स्टूडेंट्स को बुक्स खरीदने पर मजबूर करते हैैं। और रिजल्ट आने पर स्टूडेंट्स के माक्र्स साइंस या कॉमर्स के लायक न हुए तो उसकी स्ट्रीम चेंज कर दोबारा बुक्स खरीदने का प्रेशर बनाते हैं। कुल मिलाकर सब कुछ स्कूल मैनेजमेंट के मुताबिक चलेगा। पेरेंट्स की कहीं सुनी भी नहीं जाएगी

प्रॉफिट के चक्कर में

प्रॉफिट मेकिंग के चक्कर में आजकल स्कूल कुछ भी कर सकते हैं। सिटी के स्कूलों ने बच्चों के भविष्य के साथ भद्दा मजाक किया। हाईस्कूल का रिजल्ट आने से पहले ही 11वीं में एडमिशन कर लिया गया। जब रिजल्ट जारी हुआ तो बच्चे की स्ट्रीम बदल दी गई। पूछने पर बताया गया कि हाईस्कूल में अच्छे नंबर नहीं आए इस लिए स्ट्रीम बदली गई। सवाल उठता है कि रिजल्ट से पहले प्रोविजनल एडमिशन किस नियम के तहत किए गए।

क्या है मामला

सिटी के अधिकतर स्कूलों ने हाईस्कूल का रिजल्ट जारी होने से पहले ही स्टूडेंट्स का एडमिशन 11वीं में कर लिया। बच्चों के पुराने रिकार्ड और उनकी पसंद को देखते हुए साइंस, कॉमर्स और आट्र्स में दाखिला दिला दिया। बता दें कि सीबीएसई की तरफ से भी ये नियम है कि 60 परसेंट से कम वाले को साइंस, 50 परसेंट से कम वाले को कॉमर्स स्ट्रीम नहीं दी जा सकती।

हो गया बहुत खर्चा

इन स्टूडेंट्स को एडमिशन देने के बाद अप्रैल में क्लासेज शुरू कर दी गई। स्टूडेंट्स से किताबें भी खरीदवाई गई, जिन्होंने किताबें नहीं खरीदी, उनको क्लास से निकाल दिया गया। जबरन किताबें खरीदनी पड़ी। इसके बाद उन पर कोचिंग क्लासेज ज्वाइन करने का दबाव बनाया गया। एडमिशन में करीब 14 हजार, किताबों के करीब 5 हजार कोचिंग के फस्र्ट इंस्टालमेंट 10 हजार। हर पेरेंट कम से कम इतना तो खर्च कर ही चुका है।

जब रिजल्ट आया

जब मई में रिजल्ट आया और उसके बाद स्टूडेंट्स जून में स्कूल पहुंचे तो स्कूलों ने बच्चों को क्लास में लेने से इनकार कर दिया। उनको कहा गया कि तुम्हारे नंबर साइंस स्ट्रीम के लायक नहीं है। कॉमर्स में जाओ। जो कॉमर्स में थे उनको आट्र्स में जाने को कह दिया गया। जब ये बात पेरेंट्स को पता चली तो उन्होंने स्कूल में जाकर बात की, लेकिन स्कूल ने सीबीएसई के नियमों का हवाला देते हुए बच्चों को एडमिशन देने से इनकार कर दिया।

आधी फीस ले लो

वेस्ट एंड रोड स्थित एक स्कूल और इसी स्कूल के गल्र्स विंग में ऐसे करीब 110 केस हैं। इन बच्चों को स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन ने सेलेक्टेड स्ट्रीम से निकाल दिया है। स्कूल का कहना है कि या तो पेरेंट्स फीस का आधा अमाउंट लेकर बच्चे का नाम कटवा लें। वरना नंबर के हिसाब से स्ट्रीम में पढ़े। हालांकि, बिना रिजल्ट जारी किए प्रोविजनल एडमिशन के आरोप में स्कूल मैनेजमेंट ने अपनी प्रिंसीपल को भी नौकरी से निकाल दिया है।

कॉमर्स नहीं पढऩी

अजंता कॉलोनी निवासी विवेक वेस्ट एंड रोड स्थित एक स्कूल में पढ़ता है। विवेक का कहना है कि मैं दो महीने से साइंस पढ़ रहा हूं। इसकी कोचिंग भी ले रहा हूं। अब मेरा मन साइंस के लिए मेकअप हो चुका है। मुझे कॉमर्स नहीं पढऩी है। अगर कॉमर्स पढऩी पड़ी तो मैं पढ़ाई छोड़ दूंगा। ये कहानी सिर्फ विवेक की नहीं, सिटी के सैंकड़ों स्टूडेंट्स की है।

"जब स्कूल को ये पता ही नहीं था कि बच्चों को कितने नंबर मिलने वाले हैं। तो फिर उसे प्रोविजनल एडमिशन क्यों दिया गया."

-नेहा भाटिया, पेरेंट

"हमें एडमिशन से पहले ये बताया ही नहीं गया था कि नंबर कम आने पर उनको क्लास से निकाल दिया जाएगा."

-आयुषी शर्मा, पेरेंट

अगर स्कूल या स्टूडेंट में से कोई एक भी श्योर नहीं है तो प्रोविजनल एजमिशन नहीं लेना चाहिए। बिना एडमिशन के बच्चे से फीस भी नहीं लेनी चाहिए। रिजल्ट आने के बाद ही एडमिशन लिया जाए तो बेहतर है।

- एच एम राउत, प्रिसीपल, दीवान पब्लिक

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