-इस बार सेंट्रल जेल में नहीं मनाई जाएगी होली

-जेल सुपरिटेंडेंट के घर हुई गमी के बाद कैदियों ने लिया फैसला

AGRA। ये आपस में न भाई-बहन हैं, न इनमें खून का रिश्ता है। न ही नातेदार-रिश्तेदार हैं। यही नहीं ये पड़ोसी भी नहीं हैं। यहां तक कि एक गांव या शहर के भी नहीं हैं, लेकिन इनमें जो अपनापन है उसे देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा। हम बात कर रहे हैं उन हजारों बंदियों की जो इस बार सेंट्रल जेल में होली का त्योहार मनाने नहीं जा रहे हैं। वजह है जेल सुपरिटेंडेंट के घर हुई ट्रेजेडी।

गम का है माहौल

सैटरडे को दोपहर एक बजे सेंट्रल जेल में जाकर देखा तो वहां एक अजीब से सन्नाटा छाया हुआ था। बंदी रक्षक और कैदियों के चेहरे मायूस थे। जब उनसे होली का त्योहार मनाने की बात पूछी तो सिर हिलाते हुए मना कर दिया। जब उन्हें पिछले साल होली का हवाला दिया, तो बोले कि बड़े साहब की बहन नहीं रहीं, इसलिए इस बार होली नहीं खेलेंगे।

एक साथ मनाई थी होली

क्भ् साल से जेल में बंद विमल प्रताप सिंह ने बताया कि पिछली होली पर खुद जेलर साहब ने हमारे साथ होली खेली थी। हर साल होली पर विश्वसनीय कैदियों द्वारा चौपाई निकाली जाती है। चौपाई जेल से बाहर कैंपस में सभी घरों के सामने जाती है। डीजे पर डांसकर जमकर मस्ती की जाती है। होली में इस तरह डूब जाते कि रंगों में रंगे सभी एक जैसे ही लगते हैं। दोनों ही एक दूसरे से गले मिलकर मिसाल पेश करते हैं।

स्लोगन होते थे तैयार

वहीं, क्क् साल सजा काट रहे जगवीर सिंह पहलवान का कहना है कि अधिकारियों के नेचर के ऊपर स्लोगन तैयार किया जाता था। रात में ही उनके ऑफिस और क्वॉटर के बाहर लिख दिया जाता है। इस बार ऐसी कोई तैयारी नहीं की है। एक जेलर अधिकतर सिगरेट पीने के आदी हैं। उनके लिए कैदियों ने स्लोगन तैयार किया कि र् सिगरेट पियो सौ बरस जियो, गया जमाना लस्सी का, जेल के एकाउंटेंट हरीश कुमार शुक्ल ज्यादातर बाते गीता के प्रवचन से शुरू करते हैं। पिछली होली पर एक दिन पहले उनके ऑफिस और घर के सामने रामकथा से हरामकथा जैसे स्लोगन लिख दिए थे।

'सुपरिटेंडेंट के घर में ट्रेजडी होने पर सभी भावुक हैं, जेल प्रशासन की तरफ से किसी बंदी पर होली खेलने से मना नहीं किया है। त्योहार का इंतजार एक साल से होता है.'

लाल रत्‍‌नाकर सिंह, जेलर सेंट्रल जेल