- जन औषधि केंद्र से गायब 80 फीसदी दवाएं

- लोगों को नहीं मिल रहा है योजना का लाभ

- कैंसर, शुगर, कैल्शियम, इंप्लांट, एंटीबॉयोटिक दवाओं का अभाव

GORAKHPUR: सस्ती दवाओं की कीमत वहीं जान सकता है, जिसके पास पैसे न हों और उसे दवाओं की सख्त जरूरत हो। शायद यही सोचकर सरकार ने जन औषधि केंद्र खुलवाए थे। मगर लोगों को सस्ती और अच्छी दवाएं उपलब्ध कराने के दावे सिर्फ कागजों में ही हैं, हकीकत में प्रधानमंत्री की यह महत्वकांक्षी योजना व्यवस्था के सामने दम तोड़ती नजर आ रही हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में शहर के जो भी जन औषधि केंद्र हैं, वहां सिर्फ 20 फीसदी दवाएं ही मौजूद हैं। इसमें भी सबसे ज्यादा जरूरी दवाओं का टोटा है, जिससे लोगों की आस टूट रही है और जेब ढीली हो रही है।

38 स्टोर, लेकिन दवा कहीं नहीं

मार्च 2017 में योजना की शुरुआत के बाद प्रदेश में एक हजार मेडिकल स्टोर खोले गए थे। इसमें से एक मेडिकल स्टोर गोरखपुर में भी खुला। अब जिले में इन जन औषधि केंद्रों की संख्या बढ़कर 38 हो चुकी है, लेकिन व्यवस्था की बात करें तो लोगों को अब भी सस्ती दवाओं के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। सरकार ने संख्या तो बढ़ा दी, लेकिन पर्याप्त मात्रा में दवाएं मुहैया नहीं कराई जा सकीं। स्टोर संचालकों के मुताबिक दवाएं मुहैया कराने वाले सेंट्रल वेयर हाउस पर ही इसकी कमी है। प्रदेश में पांच वेयर हाउस हैं। इनमें से गोरखपुर, लखनऊ और आजमगढ़ से दवा मंगाते हैं। तीनों जगहों पर दवाओं की कमी है।

महंगी दवाएं खरीदना मजबूरी

लोगों को सुलभ व सस्ता इलाज के लिए चलाई जा रही योजना पूरी तरह से सुस्त पड़ गई है। शहर में इसके लिए खुले जन औषधि केंद्रों पर दवाइयों की किल्लत हो गई है। इसके चलते यहां दवा के लिए आने वाले लोगों को निराशा ही हाथ लगती है। इन सेंटर्स पर दवाएं न मिलने की वजह से उन्हें मेडिकल स्टोर्स का सहारा लेना पड़ रहा है। जन औषधि केंद्र पर हर रोज 15 से 20 लोग दवाएं लेने आते हैं, लेकिन उन्हें निराशा होना पड़ रहा है। आलम यह है कि इन दुकानों पर अब अलग-अलग कंपनियों की दवाएं और अन्य सामान बेचे जा रहे हैं।

यह हैं कुछ अहम दवाइयां -

-शुगर में उपयोगी होने वाली ग्लिमोप्राइड, मेटफॉर्मिग कंपोजिशन

-कार्डियक वेस्टुलर सिस्टम के लिए उपयोगी कार्वेडिलाल 6.25 एमजी टेबलेट

- एंटी कैंसर की दवा बाइटालूटामाइड टेबलेट 50 एमजी

- मल्टी विटामिन

- कैलशियम

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बॉक्स -

व्यापारियों ने चुना 'ऑप्शन'

लोगों को सस्ती और अच्छी दवाएं मुहैया कराने के लिए चलाई जा रही पीएम की जन औषधि केंद्र की योजना सुस्त हो गई हैं। इन केंद्रों से सस्ती दवाएं पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं। इसकी का नतीजा है कि जन औषधि केंद्र के संचालक ने अपनी अल्टरनेट व्यवस्था कर ली है। दूसरे ब्रांड के सामनों की दुकान खोल ली है, तो किसी ने मेडिकल स्टोर खोलकर महंगी दवाएं रखनी शुरू कर दी है। इस संबंध में जब जन औषधि केंद्र के संचालक से बात की गई तो उनका कहना है कि वेयर हाउस से सस्ती दवाइयों की सप्लाई नहीं होने के चलते यह संकट उत्पन्न हो गया है।

छह माह से नहीं मिल रही सप्लाई

जन औषधि केंदों पर छह माह से सस्ती दवाइयों को टोटा है। जिसके चलते लोग सस्ती दवाइयों से काफी दूर है। संचालकों का कहना है कि सस्ती दवाइयों की सप्लाई वेयर हाउस से की जाती है, लेकिन कंपनी की ओर से सप्लाई नहीं मिलने की वजह से दवाइयों की किल्लत हो रही है।

पीएम की योजना के तहत जन औषधि केंद्र पर मिलने वाली सस्ती दवाएं नहीं मिल पा रही है। जिसकी वजह से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ जा रही है।

जितेंद्र कुमार, प्रोफेशनल

जन औषधि केंद्र पर सस्ती ओर अच्छी दवाएं मुहैया कराने का दावा किया जा रहा है, लेकिन पिछले कई महीनों से इन केंद्रों पर सस्ती दवाएं नहीं मिल रही हैं। जिम्मेदारों को सोचना पड़ेगा।

सुनील शुक्ला, प्रोफेशनल

यह बता पाना मुश्किल है कि जन औषधि संचालकों को दवाएं क्यों नहीं मिल रही है। इसके लिए वेयर हाउस बनाए गए हैं जहां से दवाइयों की सप्लाई मंगाई जाती है। क्या वजह है क्यों नहीं सप्लाई आ रही है। इसके बारे में बता पाना मुश्किल है। हमारी तरफ से सिर्फ लाइसेंस जारी किए जाते हैं।

संदीप चौधरी, ड्रग इंस्पेक्टर