शासन से लेकर प्रशासन और फिर कोर्ट तक के आदेशों के बाद भी हम प्लास्टिक बैग्स का यूज बंद नहीं कर रहे हैं। पिछले दिनों कोर्ट ने प्लास्टिक बैग्स को बैन करते हुए इसका यूज रोकने के आदेश दिए, स्टेट और सेंट्रल गवर्नमेंट ने भी नेचर के लिए हार्मफुल मानते हुए इस पर पूरी तरह से बैन कर दिया। लेकिन हम हैं कि इसका यूज करना बंद ही नहीं कर रहे हैं। आखिर कब तक हम प्रकृति से खिलवाड़ करेंगे और प्लास्टिक बैग्स का यूज करते रहेंगे। हमें अवेयर होना होगा और प्लास्टिक बैग्स को छोड़कर झोला उठाना होगा। तभी एनवायरमेंट को बिगाड़ रहे प्लास्टिक पर लगा बैन कारगार होगा।

शासन ने फिर लिया है स्टेप

कई आदेशों के बाद भी प्लास्टिक बैग्स पर लगा बैन कारगार साबित नहीं हो रहा है। पांच महीने पहले भी केन्द्र सरकार ने पूरे देश में प्लास्टिक बैग्स को बैन करने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद थोड़ा हो हल्ला मचा और लोकल प्रशासन ने प्लास्टिक बैग्स का यूज करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की लेकिन प्रशासन की सुस्ती के चलते ये बैन पूरी तरह से फेल हो गया। इसी को ध्यान में रखते हुए मंडे को यूपी सरकार ने प्लास्टिक बैग्स को बैन करने का एक नया आदेश फिर से जारी किया है। इस आदेश के मुताबिक प्रदेश भर में 40 माइक्रॉन से कम थिकनेस वाली पॉलीथिन का यूज पूरी तरह से बैन कर दिया गया है और इस बाबत आदेश भी जिलों के डीएम और नगर निगम को भेजे जा चुके हैं।

प्रशासन जागे तो बने काम

प्लास्टिक बैग्स पर बैन का आदेश भले ही शासन ने मंडे को जारी किया हो लेकिन नेक्स्ट डे यानि मंगलवार को ही इस आदेश का माखौल सिटी के हर इलाके में उड़ता दिखा। इवेन गंगा किनारे से 100 मीटर के दायरे में भी बैन किये गए पॉली बैग्स का यूज धड़ल्ले से होता रहा। सब्जी लेने से लेकर, मीट और अन्य खाद्य सामग्रियों के लिए प्लास्टिक बैग्स का यूज किया जाता रहा और प्रशासन मौन साधे रहा। हालांकि इस मामले में निगम के ऑफिसर्स का कहना है प्लास्टिक बैग्स के यूज को रोकने के लिए कई टीमें बनाई गई हैं और वो टाइम टू टाइम इसके अगेंस्ट कार्रवाई भी करती हैं। निगम के मुताबिक जनवरी 2013 से अप्रैल तक लगभग 100 से ज्यादा चालान की कार्रवाई की गई है।

क्या है आदेश

पॉलीथीन बैग्स का यूज प्रकृति के लिए काफी हार्मफुल है। ये बैग्स रिसाइकल नहीं होते जिसके चलते गंगा से लेकर सीवर लाइंस तक को ये बुरी तरह से नुकसान पहुंचा रहे हैं। एक्सपट्र्स के मुताबिक प्लास्टिक बैग्स को अगर नष्ट न किया जाये तो ये आने वाली कई पीढिय़ों तक एज इट इज ही रहते हैं। इसलिए प्रकृति को इस हार्मफुल मैटिरियल से बचाने से लिए मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट एंड फॉरेस्ट की ओर से प्लास्टिक वेस्ट रूल 2011 के तहत पॉलीथिन के यूज को पूरी तरह से बैन किया जा चुका है। ये रूल चार फरवरी 2011 को पूरे देश में लागू हुआ है। जिनके तहत बीआरएस मानक पर खरे उतरने वाले प्लास्टिक बैग्स को यूज करना होगा। रूल में ये भी कहा गया है कि शॉपकीपर किसी भी कस्टमर को फ्री में  पॉलीथीन बैग्स नहीं देगा। इसके बदले में मैक्सिमम चार्ज लेगा और बदले में दिया गया प्लास्टिक भी कलरफुल नहीं प्लेन होना चाहिए।

इनका यूज दे सकता है कैंसर को न्योता

अगर आपको ये पता चले कि  कलरफुल प्लास्टिक का यूज आपको कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी दे सकता हैं तो शायद आप इसका यूज न करे। ये बातें हम नहीं बल्कि बीएचयू आईआईटी के प्रोफेसर प्रदीप श्रीवास्तव का कहना है।

- अगर 40 माइक्रॉन से कम थिकनेस का प्लास्टिक यूज हो रहा है तो वो हार्मफुल है।

- इन प्लास्टिक बैग्स को कलरफुल प्लास्टिक को रिसाइकिल करके तैयार किया जाता है।

- इस वजह से इनमें क्रोमियम, लेड और कॉपर का हिस्सा ज्यादा होता है

- मेडिकल टर्म में इन तीनों केमिकल्स का यूज नहीं होता।

- इन तीनों केमिकल्स के यूज से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी होने को खतरा होता है।

- इन बैग्स को तैयार करने के लिए डाई और हार्मफुल कलर का यूज भी होता है जो खतरनाक है।

- ऑरेंज, ब्लैक और ग्रीन प्लास्टिक का यूज ज्यादा रिस्की है।

- 40 माइक्रॉन से कम थिकनेस के पॉली बैग्स का यूज ज्यादातर वही दुकानदार करते हैं जो कम बजट में प्लास्टिक बैग्स परचेज करते हैं।

- हल्के और कम मोटे प्लास्टिक बैग्स 40 माइक्रॉन से कम के होते हैं।

 

हर रोज निकलता है 175 टन प्लास्टिक

सिटी में हर रोज निकलने वाले वेस्ट मैटिरियल के आंकड़े ही बयां कर रहे हैं कि यहां प्लास्टिक बैग्स का यूज किस तरह से हो रहा है। निगम के आंकड़ों के मुताबिक सिटी में हर रोज लगभग 700 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। जिनमे से लगभग 175 टन प्लास्टिक होता है। वहीं गंगा में भी हर रोज 10 से 12 टन प्लास्टिक बैग्स पहुंच रहे हैं जो गंगा निर्मलीकरण अभियान को भी गहरी चोट दे रहा है।

हमें करनी होगी पहल

प्लास्टिक बैग्स पर लगे बैन को सही में हम खुद प्रभावी तरीके से लागू कर सकते है। बस इसके लिए हमें ही पॉलीथिन बैग्स को पूरी तरह से छोडऩा होगा और अपनी रुटीन लाइफ से इसे हटाकर कपड़े के बैग्स को साथ लेकर चलने की आदत डालनी होगी

- अगर सब्जी लेने निकलें तो प्लास्टिक बैग्स के भरोसे न रहें।

- कपड़े का झोला साथ लेकर निकलने की आदत डालें।

- दूध, दही और अन्य खाद्य सामग्री को लेने के लिए प्लास्टिक बैग्स का यूज न करें।

- दूध के लिए स्टील का बर्तन साथ लेकर निकलें और दही मिट्टी के कुल्हड़ में लें।

- शॉपिंग करने जाएं तो प्लास्टिक के बैग्स में सामान न लें, दुकानदार को कुछ एक्स्ट्रा रुपये देकर उसी से कपड़े का झोला मांगें।

- घर में प्लास्टिक बैग्स अगर आ रहे हैं तो उनको गली में इधर उधर न फेंके बल्कि उसे जलाकर नष्ट करे दें।

- गली या सड़क पर फेंका गया पॉलीथिन छुट्टा पशुओं खास तौर पर गाय के लिए काफी नुकसान दायक है।

- गाय प्लास्टिक को खा जाती है, जिससे उसकी मौत हो सकती है।

- 40 माइक्रॉन से कम थिकनेस का पॉलीथिन ही यूज करें।

- इसकी पहचान करने के लिए ट्रांसपैरेंट पॉलीथिन और हल्के प्लास्टिक लें।

- ट्रांसपैंरेंट पॉलीथिन रिसाइकल प्लास्टिक से तैयार नहीं होते और इनका यूज कम हार्मफुल है।

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हमने पॉलीथिन के यूज को रोकने के लिए कैंपेन चलाया और चालान भी कराये लेकिन पब्लिक खुद इनका यूज कर रही है। शासन की ओर से आये बैन के आदेश से हमें बल मिलेगा और हम नये सिरे से प्लास्टिक बैग्स पर लगे बैन का लागू कराने के लिए कार्रवाई करायेंगे।

रामगोपाल मोहले, मेयर