--स्मॉल इंडस्ट्रीज को डेली चाहिए 300 मेगावाट बिजली, मिल रही सिर्फ 100 मेगावाट

.हाइलाइट्स।

-जेनरेटर चलाने पर तीन गुणा बढ़ जाता है प्रोडक्शन कॉस्ट

-बार-बार लोड शेडिंग से भारी मात्रा में रॉ मैटेरियल हो रहे बर्बाद

-सबसे ज्यादा नुकसान कोल माइंस व प्लास्टिक से जुड़े लघु उद्योग को

-सिर्फ रांची में ही दस हजार से अधिक छोटे उद्योग हैं, जिस पर असर पड़ रहा है।

-रांची में 24 घंटे में 14 से 15 घंटे ही बिजली उद्योगों को मिल रही है

mayank.rajput@inext.co.in

RANCHI (31 March): 24 घंटे बिजली देने का दावा करने वाली सरकार की हकीकत यह है कि राजधानी में बिजली नहीं मिलने के कारण उद्योग-धंधे चौपट हो रहे हैं। झारखंड में बिजली संकट की वजह से लघु एवं कुटीर उद्योगों का हाल खस्ता है। राजधानी समेत राज्य के अधिकतर इलाकों में औसतन 13 से 15 घंटे बिजली गायब रहती है। इस स्थिति में उद्यमियों के सामने उद्योग को बचाए रखना काफी मुश्किल हो गया है। झारखंड स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज के उपाध्यक्ष दीपक मारू ने बताया कि रांची में 10 हजार से अधिक एमएसएमई यूनिट हैं, जो बिजली के कारण बेहाल हैं। बिजली नहीं मिलने से फैक्ट्रियों में रॉ मेटेरियल बर्बाद हो रहा है साथ ही मैन पावर को बैठाकर पैसा देना पड़ रहा है।

6 की जगह 18 रुपए खर्च

लगातार बिजली कटौती से परेशान उद्योग-धंधा पर बुरा असर पड़ रहा है। रांची में फैक्ट्री चलाने वाले अंजय पचेरीवाला ने बताया कि लगातार बिजली नहीं रहने के कारण प्रोडक्शन कॉस्ट भी बढ़ जा रहा है। बिजली से हमलोग को छह रुपए 25 पैसे प्रति यूनिट की दर से लागत आती है। लेकिन बिजली नहीं मिलने के कारण हमलोग जेनरेटर से चलाते हैं जिससे 18 से 20 रुपए तक प्रति यूनिट लागत कॉस्ट आ रहा है।

बर्बाद हो रहा रॉ मैटेरियल

निर्मला रोटो प्लास्टिक फैक्ट्री के मालिक दीपक मारू ने बताया कि सबसे अधिक प्लास्टिक उद्योगों को असर पड़ रहा है। प्लास्टिक का मैटेरियल बनाने के लिए जो रॉ मैटेरियल होता है वो कंटीन्यू मशीन चलने से बनता है। लेकिन दिन भर में नौ से दस बार लाइट कटती है। इसके साथ ही मशीन बंद हो जाती है और थोड़ी देर मशीन बंद रहने के कारण रॉ मैटेरियल हार्ड हो जाता है जो किसी काम का नहीं बचता है। हर दिन हमलोगों को बिजली नहीं रहने से घाटा हो रहा है।

कैसे पूरा होगा मोमेंटम झारखंड

कारोबार की राह सुगम बनाने की फेहरिस्त में झारखंड वैसे तो टॉप पर है। लेकिन जो जमीनी हकीकत है वो झारखंड को पीछे की ओर धकेलती दिखाई पड़ती है। हालांकि सरकार की तरफ से लघु उद्यमियों को आश्वासन दिया जा रहा है कि उन्हें जल्द बिजली की समस्या से निजात मिल जाएगी। एक ओर सरकार झारखंड में उद्योग लगाने के लिए इंडस्ट्रियलिस्ट को बुला रही है, लेकिन अभी जो लोग फैक्ट्री चला रहे हैं उनकी परेशानी ही खत्म नहीं हाे रही है।

हर फैक्ट्री पर असर

भीषण गर्मी में कभी लोकल तो कभी इमरजेंसी रोस्टरिंग के कारण बढ़ रहे बिजली संकट से सामान्य जनजीवन वैसे ही बेहाल है। राजधानी में पर्याप्त सप्लाई नहीं मिलने से बिजली चालित लघु उद्योग-धंधों के काम पर भी बुरा असर पड़ रहा है। चाहे आटा-मसाला चक्कियां हों, प्लास्टिक फैक्ट्री हो, खराद मशीनें हों या फि र ऑटो वर्कशॉप, कटौती के दौरान वहां सन्नाटा पसर जाता है। सुबह से लेकर शाम तक नौ घंटे की नियमित बिजली कटौती के अतिरिक्त कभी दोपहर तो कभी आधी रात तीन घंटे की आपात कटौती से लघु उद्यमियों का धंधा बुरी तरह चौपट हो रहा है। दिक्कत तब और बढ़ जाती है जब नियमित कटौती के साथ इमजर्ेंसी रोस्टरिंग जोड़ दी जाती है।

सुपरिटेंडिंग इंजीनियर अजीत कुमार से बातचीत

सवाल: बिजली नहीं रहने से उद्योग धंधे पर पड़ रहा है असर?

जवाब: अभी मेंटेनेंस और एपीडीआरपी का काम चल रहा है, इसीलिए थोड़ी परेशानी है।

सवाल: उद्योगों के लिए कार्मशियल रेट भी अधिक है बिजली नहीं रहने से उनको नुकसान भी हो रहा है। इसके लिए जिम्मेवार कौन है?

जवाब: उद्योग जो इंडस्ट्रीयल एरिया में हैं उनको 20 घंटे तक बिजली दी जा रही है, लेकिन जो बाहर हैं उनको ग्रामीण फीडर से बिजली दी जा रही है। इसलिए थोड़ी कम बिजली मिल रही है।

सवाल: उद्योगों के लिए डेडिकेटेड लाइन कब तक मिल जाएगी?

जवाब: उद्योग को डेडिकेटेड लाइन देने के लिए एपीडीआरपी में काम चल रहा है। यह पूरा होते ही डेडिकेटेड लाइन दी जाएगी।

क्या कहते हैं इंडस्ट्रीयलिस्ट

वर्जन

बिजली नहीं रहने के कारण हमलोगों का उद्योग बेहाल है। फैक्ट्रियों में रॉ मेटेरियल बर्बाद हो रहा है साथ ही मैन पावर को बैठाकर पैसा देना पड़ रहा है। फैक्ट्री चलती रहती है और लाइट कट जाती है तो सारा माल बर्बाद हो जाता है।

दीपक मारू, ओनर, निर्मला रोटो प्लास्टिक फैक्ट्री

बिजली नहीं रहने के कारण हमलोग जेनरेटर से फैक्ट्री चलाते हैं। बिजली से हमलोग को छह रुपए 25 पैसे प्रति यूनिट की दर से लागत आती है। लेकिन बिजली नहीं मिलने के कारण हमलोग जेनरेटर से चलाते हैं जिससे 18 से 20 रुपए तक प्रति यूनिट लागत आती है। बिजली नहीं रहने के कारण तीन गुणा प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ जाता है।

-अंजय पचेरीवाला, बिजनेसमैन