- 450 स्कूली वाहन है रजिस्टर्ड

- 1500 से अधिक वाहन हैं शहर में

- 800 रुपए एक किलोमीटर की दूरी का वसूल रहे किराया

- 15 से अधिक बच्चों को फाइव और सेवन सीटर वाहन में बैठाया जा रहा

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- सेवन सीटर और फाइव सीटर वाहनों में 15 से अधिक बच्चों को बैठाया जा रहा

- स्कूली वाहनों के लिए नियम कायदे तो बने, लेकिन सिर्फ कागजों तक ही सिमटे

बरेली. स्कूली वाहनों के लिए नियम कायदे तो बने हैं, लेकिन वह सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गए हैं. जिन वाहनों से बच्चों को स्कूल लाया और ले जाया जा रहा है वह मानकों पर खरा नहीं उतर रहे हैं. वाहनों में बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरा जा रहा है. नियमों को धज्जियां उड़ाकर सेवन सीटर और फाइव सीटर वाहन मे 15 से अधिक बच्चों को बैठा रहे हैं लेकिन इस बारे में ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग दोनों ही चुप्पी साधे बैठे हैं. दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने ट्यूजडे को शहर के कैंट स्थित दो निजी स्कूलों में चलने वाले वाहनों का रियलिटी चेक किया तो हकीकत चौकाने वाली निकली. वाहनों से अग्निशमन यंत्र, फस्ट एड बॉक्स, साइड मिरर भी गायब थे. आइए बताते हैं आपको निजी स्कूल्स में चलने वाले वाहनों की हकीकत..

कोई भी मानक नहीं

कैंट स्थित शहर के बिशप कोनरॉड स्कूल के बाहर बच्चों को लेकर जा रही वैन ड्राइवर के दूसरी साइड वाला मिरर गायब था. वाहन में फायर सेफ्टी उपकरण नहीं थे. फ‌र्स्ट एड के नाम पर कुछ भी नहीं. लेकिन वाहन में बच्चे 14 भरे हुए थे. इसके साथ दर्जनों ऑटो ऐसे लगे हुए थे जिनमें बच्चों को बैठने के लिए भी ठीक से जगह नहीं मिल पा रही थी. लेकिन बच्चों को लटकाए हुए थे.यही हाल रिक्शा से जा रहे बच्चों का था.

सेंट मारिया गौरेटी

कैंट स्थित सेंट मारिया गौरेटी स्कूल के बाहर तो दर्जनों वाहन निजी और कॉमर्शियल यूज नम्बर प्लेट लगाए हुए खड़े थे. कई वाहनों में म्यूजिक सिस्टम भी लगा हुआ था. छुट्टी में फाइव और सेवन सीटर वाहनों में 15 से अधिक ही बच्चे भरे हुए थे. वाहनों में बुरी तरह भरे हुए बच्चे लटक भी रहे थे. लेकिन वाहन ड्राइवर को इस बात को कोई फर्क तक नहीं दिख रहा था.

इन बिन्दुओं पर होती है चेकिंग

- स्कूली वाहन निर्धारित रंग में और उसका कामर्शियल रजिस्ट्रेशन होना चाहिए

-वाहन में फ‌र्स्ट एड बॉक्स और फायर एक्सटिंग्यूशर

-वाहन पर स्कूल से संबंधित नंबर लिखा होना चाहिए

-ड्राइवर का नाम, आईडेंटी कार्ड और फोन नम्बर

-बच्चों के हिसाब से वाहन में सीट की व्यवस्था

-स्कूली बसों का स्कूल परमिट हो

-स्कूली बस में संस्थान का कोई स्टाफ भी मौजूद होना जरूरी

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बोले वाहन ड्राइवर

-स्कूल से नहीं हम अपना वाहन निजी तौर पर चला रहे हैं. वाहन तो सेवन सीटर है लेकिन 10 से अधिक बच्चे नहीं बैठाएंगे तो खर्चा भी नहीं निकलेगा. क्योंकि वाहन का टैक्स तीन माह का 4620 रुपए हो गया है. ऐसे में खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाता.

सुरेन्द्र, वाहन ड्राइवर

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- जब सेवन सीटर वाहन में दस से अधिक बच्चे बैठाता हूं तो भी खर्च निकाना मुश्किल होता है. अब कम बच्चे बैठाएंगे तो फीस बढ़ेगी जब फीस बढे़गी तो उसे पेरेंट्स देने में कतराते हैं. अब खर्चा बढ़ गया है तो वाहन में दस बच्चे बैठाना शुरू कर दिए हैं.

मुसर्रफ, वाहन ड्राइवर

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- स्कूल में दो तरह के वाहन चलते हैं, जिसमें एक तो स्कूल के दूसरे बच्चों के पेरेंट्स खुद अपने स्तर से बच्चों को भेजने के लिए वाहन लगाते हैं. सभी वाहनों में बच्चे अधिक बैठाते हैं. प्रशासन को अधिक बच्चों को बैठाने वालों पर कार्रवाई करना चाहिए.

दीपक अग्रवाल, सीबीएसई को-आर्डिनेटर

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-स्कूली वाहनों में बच्चों को कोई वाहन ड्राइवर बैठा रहा है तो इसके लिए अभियान चलाकर चेकिंग होती है. बगैर मानकों के दौड़ रहे स्कूली वाहनों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इसके लिए बच्चों के पेरेंट्स को भी ध्यान देना चाहिए.

उदयवीर सिंह, एआरटीओ इन्फोर्समेंट