Promotion ने बढ़ाए दवा के दाम

सेम सॉल्ट फार्मूलेशन और असर सेम होने के बावजूद दवाओं के दामों में इस अंतर की बड़ी वजह है। इसके पीछे फार्मा कंपनियों की अपनी दवा को प्रमोट करने की स्ट्रेटिजी शामिल है। फार्मा एक्सपट्र्स बताते हैं कि फार्मा कंपनियां डॉक्टर्स को पटाकर उनसे अपनी दवा प्रिस्क्राइब कराने में मोटी रकम खर्च करते हैं। यह रकम, इन महंगी दवाओं के मार्जिन से ही पूरी की जाती है। फार्मा कंपनियों के जानकारों ने बताया कि डॉक्टर्स को अक्सर यूएस, यूके का हॉलीडे पैकेज देकर ऑब्लाइज किया जाता है।

सस्ते salt से महंगी दवा

फार्मा कंपनियों के कारनामे सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। ये कंपनियां डीपीसीओ में लिस्टेड लो प्राइस वाले सॉल्ट से भी महंगी दवा बना बेचने का कारनामा खुले आम कर रहे हैं। कॉलेस्ट्रोल कम करने की एक दवा के कंपोजीशन के तौर पर एटोरवास्टेटिन कैल्शियम 10 मिग्रा और एसपिरिन 75 मिग्रा का यूज किया जाता है। डीपीसीओ की लो प्राइस वाली लिस्ट में इस सॉल्ट का कंपोजीशन शामिल है। इसकी 10 टेबलेट की कीमत करीब 18 से 20 रुपए है। जबकि इंडीविजुएली एटोरवास्टेटिन कैल्शियम डीपीसीओ लिस्ट में शामिल नहीं है। ऐसे में कई कंपनियां सिर्फ एटोरवास्टेटिन कैल्शियम 10 मिग्रा से ही नई दवा बनाकर इसे मार्केट में 87 रुपए तक में बेच रही है।

Salt के नाम से बिकें दवाएं

फार्मा कंपनियों की आपसी प्राइस वार में पिस रहे जरूरतमंदों को राहत देने में सरकार भी बेबस है। हालांकि दवाओं को ब्रांड नेम के बदले सॉल्ट नेम से बेचे जाने पर इस प्राइस वार को रोका जा सकता है। डॉक्टर्स अगर प्रिस्क्रिप्शन में सिर्फ दवा का सॉल्ट नेम लिखें, तो पेशेंट मेडिकल स्टोर पर उसी सॉल्ट की सबसे सस्ती दवा ले सकेगा। जानकारों ने बताया कि सरकार की ओर से ऐसी मुहिम शुरू भी की गई थी, लेकिन फार्मा कंपनियों की दखलंदाजी से यह मुहिम दम तोड़ गई।