- एक प्याली चाय और दो कंबलों से जेल में ठंड से निपट रहे कैदी

- जेल में कैदियों कों मिलता है सिर्फ दो कंबल, एक ओढ़ने और दूसरा बिछाने के लिए

- ठंड से ठिठुर रहे कैदी घर से मंगा रहे कंबल, रजाई और गर्म कपड़े

- जिनके परिजन नहीं आते मिलने, उन्हें बिना कंबल के ही गुजरानी पड़ रही ठंड

GORAKHPUR: ठंड शुरू होते ही जेल में बंद कैदी भी ठिठुरने लगे हैं। जेल में बंद कैदियों और बंदियों को ठंड से निजात दिलाने के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं हो सका है। कैदियों को ठंड से निपटने के लिए कंबल तो दिया जाता है, लेकिन पारा गिरने के साथ खुली जेल की बैरकों में सिर्फ दो कंबलों से ठंड दूर करना कैदियों के लिए बेहद मुश्किल हो रहा है। लिहाजा उन्हें अपने घरों से कंबल और रजाई मंगानी पड़ रही है। वहीं इनमें सबसे अधिक दिक्कतों का सामना तो उन कैदियों को करना पड़ रहा है, जिनके घर से कंबल, रजाई या अन्य गर्म कपड़े मंगाना संभव नहीं है। ऐसे में जेल प्रशासन की ओर से इस ठंड में दिए जाने वाले एक प्याली चाय और दो कंबलों से ही कैदियों को ठंड से मुकाबला करना पड़ रहा है।

बीमार पड़ रहे कैदी

जेल में क्षमता से अधिक बंदी हैं। इसे दिक्कतें हमेशा बनी रहती है। गोरखपुर के अलावा देवरिया, कुशीनगर और गैर प्रांतों के कैदी यहां बंद हैं। जेल प्रशासन बंदियों को लेकर लापरवाह बना है। गुरुवार को जेल में बंद कैदियों से मिलकर बाहर आए लोगों ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से नाम न छापने की शर्त पर जेल प्रशासन की अनदेखी का खुलासा किया। लोगों ने बताया कि कई कैदी ठंड से बीमार है। जेल प्रशासन उनका इलाज नहीं करा रहा है। इससे उनका मर्ज और बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कैदियों के परिजन उन्हें घर से ले जाकर कंबल, रजाई व अन्य गर्म कपड़े मुहैया करा रहे हैं। कैदियों के परिजनों ने बताया कि कई तो ऐसे कैदी हैं, जिनसे मिलने कोई नहीं आता। ऐसे में वह बैरक में बंद अन्य साथियों की मदद से रात गुजार रहे हैं।

कंबल के नाम पर होती है वसूली

इतना ही नहीं बातचीत के दौरान बंदियों से मिलने आए लोगों ने बताया कि जेल प्रशासन की ओर से दो कंबल दिए जाते हैं। एक ओढ़ने और दूसरा बिछाने के लिए। लेकिन एक कंबल से शीतलहर को नहीं काटा जा सकता। ऐसे में अधिकांश तो अपने घरों से मंगा लेते हैं और जो नहीं मंगा पाते वह वहीं पर बंदी रक्षकों को पैसे देकर एक्स्ट्रा कंबल ले लेते हैं। लोगों ने बताया कि लेकिन सैकड़ों बंदी ऐसे भी हैं, जोकि पैसा देने की भी स्थिति में नहीं होते। ऐसे में उन्हें ठंड में ही ठिठुरना पड़ रहा है। नाम न छापने की शर्त पर लोगों ने बताया कि कई बंदियों ने जेल प्रशासन से इसकी शिकायत भी करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें शिकायत करने पर मार खाना पड़ता है। इसके डर से कोई बंदी मुंह नहीं खोलना चाहता।

ठंड से होती हैं मौतें

वहीं, कई बार तो जेल में बंद ठंड कैदियों की ठंड से मौतों के मामले भी सामने आते रहे हैं। जेल सूत्रों के मुताबिक पिछले दस वषरें में जेल में करीब दर्जन भर मौतें हो चुकी हैं। इसमें से एक-दो मौतों को छोड़ दी जाएं तो करीब 60 फीसदी मौतें ठंड में हुई हैं। ऐसे में बाहर तो ठंड से लड़ने के तमाम इंतजाम हैं, लेकिन जेल में कुछ है तो प्याली चाय और दो कंबल। बस इसी के सहारे कैदियों को पूरा जाड़ा काट देना होता है। हालांकि जेल प्रशासन इससे इतर कुछ कर भी नहीं सकता कैदियों के लिए, पर ठंड को देखते हुए इतना पर्याप्त नहीं है। बाहर लाख व्यवस्था होने के बावजूद ठंड तमाम लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। ऐसे में कैदियों पर क्या गुजरती होगी, समझा जा सकता है। अन्य मौसम की अपेक्षा सर्दियां कैदियों पर बेहद भारी पड़ती हैं।

क्षमता से दोगुने हैं बंदी

इतना ही नहीं सिर्फ गोरखपुर जेल में कुल 1792 बंदी हैं। जबकि जेल की क्षमता महज 822 बंदियों की है। इनमें से करीब 300 सजायाफ्ता हैं। यानी कि उन्हें जमानत की भी कोई उम्मीद नहीं है। जेल सूत्रों के मुताबिक इसमें 60 से अधिक अस्थमा के मरीज हैं। इसमें से कुछ कैदियों की दवा भी चल रही है। जबकि 70 से अधिक वृद्ध है। इससे हवा के हल्के झोंके से वह कांप उठते हैं। वहीं, डाक्टरों चिकित्सकों की राय में इस मौसम में आमतौर पर हृदयघात, निमोनिया, ब्रांकाइटिस, जुकाम, सिरदर्द, खासी गले में खराश, इन्फ्लूएंजा, आरएसवी, रेस्पायरेटरी सिनसायशियल वायरस, गठिया व हड्डियों का दर्द जैसी समस्याओं को झेलना पड़ता हैं। ऐसे में व्यक्ति का विशेष ख्याल न रखा जाए तो यह रोग व्यक्ति के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं।

ठंड में कैदियों को कंबल दिया जाता है और शाम के समय एक चाय दी जाती है। ठंड बढ़ने पर कंबलों की संख्या बढ़ा दी जाती है। सुबह की चाय उन्हें नियमित मिलती है। किसी को कोई समस्या रहती है, तो उसका ध्यान दिया जाता है। जेल में अलाव जलवाया जाता है। इसके अलावा कैदियों को और दिया ही क्या जा सकता है।

रामकुबेर सिंह, जेलर