लकीरें दे रहीं टेंशन

कहते हैं इंसान की लाइफ उसकी हाथ की लकीरों पर निर्भर करती हैं। अभी तक यह किताबों में पढ़ा था लेकिन आजकल साक्षात देखने को मिल रहा है। आधार कार्ड कैंप में पहुंचने वाले कई लोगों को बैरंग वापस लौटना पड़ रहा है और वह भी मशीनों द्वारा प्रॉपरली फिंगर प्रिंट्स स्कैनिंग न कर पाने की वजह से। पब्लिक मशीनों की क्षमता पर सवालिया निशान लगा रही है तो प्रोजेक्ट कंपनी हाथों की लकीरों को दोष देने से नहीं चूक रही। ऐसे में डेली कैंपों से दर्जनों लोगों को मायूस होकर वापस लौटना पड़ रहा है।

इनको है सबसे ज्यादा दिक्कत

आधार कार्ड बनवाने के लिए कैंपों में सुबह से शाम तक सैकड़ों की भीड़ लग रही है। इनमें बच्चच् और बूढ़े भी शामिल हैं। प्रॉब्लम यह है कि इन दोनों के फिंगर प्रिंट स्कैन करने में मशीनें फेल हो जा रही हैं। प्रत्येक कैंप में डेली 20 से 25 लोगों के साथ यह दिक्कत पेश आ रही है। जानकारों का कहना है कि आधार कार्ड प्रोजेक्ट लेने वाली कंपनी जो मशीन यूज कर रही है वह थर्ड जनरेशन की है बल्कि फोर्थ जनरेशन की मशीनों को कैंप में लगाया जाना चाहिए। मौजूदा मशीनों में बच्चच् या बूढ़ों की लकीरों को स्कैन करने में इसीलिए प्रॉब्लम आ रही है।

दोष लकीरों का है, मशीनों का नहीं

आधार कार्ड बनाने वाली कंपनी आवास इंफोटेक के विनोद गुप्ता का कहना है कि यह प्रॉब्लम उन्हीं के साथ पेश आ रही है, जिनकी हाथों की लकीरें (बच्चच् ) डेवलप नहीं हो पाई हैं या जो लोग लोहे का काम या मजदूरी करने से लकीरें घिस गई हैं। ऐसे में मशीनों का कोई दोष नहीं है। वह कहते हैं कि बायोमेट्रिक मशीनें गवर्नमेँट की ओर से प्रोवाइड कराई जाती हैं और इसका साफ्टवेयर भी वहीं से डेवलप होकर आता है। ऐसे में इसमें हमारी कोई फॉल्ट नहीं है।

13 को नगर निगम में बुलाया गया

मशीनों की वर्किंग को लेकर लगातार मिल रही शिकायतों को लेकर नगर निगम ने 13 जनवरी को कंपनी के लोगों को बुलाया भी है। इस दौरान इनसे पूछा जाएगा कि यह प्रॉब्लम क्यों आ रही है। अगर मशीनें खराब हैं तो उनको बदलवाने के निर्देश भी दिए जाएंगे। बता दें कि गवर्नमेंट ने आधार कार्ड के लिए नगर निगम को नोडल एजेंसी बनाया है। फिलहाल डिस्ट्रिक्ट में कुल 96 मशीनों के जरिए कार्ड बनाने का काम किया जा रहा है और 100 नई मशीनों का ऑर्डर भी गवर्नमेंट को भेजा गया है।

निकाल रहे बीच का रास्ता

आवास इंफोटेक वालों ने इस प्रॉब्लम से निजात पाने का बीच का रास्ता निकाला है। कंपनी का कहना है कि ठंड में अक्सर लकीरें ठीक से स्कैन नहंी हो पाती। विजिबिलिटी के लिए कैंपों में वैसलीन रखी जाएगी। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि जिन बच्चच्ें की लकीरें अभी से ठीक डेवलप नहीं हुई हैं। पैरेंट्स उनकी स्कैनिंग न ही कराएं तो बेहतर है। फ्यूचर में इनमें बदलाव हुआ तो आधार कार्ड इनवैलिड मान लिया जाएगा।