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जानकारी: हार्ट अटैक और रोड एक्सीडेंट के मामलों में कारगर है CPR तकनीक

SRN Medical college के डॉ। दिलीप चौरसिया ने कायम की मिसाल, किए गए सम्मानित

vineet.tiwari@inext.co.in

ALLAHABAD: जिंदगी का मोल इमरजेंसी के हालात में समझा जा सकता है। रोड एक्सीडेंट या हार्ट अटैक होने पर आपका एक प्रयास किसी पीडि़त की जान बचा सकता है। हम बात कर रहे हैं सीपीआर (कार्डियक पलमोनरी री सस्टिनेशन) की। यह एक ऐसी विधि है जिसकी जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को होनी चाहिए। एमएलएन मेडिकल कॉलेज के यूरोलॉजी विभाग के प्रो। दिलीप चौरसिया इस अनोखे प्रयास की जीती-जागती मिसाल हैं। उन्होंने अभी तक एक्सीडेंटल मामलों में राह चलते डेढ़ दर्जन घायलों की जान बचाई है। इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया है।

आप भी न करें नजरअंदाज

रोड एक्सीडेंट में कार्डियक अरेस्ट का शिकार हो चुके 15 पीडि़तों को सीपीआर के जरिए जीवन दे चुके डॉ। चौरसिया कहते हैं कि ऐसी स्थिति में किसी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। बिना देरी किए जरूरतमंद को सीपीआर देने से उसे मरने से बचाया जा सकता है। अक्सर देखा गया है कि रोड एक्सीडेंट या हार्ट अटैक के शिकार लोगों को तत्काल फ‌र्स्ट एड नहीं मिलने से जान चली जाती है। डॉ। चौरसिया ने एमएस की पढ़ाई के दौरान 1994 में पहली बार सीपीआर देकर दो लोगों की जान बचाई थी। अंतिम मामला वाराणसी-इलाहाबाद हाईवे का था। अमूल्य योगदान के चलते उन्हें 25-26 मार्च को बरेली में आयोजित यूरोलॉजिकल एसोसिएशन ऑफ उप्र एंड उत्तराखंड की कांफ्रेंस में अवार्ड देकर सम्मानित किया गया। यह अवार्ड उन्हें 'फार एक्स्ट्रा आर्डिनरी करेज टू हेल्प ए रोड साइड एक्सीडे्रंट विक्टिम' के लिए प्रदान किया गया।

पढ़ाई के दौरान मिली प्रेरणा

डॉ। चौरसिया कहते हैं कि एमएस की पढ़ाई के दौरान मेडिकल कॉलेज में आने वाले एक्सीडेंट के मामलों में अधिकतर मरीजों की डेथ हो चुकी होती थी। तब उन्हें लगा कि अगर इन्हें समय पर सीपीआर दिया गया होता तो जान बचाई जा सकती थी। उनकी मदर इन लॉ की डेथ भी रोड एक्सीडेंट में हुई थी। वह कहते हैं कि टाइमली सीपीआर मिल जाए तो रोड एक्सीडेंट में घायल 60 फीसदी मरीज बच सकते हैं। वर्ष 1994 में चंडीगढ़-अंबाला हाईवे पर एक बस और मारुति की टक्कर में दो घायलों को उन्होंने सीपीआर देकर हॉस्पिटल पहुंचाया था। जबकि, वे खुद एक यात्री बस में थे और दोनों घायलो की जान बचाने के लिए बस ड्राइवर से उनकी बहस तक हो गई थी। वे कहते हैं कि वर्कशॉप के जरिए प्रत्येक व्यक्ति को सीपीआर की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। जनहित में वे खुद अपने स्टूडेंट्स को इसकी ट्रेनिंग समय-समय पर देते रहते हैं।

क्या है सीपीआर

एक्सीडेंटल मामलों में कार्डियक अरेस्ट की स्थिति में हार्ट काम करना बंद कर देता है

इससे ब्रेन तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचती और मरीज की जान चली जाती है

सीपीआर देने पर हार्ट दोबारा काम करने लगता है और ब्रेन तक ऑक्सीजन पहुंचने से मरीज जिंदा हो जाता है

इसमें घटना से पांच मिनट के भीतर पीडि़त की छाती के बीचो-बीच 10 मिनट तक लगातार जोर-जोर से प्रति मिनट 60 से 70 बार प्रेशर दें

एक्सीडेंट होने के दस मिनट के भीतर सीपीआर को अपनाएं

वाराणसी से इलाहाबाद लौटते समय एक बाइक सवार को रोड एक्सीडेंट के बाद गंभीर हालत में पड़ा देखा। सीपीआर देने से उसकी हार्टबीट लौट आई और इस बीच मेरी वाइफ ने 108 एंबुलेंस को फोन करके बुला लिया। घायल के दो मोबाइल फोन मिले, लेकिन दोनों पासवर्ड के जरिए लॉक थे। इससे परिजनों से बात नहीं हो पाई। मेरी अपील है कि ट्रैवलिंग के दौरान अपने फोन को लॉक न करें।

-प्रो। दिलीप चौरसिया

एमएलएन मेडिकल कॉलेज, इलाहाबाद