ग्लोबल वार्मिंग का असर

हिमालयी राज्य उत्तराखंड में ग्लेशियर्स की भरमार है। यहां छोटे-बड़े 968 ग्लेशियर मौजूद हैं। केदारनाथ की तबाही के बाद अब पूरे देश में आम लोगों को ग्लेशियर्स की इंपॉर्टेंस के बारे में पता चलने लगा है। हालांकि साइंटिस्ट वर्षों से इन ग्लेशियर्स की स्टडी में जुटे हुए हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर्स के पिघलकर पीछे खिसकने, छोटे होने की बात अक्सर सामने आया करती है, लेकिन 16 जून को जब केदारनाथ के पीछे स्थित चोराबाड़ी ग्लेशियर ने जो कहर बरपाया उसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा.  इस तबाही के बाद अब दूसरे ग्लेशियर्स के बारे में भी वैज्ञानिक सतर्क रहने की बात कह रहे हैं।

गढ़वाल का सबसे बड़ा ग्लेशियर

बताया जा रहा है कि अगर चोराबाड़ी ग्लेशियर के बाद जिस ग्लेशियर पर सबसे ज्यादा खतरा बना हुआ है, वह है गंगोत्री ग्लेशियर। उत्तराखंड के गढ़वाल रिजन का सबसे बड़ा ग्लेशियर कहे जाने वाले गंगोत्री ग्लेशियर कभी भी तबाही मचा सकता है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रोफेसर अनिल कुमार गुप्ता के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का असर केदारनाथ के पीछे चोराबाड़ी ग्लेशियर पर भी दिखा है। ऐसे ही ग्लोबल वार्मिंग का असर दूसरे ग्लेशियरों पर दिख रहा है। क्लाइमेट चेंज होने के कारण ये ग्लेशियर पिघल रहे हैं। गंगोत्री ग्लेशियर पर भी ऐसा असर देखा जा रहा है।

उत्तरकाशी पर खतरा

प्रोफेशर गुप्ता कहते हैं गंगोत्री ग्लेशियर के में खतरनाक तरीके से चेंज आ रहा है। ऐसे में सबसे ज्यादा खतरा पूरे उत्तरकाशी को लेकर है। उत्तरकाशी पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उत्तरकाशी के लिए साइंटिफिक स्टडी की जरूरत है, अन्यथा गंगोत्री ग्लेशियर का खतरा बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो प्रदेशभर में मौजूद 968 छोटे-बड़े ग्लेशियर्स में कई इलाके ऐसे हैं, जहां उनके कई किलोमीटर तक आबादी है। ऐसे में कहा नहीं जा सकता है कि कब ग्लेशियर प्रकोप दिखा दें।

साइंटिफिक तरीके ही उपाय

साइंटिस्ट स्वीकार रहे हैं कि ग्लेशियर्स के टूटने या फिर पिघलने को नहीं रोका जा सकता है। हालांकि वे कहते हैं कि  नेचर से छेड़छाड़ करना हानिकारक साबित हो सकता है। इसके लिए साइंटिफिक तरीके से ग्लेशियर्स से बचने की कोशिश की जा सकती है। प्रदेश में चोराबाड़ी, डोकरानी, गंगोत्री, यमुनोत्री, कैपेनियन, मिलन, सतोपंथ व बाराबरी जैसे 968 ग्लेशियर हैं। ये काफी ग्लेशियर हैं, जिन पर स्पेशल स्टडी की जरूरत है। ताकि समय रहते लोगों को इनके प्रकोप से बचाया जा सके।

वर्जन

केदारघाटी के बाद सबसे अधिक खतरा गंगोत्री ग्लेशियर से है। यहां साइंटिफिक स्टडी की जरूरत है, ताकि पूरे उत्तकाशी को सुरक्षित किया जा सके। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ये ग्लेशियर्स खतरनाक होते जा रहे हैं।

प्रो। अनिल कुमार गुप्ता

डायरेक्टर, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी

बॉक्स खबर

नासा ने दे दिए थे संकेत

अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने करीब एक महीने ही तबाही के संकेत दे दिए थे। वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों का कहना है कि नासा ने सेटेलाइट पिक्चर्स के माध्यम से केदारघाटी के ग्लेशियर में हो रही हलचल को भांप लिया था। इसमें बताया गया था कि केदारनाथ के ऊपर मौजूद चूराबारी और कंपेनियन ग्लेशियर की कच्ची बर्फ से सामान्य से अधिक मात्रा में पानी रिसने लगा था। हालांकि यह रिपोर्ट सही समय पर सही जगह नहीं पहुंच सकी। अगर नासा के संकेतों पर भारतीय एजेंसी द्वारा समय रहते सक्रियता दिखाई गई होती तो इतनी बड़ी तबाही को कम किया जा सकता था।