Lucknow: केस-1
दिन-20 मई 2012, रात 9.30 बजे
स्थान-सहारागंज गेट नंबर चार

नजदीक के चौराहे पर चेकिंग कर रहे पुलिसकर्मियों को एक राहगीर ने इन्फॉर्मेशन दी कि गेट नंबर चार के सामने रोड पर एक काला बैग लावारिस पड़ा है। पुलिसकर्मी चेकिंग छोड़कर मौके पर पहुंचे और बैग को सतर्कता के साथ कब्जे में लिया। जब बैग खोला गया तो उसके भीतर 138 सिम रिलायंस जीएसएम के व 43 सिम एयरटेल के थे.
पड़ताल में पता चला कि सभी सिम प्री-एक्टिवेटेड थे। इन्फॉर्मेशन मिलने पर साइबर क्राइम यूनिट के प्रभारी, सीओ हजरतगंज दिनेश यादव मौके पर पहुंचे और बरामद सिम की जांच शुरू की। अगले दिन सीओ ऑफिस में दोनों सेलफोन कंपनियों के नोडल ऑफिसर्स को बरामद सिम की डिटेल नोट कराकर उनसे इन्फॉर्मेशन मांगी गई कि इन सिमों को किस एजेंसी या एजेंट को जारी किया गया था.
मंगलवार शाम कंपनी के ऑफिसर्स ने पूरी डिटेल इकट्ठा कर पुलिस को सौंप दी। सीओ दिनेश यादव कहते हैं कि कंपनियों से मिली इन्फॉर्मेशन को एनालाइज किया जा रहा है और उसके लीगल आस्पेक्ट्स भी जांचे जा रहे हैं। पुलिस पूरा होमवर्क करने के बाद ही इसके पीछे के जिम्मेदारों पर शिकंजा कसेगी.
केस-2
दिन-8 मई 2012, शाम चार बजे
स्थान-जीपीओ हजरतगंज चौराहा
क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर संजय राय को इन्फॉर्मेशन मिली कि जीपीओ गेट के पास दो एजेंट्स फर्जी आईडी प्रूफ तैयार प्री एक्टिवेटेड सिम बेच रहे हैं। उन्होंने अपनी टीम के साथ छापेमारी कर वहां मौजूद दो युवकों को अरेस्ट कर लिया। उनके कब्जे से 37 प्री एक्टिवेटेड सिमकार्ड, 82 कैफ  फार्म, 82 आईडी की फोटो कॉपी,  अलग-अलग लोगों की 80 फोटोग्राफ्स व एक मोबाइल फोन बरामद हुआ.
इंक्वायरी में पता चला कि दोनों जालसाज बीएसएनएल के फ्रेंचाइजी केपी मित्तल से संबंधित हैं और सिम एक्टीवेशन का काम करते हैं। हालांकि इन अरेस्टिंग के बाद पुलिस की जांच में भी ढिलाई नजर आने लगी और उसमें कोई डेवलपमेंट देखने को नहीं मिला.
नक्सलियों तक पहुंचे सिम कार्ड
इंस्पेक्टर राय के मुताबिक, गिरफ्त में आए आरोपी फर्जी आईडी प्रूफ तैयार कर सिम एक्टीवेट करा लेते थे और इन्हें अनजान लोगों को 500 से 700 रुपये तक बेच देते थे। राय के मुताबिक उन्हें बीते दिनों इन्फॉर्मेशन मिली थी कि यूपी, बिहार, झारखण्ड के नक्सली  लखनऊ से एक्टीवेटेड सिम इस्तेमाल कर रहे हैं.
आशंका जताई जा रही है कि इन्हीं एजेंटों से नक्सली के एजेंट्स ने सिम खरीदे और उन्हें नक्सलियों को सप्लाई कर दिये। जालसाजों ने अब तक करीब 2500 सिम बेचे हैं। अब जांच कराई जा रही है कि इनके बेचे गये कितने सिम नक्सलियों के हाथ लगे हैं.
पहले भी हुआ है मामला
कई महीने पहले आशियाना के पास पुलिस ने छापा मारकर मोबाइल कंपनियों के तीन सेल्स एक्जीक्यूटिव को गिरफ्तार किया था। इनके पास से राना ट्रेडर्स, साहिल जनरल स्टोर, राहुल कूल कार्नर, जीएस बिजनेस, साहू जनरल स्टोर, जायसवाल ट्रेडर्स और राजपूत ब्रदर्स की फर्जी मुहरें, डेमो सिम, एफआईसी फार्म आदि बरामद हुए थे.
हालांकि  इन मुहरों के असली दुकानदारों का पता नहीं चल सका। उस समय मामले की जांच जोरशोर से शुरु की गई पर साल भर से ऊपर बीत चुकने के बाद शायद पुलिस डिपार्टमेंट ने फाइल को मेज के नीचे डाल दिया है। किसी को भी अब इसका ख्याल नहीं है.
ऑफिसर्स हैं शामिल!
इन तीन सेल्स एग्जीक्यूटिव को पकडऩे के बाद एएसपी क्राइम ब्रांच ज्ञानप्रकाश चतुर्वेदी ने कहा था कि टेलीकॉम कंपनियां मुनाफे की लालच में देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। प्री एक्टीवेटेड सिम का धंधा काफी तेजी से और बड़े पैमाने पर चल रहा है। कंपनियों को कई बार इस संबंध में निर्देश दिए जा चुके हैं कि एड्रेस का सही वैरीफिकेशन किए बगैर सिम न इश्यू करें पर मुनाफे के लिए सारे नियम कानूनों को ताक पर रखा जा रहा है.
उन्होंने यह भी कहा था कि तीनों के पकड़े जाते ही उनके पास तमाम सिफारिशी कॉल आई थीं। इन काल करने वालों में कंपनियों के कई आला अधिकारी भी थे। ऐसे में यह तो साफ है कि यह सारा मामला कंपनी ऑफिसर्स की देखरेख में चल रहा है। सूत्रों की मानें तो टारगेट पूरा करने और प्रमोशन पाने की चाहत में कंपनी के अधिकारी प्री एक्टीवेटेड सिम और गलत आईडी पर सिम बेचे जाने पर रोक लगाने में इंट्रेस्ट नहीं ले रहे हैं.
भुलाए गए निर्देश
पूर्व एएसपी क्राइम ज्ञानप्रकाश चतुर्वेदी ने उस वक्त सेल्स एक्जीक्यूटिव के पकड़े जाने के बाद सारी टेलीकॉम कंपनियों के आला ऑफिसर्स की मीटिंग कर निर्देश दिए थे कि कंपनी अधिकारी संयुक्त रूप से प्री एक्टीवेटेड सिम के संबंध में डीलर्स के यहां चेकिंग करेंगे। इस पर कंपनी के ऑफिसर्स ने पुलिस विभाग की ओर से ब्यौरा मांगने के लिए एक सेंट्रलाइज्ड टीम का सुझाव दिया था। पर, इसके कुछ दिनों बाद ही उनका ट्रांसफर हो गया और जांच में जुटी टीम अपने पुराने ढर्रे पर लौट आई और सारे दिशा निर्देश भुला दिए गए.
अपराधों में होता है ऐसे सिम का इस्तेमाल
फर्जी सिम कार्ड का इस्तेमाल करके अपराधों को अंजाम देने का चलन भी तेजी से बढ़ा है। लखनऊ में हुए शुभम के अपहरण में फर्जी सिम का ही इस्तेमाल किया गया था। आरोपी बबलू ने जिस सिम से फिरौती की मांग की थी वह बस्ती के अर्जुन नाम के व्यक्ति का था। फर्जी आईडी के चक्कर में पुलिस को हुई देरी महंगी पड़ी और शुभम का मर्डर कर दिया गया.
एक अन्य मामले में कुछ महीने पहले ही दो गुटों में मारपीट और जानलेवा हमले में आरोपी पूर्व मंत्री रामअचल राजभर के पुत्र भी फरारी के समय फर्जी आईडी के सिम का इस्तेमाल कर रहे थे। इससे पुलिस को उन्हें पकडऩे में दिककत आ रही थी। जब तक उनका पता चलता वे दूसरा सिम लेकर अपनी लोकेशन बदल लेते थे.
क्रिमिनल एक्टिविटीज में फेक आईडी वाले सिम कार्ड का इस्तेमाल होने से पुलिस को इन अपराधियों को पकडऩे में काफी परेशानी उठानी पड़ती है। जब पुलिस उनके सिम का पूरा ब्यौरा निकालकर संबंधित पते पर पहुंचती है तो उसे पता चलता है कि वह गलत दिशा में आगे बढ़ रही थी। इससे उसका समय भी बरबाद होता है.

मामले में पड़ताल जारी है। कंपनियों से डिटेल मांगी गई है और रिलेटेड डाक्यूमेंट्स की भी छानबीन हो रही है। जल्द ही हम नतीजे पर पहुंचेंगे। मामले में दोषी किसी को भी छोड़ा नहीं जाएगा.
दिनेश यादव, प्रभारी साइबर क्राइम यूनिट

Reported By: Pankaj Awasthi