मौत से भला किसकी यारी है, आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी है। अपनी विभिन्न कृतियों से सिटी के साहित्यिक कोष को समृद्ध करनेवाले साहित्यकार प्रेमचंद मंघान अब हमारे बीच नहीं रहे.  सैटरडे की लेट नाइट अपने चहेतों को छोडक़र उन्होंने सदा के लिए अपनी आखें मूंद ली। वे 52 वर्ष के थे। उनके निधन से साहित्यकार समाज शोकाकुल हो उठा। संडे को स्वर्णरेखा बर्निंग घाट पर हजारो नम आखों ने उन्हें अंतिम विदाई दी। प्रेमचंद मंधान का जन्म वर्ष 1961 में हुआ था। वे 1985 से बिष्टुपुर स्थित तुलसी भवन से जुड़े। तुलसी भवन की पत्रिका तुलसी प्रभा की जिम्मेवारी भी उनके कंधे पर थी। बाद में उन्होंने जटायु पत्रिका भी निकाली। प्रेमचंद मंधान गोविंदपुर स्थित दयाल सिटी में रहते थे। सैटरडे को ड्यूटी गए थे। शाम को लौटने के बाद वे खाना खाकर सो गए गए। रात 12 बजे वे टायलेट जाने के लिए उठे थे और वहीं गिर गए। उन्हें तत्काल टाटा मोटर्स हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां रात में ही उनकी डेथ हो गई। उनके लीवर में खराबी थी व कैंसर की भी शिकायत थी।