-ईरान के बादशाह

बादशाही छोड़ करते थे इबादत

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PATNA: बीमारियों से निजात पाने के लिए आधुनिक अस्पताल में भी सूफी-संतों में लोगों की आस्था बनी हुई है. इसकी मिशाल बिहार के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच के हजरत किब्ला मिर्जा मुराद की मजार है. यहां ऐसी मान्यता है कि इलाज के लिए पहुंचने वाले लोग दुआ मांगने पहुंचते हैं और गंभीर बीमारी से पीडि़त पेशेंट्स भी अस्पताल से सही सलामत लौटते हैं. ये कहना है अस्पताल में भर्ती होने वाले पेशेंट्स का. दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में आज पढि़ए अंग्रेजी हुकूमत के बाद किस तरह प्रचलित है अस्पताल का मजार.

5 सौ वर्ष पूर्व पहुंचे थे बादशाह

मजार के खादिम सैय्यद मोहम्मद शमीम अख्तर ने बताया कि 5 सौ वर्ष पूर्व ईरान के बादशाह हजरत किब्ला मिर्जा मुराद अपनी बादशाही छोड़कर रोगियों का इलाज करने के लिए यहां आकर इबादत करने लगे. उस समय पटना अजीमाबाद कहलाता था. दुआ मात्र से बीमारियां दूर होने लगी थी. जब अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों ने जाना तो यहां एक अस्पताल खोल दिया. जो बाद में पटना मेडिकल कॉलेज के रूप में विकसित हुआ.

मत्था टेकने से हो गए स्वस्थ्य

सैय्यद मोहम्मद शमीम अख्तर की मानें तो यहां ऐसी मान्यता है कि बच्चा वार्ड में पटना के व्यापारी जीएन वर्मा के बच्चे को डॉक्टर ने जवाब दे दिया था. बच्चा कोमा में था. मजार की मिट्टी बच्चे पर डालने के बाद न सिर्फ वह कोमा से बाहर आ गया बल्कि स्वस्थ्य होकर आज कारोबारी बन चुका है. ऐसे कई उदाहरण हैं.

कई डॉक्टर भी मांगते हैं दुआ

नाम नहीं छापने की शर्त पर पीएमसीएच के एक डॉक्टर ने बताया कि मेजर ऑपरेशन करने से पहले मजार पर कई डॉक्टर आकर पेशेंट के स्वास्थ्य के लिए दुआ मांगते हैं. इतना ही नहीं, पीएमसीएच के अन्य स्टाफ भी नियमित रूप से मजार पर आकर दुआ मांगते हैं.