नवरात्र में मां दुर्गा के 9 रूपों की होती है आराधना

गणेश जी और मां दुर्गा की आरती से व्रत करें प्रारंभ

Meerut। इस बार शारदीय नवरात्र बुधवार से शुरू हो रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्र ही से ही हिंदू त्योहारों की शुरुआत होती है। नौ दिन तक चलने वाली इस पूजा में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस वर्ष नवरात्रि 9 दिनों की न होकर आठ दिन की है। नवां दिन दशमी के रूप में मनाया जाएगा।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

जिन घरों में नवरात्रि पर कलश स्थापना होती है, उनके लिए शुभ मुहूर्त बुधवार को प्रात: 7.35 से दोपहर 3.35 बजे तक रहेगा। इस दौरान घट स्थापना करना सबसे अच्छा होगा। शारदीय नवरात्रि में कई शुभ संयोग बने रहे हैं। बुधवार को सर्वाधिकसिद्ध योग भी बन रहा है।

नवरात्र पूजन

प्रतिपदा -शैलपुत्री देवी एवं ब्रह्मचारिणी देवी पूजन 10 अक्टूबर, बुधवार

द्वितीया -द्वितीया तिथि का क्षय: 10 अक्टूबर, बुधवार

तृतीया -सिंदूर तृतीया, चंद्र घंटा देवी पूजन, 11 अक्टूबर, गुरूवार

चतुर्थी -कुष्मांडा देवी पूजन, 12 अक्टूबर, शुक्रवार

पंचमी - स्कंदमाता देवी पूजन, उपांगललिता व्रत, 13 अक्टूबर, शनिवार

पंचमी - कात्यायनी देवी पूजन, 14 अक्टूबर, रविवार

षष्ठी - कालरात्रि देवी पूजन, 15 अक्टूबर, सोमवार

सप्तमी - सरस्वती देवी पूजन, 16 अक्टूबर, मंगलवार

अष्टमी - दुर्गाष्टमी देवी पूजन, 17 अक्टूबर, बुधवार

नवमी - महानवमी, सिद्धिदात्री देवी पूजन, 18 अक्टूबर, गुरुवार

दशमी - विजय दशमी, दशहरा पूजन, 19 अक्टूबर, शुक्रवार

अखंड ज्योति का महत्व

अखंड ज्योति को जलाने से घर में हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है। नवरात्र में अखंड ज्योत के कुछ नियम होते हैं। परंपरा के मुताबिक जिन घरों में अखंड ज्योत जलती है, उन परिवारों के लोगों को जमीन पर सोना पड़ता है।

कलश स्थापना व पूजा विधि

हिंदू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता की पूजा में कलश से संबंधित एक मान्यता के अनुसार, कलश को भगवान विष्णु का प्रतिरूप माना गया है। इसलिए सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है।

लोहे के कलश से बचें

जो कलश आप स्थापित कर रहे हैं वह मिट्टी, तांबा, पीतल, सोने या चांदी का होना चाहिए। भूल से भी लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग न करें।

कलश में हल्दी को गांठ, सुपारी, दूर्वा मुद्रा रखी जाती है और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे बालू की वेदी बनाकर कर जौ बोए जाते हैं। साथ ही अन्नपूर्णा देवी का पूजन किया जाता है, जोकि धन-धान्य देने वाली हैं।

पं। राम नरायण, गोल मंदिर, जयदेवीनगर, शास्त्रीनगर

कलश स्थापना के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती से नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कलश स्थापना के दिन ही शैलपुत्री की आराधना की जाती है। इस दिन सभी भक्त सांयकाल में दुर्गा मां का पूजन कर अपना उपवास खोलते हैं।

पं। भगवत गिरी, मंशा देवी मंदिर, जागृति विहार