राजकीय चिह्न के लिए आमंत्रित किए मुर्गे के चित्र
प्राचीन काल में एक राज्य में राजकीय निशान के लिए राजा ने चित्र आमंत्रित किए. राज्य की ओर से घोषणा की गई कि मुर्गा राजकीय होगा. जिसका भी चित्र राजकीय चिह्न के लिए चुना जाएगा उसे राज चित्रकार का दर्जा दिया जाएगा. साथ ही भरपूर इनाम भी दिया जाएगा. बस फिर क्या था अगले दिन हजारों चित्र दरबार में विचार के लिए आ गए. एक-एक करके चित्र देखे गए. हर एक चित्रकार का मुर्गा पहले वाले से ज्यादा सुंदर दिखता था. सब संशय में पड़ गए. निर्णय नहीं हो पा रहा था तब राजा ने राज्य के एक बुजुर्ग चित्रकार को सर्वश्रेष्ठ चित्र का चुनने के लिए बुलवाया. बुजुर्ग चित्रकार ने सभी चित्रों को लिया और एक कमरे में चला गया. थोड़ी देर बाद वापस आने के बाद उसने कहा कि कोई भी चित्र अच्छा नहीं है और कोई भी चित्र राजकीय चिह्न बनने के लायक नहीं है. राजा को यह बात बहुत बुरी लगी. उन्होंने कहा कि एक से बढ़कर एक सुंदर चित्र हैं हमने खुद देखे हैं और आपको कोई पसंद नहीं आया. आखिर आपकी कसौटी क्या है? बुजुर्ग चित्रकार ने कहा कि महाराज मैंने एक मुर्गे के सामने एक-एक करके सभी चित्रों को रखा लेकिन मुर्गे ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इन तस्वीरों को देखकर न तो वह डरा, न ही उनसे लड़ा और न ही उनसे चोंच लड़ाने की कोशिश की. यदि ये तस्वीरें मुर्गे की होती तो उन्हें देखकर मुर्गा जरूर कुछ ना कुछ प्रतिक्रिया देता.
चित्र बनाने की बजाए जंगल में मुर्गों के साथ निवास
राजा ने कहा कि जब इन बातों को आप समझ रहे हैं तो आप ही बना दीजिए. इस पर बुजुर्ग चित्रकार ने कहा कि वह तस्वीर तो बना देगा लेकिन इसमें तीन वर्ष का समय लगेगा. इस पर राजा ने कहा इतना टाइम क्यों? चित्रकार ने कहा महाराज अच्छी तस्वीर के लिए कम से कम इतना टाइम तो देना ही पड़ेगा आखिर राजकीय चिह्न का प्रश्न है. राजा मान गए. एक साल बाद राजा ने अपने गुप्तचरों को बुजुर्ग की खोज खबर लेने भेजा. सारी जानकारी लेकर गुप्तचरों ने राजा को बताया कि बुजुर्ग कोई तस्वीर नहीं बना रहा बल्कि वह तो जंगल में मुर्गों के बीच जानवरों की तरह घूम रहा है. राजा चिंतित हुआ लेकिन कुछ बोला नहीं. दो साल बाद भी गुप्तचरों ने यही सूचना दी. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि वह अब आदमी कम मुर्गों जैसी हरकत ज्यादा कर रहा है. खैर जैसे-तैसे तीन साल बीत गए. राजा की आज्ञा पाकर गुप्तचर उसे जंगल से लाने गए तो उसका व्यवहार एकदम मुर्गों जैसा था. उसे पकड़ने की कोशिश करने लगे तो सभी मुर्गों ने उन पर धावा बोल दिया. सब जान बचाकर वहां से भागे. राजा ने सुना तो दंग रह गया. फिर उसने शिकारियों के दल के साथ सेना भेजी तब जाकर कहीं उसे पकड़ कर दरबार लाया जा सका. राजा ने उससे तस्वीर बनाने को कहा तो उसने जवाब देने की बजाए इधर-उधर गर्दन हिलाकर देखता रहा. राजा ने कई बार उससे सवाल किया लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.

मुर्गों का व्यवहार जाना तब बनी जीवंत तस्वीर
लास्ट में राजा ने उसे नाफरमानी में कोड़े मारने का आदेश दिया. जब उसे बांध कर एक कोड़ा पड़ा ही था कि वह चिल्ला कर बोला महाराज चित्र बनाने के लिए सामान तो मंगवाइए. खैर उसे खोल कर चित्रकारी के सामाने लाए गए. उसने कुछ मिनटों में ही एक जानदार मुर्गे की तस्वीर बनाकर राजा के सामने पेश कर दी. चित्र वाकई सजीव लग रहा था. जब उसके सामने मुर्गे लाए गए तो प्रतिक्रिया स्वरूप वे उस चित्र वाले मुर्गे को देखकर भाग गए. राजा ने इसकी वजह पूछी तो उसने कहा कि महाराज मुझे मुर्गों के हाव-भाव जानने समझने में तीन वर्ष लग गए. यही जानने के लिए मैं उनके साथ रात-दिन रह रहा था. अब राजकीय चिह्न बनाना था तो वह मुर्गों में सबसे प्रभावशाली होना चाहिए. अब मैं मुर्गों के बारे में सबकुछ समझता हूं कि कोई मुर्गा दूसरे को डराने के लिए अपने पंखों और सिर को किस तरह हिलाता है. दूसरा उससे लड़ने के लिए किस तरह पंखों को फैलाकर उसकी चुनौती स्वीकार करता है. आपस प्यार-दुलार के लिए वे अपने पंखों, सिर और पैर से किस तरह के हाव-भाव प्रकट करते हैं. वैसा ही मैंने इस चित्र में बनाया है.