआं फेंकते वाहनों के अलावा इंडस्ट्रियल एरिया में संचालित कल-कारखानों की चिमनियों से उठते धुएं व आसपास बहती केमिकलयुक्त गंदगी भी प्रदूषण को बढ़ाने का काम कर रही है। पर्यावरण को दूषित व जहरीला बनाने में चिमनियों से चौबीसों घंटे निकलते धुएं का जबरदस्त हाथ है। चिमनियों से निकलते धुएं के साये में जीते हैं आसपास पड़ोस के लोग। चिमनियों में प्रयुक्त होने वाले कोयले कार्बन मोनोआक्साइड गैस उगलते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक हानिकारक है। चिमनियों के प्रभाव से आस-पड़ोस की जमीनें भी उसर हो जाती हैं। इतना ही नहीं पेड़-पौधे तो सूखते ही हैं, जो बच जाते हैं उन पर भी फल-फूल नहीं लगते। इन चिमनियों की मार मानव के साथ-साथ प्रकृति पर भी पड़ रही है।

स्पेशल टेक्निक का यूज जरूरी

बड़े महानगरों में प्रदूषण की अधिकतम सहनशीलता की सीमा भी निश्चित की जा चुकी है। सभी प्रदूषण पैदा करने वाले कारखानों द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकारों व प्रशासन के द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार उपकरण व विशिष्ट तकनीक का उपयोग भी किया जाने लगा है। लेकिन हमारे शहर में अभी भी ऐसी किसी तकनीक का इस्तेमाल नहीं के बराबर है। न ही आलाधिकारियों की ओर से कोई कार्रवाई होती है। वर्तमान में औद्योगिक केंद्रों में प्रदूषण मापन के यंत्र लगाना प्रशासन ने अनिवार्य कर दिया है।

एक नजर

-चिमनी से निकलने वाले धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड, जैविक यौगिकों और विभिन्न रासायनिक गैस मिल जाते हैं और वायु प्रदूषण फैलाते हैं।

-पेट्रोलियम रिफाइनरी उद्योग भी हवा में बड़ी मात्रा में हाइड्रोकार्बन का उत्पादन करता है जो खतरनाक प्रदूषक है

-वायुमंडल में धूल, नमी व धुएं से उत्पन्न होने वाले स्मॉग-कोहरे पर कंट्रोल के लिए अधिक धुआं उगलने वाली चिमनियों की ऊंचाई 80-100 मी। की जाए

-25 लाख से अधिक पॉपुलेशन वाले महानगरों में किसी भी स्थिति में 50 किमी। के दायरे में धुआं उगलने वाले उद्योगों की स्थापना पर कड़ाई से बैन किया जाए

-जिस उद्योग में यदि प्रदूषण बढ़ जाये तो वहां पर श्रमिकों को मास्क लगाकर काम करना चाहिए

-चांदपुर और रामनगर इंडस्ट्रीयल एरिया में संचालित हैं पांच सौ से अधिक छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां

शहर में प्रदूषण का लेवल अब कम हो रहा है। पीएम-10, पीएम 2.5 लेवल में गिरावट आई है। कोयले से संचालित उद्योग भी प्रदूषण में सहायक साबित हो रहे हैं। ऐसे कल-कारखानों की जांच चल रही है।

अनिल कुमार सिंह, क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी