- 16 साल में जेलों में बंद 186 कैदियों की चली गई जान

- कुपोषण और बीमारी से हुई मौतें, नहीं मिल पाया उपचार

>DEHRADUN: सूबे की जेलों में सजा काट रहे बंदियों को अघोषित मौत की सजा मिल रही है। आंकड़े तो यही कहते हैं। पिछले क्म् सालों में सूबे की अलग-अलग जेलों में बंद क्8म् बंदियों की मौत हो चुकी है। मौत की वजह कुपोषण और टीबी जैसी बीमारियां मुख्य कारण रही हैं। इसके बावजूद कैदियों के उपचार के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए।

टीबी से हुई सबसे ज्यादा मौतें

आरटीआई से मिली जानकारी से साफ हुआ है कि ज्यादातर बंदियों की मौत ट्यूबरकुलोसिस से हुई है, जिसके लिए कुपोषण जिम्मेदार है। जानकार बताते हैं कि जेलों में समय पर पेटभर भोजन न मिल पाना भी कुपोषण का कारण है, जिसके कारण बंदी टीबी के संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। आरटीआई में ही टिहरी जेल में एक बंदी के एचआईवी संक्रमित होने की सूचना भी सामने आई है, जबकि एक अन्य बंदी की टीबी से मौत हो चुकी है और एक टीबी से पीडि़त है। रुड़की जेल में भी टीबी के कारण मौत की पुष्टि हुई है। चमोली जेल में एक कैदी की कैंसर से मौत हुई है। सितारगंज और हरिद्वार में सजा काट रहे दो-दो कैदी टीबी से पीडि़त हैं। दून की सुद्धोवाला जेल में भी कुछ बंदी बीमारी से पीडि़त बताए जा रहे हैं, जिन्हे मुक्त कराने के लिए शासन से मांग की गई है।

डॉक्टर्स की नहीं हुई तैनाती

राज्य की जेलों में मरीजों के उपचार के लिए डॉक्टर्स के क्0 पद स्वीकृत किए गए थे। इनके सापेक्ष जेलों में एक भी परमानेंट डॉक्टर की नियुक्ति नहीं हो पाई। संविदा पर कभी-कभी डॉक्टर जेलों में तैनात किए जाते हैं। ऐसे ही फार्मासिस्ट्स के क्भ् पदों के सापेक्ष केवल 7 फार्मासिस्ट ही जेलों में तैनात हैं।

कहां, कितने बंदियों की मौत

-देहरादून--म्ख्

-हरिद्वार--म्7

-हल्द्वानी--म्ख्

-सितारगंज--क्8

-रुड़की--07