सिर्फ आठ बसें चलती हैं यहां से
झारखंड स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट के रांची डिपो में पोस्टेड डिवीजनल मैनेजर रामवीर सिंह बताते हैं कि 1975 के आस-पास यह डिपो अपने बेहतरीन दिन देखा रहा था। उस समय यहां से डिफरेंट प्लेसेज के लिए डेली 200 बसें चला करती थीं। यहां हमेशा सैकड़ों पैसेंजर्स का जमावड़ा लगा रहता था। रातभर यहां दुकानें खुली रहा करती थीं। उस समय अनडिवाइडेड बिहार का ऐसा कोई डिस्ट्रिक्ट नहीं था, जहां के लिए यहां से बसें नहीं खुलती थीं। पर, आज यहां से सिर्फ आठ बसें खुलती हैं। पहले इस डिपो के डिवीजनल मैनेजर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर हुआ करते थे और यहां मजिस्ट्रेट की भी पोस्टिंग हुआ करती थी। उस समय यह बिहार स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन का डिपो हुआ करता था और उस समय पूरे बिहार-झारखंड में 2400 बसें चलती थीं।

80 से खराब होने लगी हालत
बस स्टैंड के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 1980 के बाद से डिपो की हालत खराब होने लगी। 80 के बाद रांची से प्राइवेट बसें चलने लगीं। वहीं, गवर्नमेंट इसकी अनदेखी करने लगी। पहले इसे हर साल गवर्नमेंट ग्रांट देती थी, जिससे नई गाडिय़ों की खरीदारी होती थी। बाद में गवर्नमेंट ने इसकी तरफ से अपनी नजरें फेर लीं और इसे ग्रांट देना बंद कर दिया। यहां से एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर्स को भी हटा दिया गया। ग्रांट न मिलने के कारण यहां नई गाडिय़ां नहीं खरीदी गईं और यहां चलनेवाली गाडिय़ां भी मेंटेनेंस की कमी के कारण धीरे-धीरे खराब होती चली गईं। बाद में यहां के कर्मचारियों का पेमेंट भी इर्रेगुलर हो गया। वहीं, गाडिय़ों के जर्जर होने से यहां गाडिय़ों की संख्या घटने लगी, जिससे रेवेन्यू अफेक्ट हुआ। 1980 के बाद से आज तक सिर्फ 98 और 2003-04 में यहां बसों की खरीदारी दो बार हुई है। इन दो सालों में जो बसें खरीदी गई थीं, वे भी अब पुरानी हो गई हैं।

खंडहर में बदल गई building
डिपो के एक कर्मी ने बताया कि साल 1952 में अनडिवाइडेड बिहार में बिहार स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट इस्टैब्लिश किया गया था। 1959 में यह बिहार स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन में कन्वर्ट हो गया। 1952 में बनी इसकी बिल्डिंग मेंटेनेंस पर ध्यान नहीं देने के कारण लगातार जर्जर होती चली गई। आज जहां टिकटों की बुकिंग होती है, वह काउंटर भी बदहाल हो चुका है। बिल्डिंग से भी लगातार प्लास्टर झड़ रहा है। डिपो में बने क्र्वाटर भी बदहाल हो चुके हैं। बिल्डिंग की खिड़कियां और रेलिंग भी टूट चुकी हैं। सालों से इस बिल्डिंग का ह्वïाइट वॉश भी नहीं हुआ है, जिससे यह खंडहर में तब्दील हो गई है। डिपो में बसों के संचालन के लिए एक पेट्रोल पंप भी है। पर, यह अब यूजलेस हो गया है। डिपो के वर्कशॉप में 50 से ज्यादा जर्जर बसें सड़ रही हैं। वर्कशॉप की कई पुरानी मशीनें भी जंग खा रही हैं। डिपो में चलनेवाले होटलों की तकदीर भी खराब है। पहले यहां एक दर्जन से ज्यादा होटल चलते थे पर अब यहां पांच से छह होटल ही चलते हैं।

अब भी fourth pay scale
रांची डिपो में डिवीजनल मैनेजर रामवीर सिंह बताते हैं कि बंटवारे के बाद झारखंड रोड ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के अंडर पूरे झारखंड में 609 कर्मी काम कर रहे हैं। स्टेट के डिफरेंट इंस्टीट्यूशंस में इनकी पोस्टिंग की बात भी चल रही है। पर, यहां के कर्मियों को अब भी फोर्थ पे मिल रहा है। इस महंगाई के जमाने में यहां के कर्मियों को एक जनवरी 1986 के पे स्केल पर गुजारा करना पड़ रहा है। यहां के कर्मियों का वेतन आज भी 7,000 से 15,000 रुपए के बीच है, जबकि स्टेट के दूसरे इंस्टीट्यूशंस मेंकाम कर रहे कर्मियों को सिक्स्थ पे मिल रहा है। अगर यहां के कर्मियों को भी सिक्स्थ पे का लाभ मिलता, तो यहां का हरेक कर्मी कम से कम 25,000 रुपए की तनख्वाह उठा रहा होता। डिपो के एक कर्मी ने बताया कि पिछले तीन महीनों से यहां के कर्मियों को पेमेंट भी नहीं मिला है। कर्जा लेकर हमलोग गुजारा कर रहे हैं।

9 लाख है मंथली इनकम
रांची डिपो के सुपरिंटेंडेंट उमेश कुमार सिंह बताते हैं कि 11.66 एकड़ में फैले इस डिपो से केवल आठ गाडिय़ां चलती हैं। इससे मंथली 9 लाख की आमदनी होती है। वहीं, इनके संचालन में 6 लाख 70 हजार रुपए का खर्च आता है। यहां से चलनेवाली बसों में एक रांची से पटना, एक गुमला से पटना, 3 रांची से गया और तीन बसें रांची से टाटा के लिए चलती है।