-गुरु गोविंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व गुरुद्वारों में हुए विशेष आयोजन

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LUCKNOW:

सर्वधर्म की रक्षा के लिए अपनी शहादत देने वाले सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के 350 वें प्रकाशोत्सव को राजधानी में हर्षोल्लास से मनाया गया। इस मौके पर गुरुद्वारों की विशेष सजावट की गई.श्रद्धालुओं ने शबद कीर्तन के द्वारा गुरु महिमा का गुणगान किया।

शबद कीर्तन से गूंजे गुरुद्वारे

नाका और यहियागंज गुरुद्वारे को विशेष रूप से सजाया गया था। नाका में अमृतसर दरबार साहिब से आए रागी भाई बखशीश सिंह और भाई हरजीत सिंह ने गोबिंदा गुन गाओ दयालागुरु की टेक रहो दिन रात जैसे शबद गायन कर संगतों को निहाल किया। उधर यहियागंज गुरुद्वारा में भी रौनक देखते ही बन रही थी। सुबह 5 बजे से ही लोगों का आना शुरू हो गया था। हजारों की संख्या में सभी धर्म के लोगों ने गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेक गुरु घर का लंगर चखा। देर रात 1.20 पर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी पर गुलाब के फूलों की वर्षा हुई। गंगा नगर से आये रागी भाई गगनदीप सिंह जी व रागी भाई कुलदीप सिंह ने शबद-कीर्तन द्वारा संगतों को निहाल किया। ज्ञानी बलविन्दर सिंह जी ने गुरु महाराज के जीवन पर प्रकाश डाला। संगतों ने गुरुद्वारा साहिब में हस्तलिखित श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी एवं गुरु महाराज के हुक्मनामों के भी दर्शन किये। दिन भर गुरु का लंगर व मिष्ठान प्रसाद वितरित किया गया। सचिव मनमोहन सिंह ने सभी को गुरु राज के प्रकाश पर्व पर बधाई दी है। इसके अलावा मानसरोवर गुरुद्वारे, आलमबाग, सदर, आशियाना, पटेल नगर सहि कई गुरुद्वारों में भी प्रकाशोत्सव पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

यहियागंज गुरुद्वारे में आए थे गुरुविंद सिंह

माना जाता है कि सन्1672 में गुरु गोविंद सिंह अपने मामा के संग राजधानी आए थे। यहां पर उन्होंने यहियागंज गुरुद्वारे में करीब दो माह बिताए थे। गुरुद्वारा के सेवादार सज्जन सिंह बताते हैं कि गुरु गोविंद सिंह अपनी जन्मस्थली पटना साहिब से आनंदपुर साहिब के लिए निकले थे। तब उनकी उम्र महज छह वर्ष थी। इस बीच वह कई स्थानों पर रुके। जिनमें से एक यहियागंज गुरुद्वारा भी है।