मनाली (आईएएनएस)। बर्फबारी और खराब मौसम की वजह से कई-कई महीनों तक दुनिया से कटी रहने वाली दुर्गम लाहौल घाटी की आज सूरत बदल गई है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जून 2000 को हिमाचल में रोहतांग सुरंग की नींव रखी गई थी। इससे यहां के बाशिंदों को एक सुकून दिखा था कि इसके निर्माण से यहां जन जीवन सहज हो जाएगा। लाहौल-स्पीति में आर्थिक क्रांति के नए युग का आगाज होने के साथ ही यहां पर्यटन को और ज्यादा बढ़ावा मिलेगा। लगभग 18 साल बाद आज जब यह सुरंग बनकर तैयार हुई और अगले साल मई-जून में इसका शुभारंभ होने वाला है तो अटल जी इस दुनिया को अलविदा कह गए।

अटल जी से उनकी अच्छी बात होती

ऐसे में स्थानीय निवासी बेहद दुखी हैं। उनका कहना है कि दुनिया के लिए यह सुरंग महज एक सुरंग होगी लेकिन अटल जी ने इसे दोस्ती की सुरंग बनाया था। इस सुरंग के पीछे की एक दिलचस्प कहानी भी स्थानीय नागरिकों के बीच कही जाती हैं। कहा जाता है कि अटल बिहारी ने रोहतांग सुरंग अपने अजीज दोस्त स्वर्गीय टशी के कहने पर बनवाई थी।इस संबंध में स्वर्गीय टशी के बेटे रामदेव कहते हैं कि उनके पिता की अटल जी से मुलाकात आरएसएस के एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान गुजरात के बडोदरा में 1942 में हुई थी। उस प्रशिक्षण के दौरान अकेले बुद्धिस्ट टशी दवा ही थे। अटल जी से उनकी अच्छी बात होती थी।

रोहतांग दर्रा पांच से छह महीने बंद रहता
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दिल में टशी दवा की एक खास जगह बन गई थी। ऐसे में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और टशी ने वाजपेयी से दिल्ली जा कर कई बार मुलाकात की। इस दौरान अटल जी बेहद सहज भाव से उनसे मिलते थे। अपनी इन्हीं मुलाकातों में टशी दवा ने अटल जी के सामने दुर्गम लाहौल घाटी के बारे में चर्चा की थी। इसके बाद ही अटल जी ने इसकी नींव रखी थी। यह सुरंग मनाली से लेह लद्दाख और लाहौल-स्पीति से जोड़ने वाली है। यह हिमाचल प्रदेश में 13050 फीट ऊंचे रोहतांग दर्रे पर बनी है। बता दें कि बर्फबारी के कारण करीब रोहतांग दर्रा पांच से छह महीने बंद रहता है।

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