-आईनेक्स्ट के कैंपेन महिलाओं के लिए पब्लिक यूटिलिटी की व्यवस्था आखिर क्यों नहीं? मुद्दे पर खुालकर रखी अपनी बात

-कहा, बेहतर सुविधा मिले तो थोड़ा बहुत कॉस्ट भी देने से गुरेज नहीं

ALLAHABAD: टॉयलेट और वॉशरूम की व्यवस्था पर अगर बात छेड़ी जाए तो लोग कहेंगे, ये बहुत छोटी प्रॉब्लम है। इससे बड़ी-बड़ी समस्याएं हैं। लेकिन अगर सामाजिक पहलू को ध्यान में रखकर देखा जाए तो ये प्रॉब्लम छोटी नहीं बहुत बड़ी है। ये बात केवल महिलाओं की नहीं, बल्कि आधी आबादी के अधिकार की है। उनके अधिकार पर चर्चा होनी चाहिए। बहस छिड़नी चाहिए। प्रोजेक्ट बनने के साथ ही फाइलें आगे बढ़नी चाहिए। इतना ही नहीं मार्केट और मेन एरिया में पब्लिक यूटिलिटी और टॉयलेट की व्यवस्था होनी ही चाहिए। आईनेक्स्ट ने जब अपने कैंपेन के तहत महिलाओं के लिए पब्लिक यूटिलिटी की व्यवस्था आखिर क्यों नहीं? मुद्दे पर बात की, तो फिर महिलाओं ने कुछ इसी अंदाज में सवालों की बौछार करते हुए अपने हक के लिए आवाज उठाई

व्यवस्था तो बदले

प्रिया नारायण ने अपनी बात की शुरुआत कुछ इस अंदाज में की। उन्होंने कहा कि कवि दुश्यंत कुमार ने कहा था सिर्फ हंगामा खड़ा करना, मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए इस देश के नेताओं और अधिकारियों को भी इस लाइन को फॉलो करना चाहिए। मकसद हंगामा खड़ा करना नहीं बल्कि, व्यवस्था और शहर की बदहाल सूरत को बदलना होना चाहिए। तभी जाकर सूरत बदलेगी

व्यवस्था बेहतर हो तो शुल्क देने में परहेज नहीं

सुषमा अग्रवाल ने कहा कि पब्लिक सेंट्रल गवर्नमेंट, यूपी गवर्नमेंट और लोकल एडमिनिस्ट्रेशन से बेहतर व्यवस्था चाहती है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि गवर्नमेंट और लोकल एडमिनिस्ट्रेशन पब्लिक को खुश करने के लिए सारी व्यवस्था फ्री ऑफ कास्ट करे। बेहतर व्यवस्था के साथ अगर सरकार किसी सुविधा पर थोड़ा बहुत कॉस्ट भी लगाती है, तो पब्लिक पीछे नहीं हटती है। लेकिन व्यवस्था बेहतर होनी चाहिए। अब पब्लिक यूटिलिटी को ही लिया जाए तो लोकल एडमिनिस्ट्रेशन या फिर गवर्नमेंट मार्केट में हाईटेक टॉयलेट बनवा कर अगर रेट फिक्स कर दे, तो पब्लिक को कोई दिक्कत नहीं होगी। खासकर महिलाओं की सबसे बड़ी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी।

मॉल में भी रहती है गंदगी

चौक से लेकर, जानसेनगंज, कटरा मार्केट में कहीं भी पब्लिक यूटिलिटी की व्यवस्था नहीं है। कनक मिश्रा ने सिटी के पुराने मार्केट की व्यवस्था पर सवाल उठाए। कहा कि पुराने मार्केट आज भी पहले की तरह हैं। मॉल्स में ही पब्लिक यूटिलिटी की व्यवस्था है। जहां टॉयलेट और वॉशरूम हैं। लेकिन अगर मेंटेनेंस की बात करें तो यहां पर भी मेंटेनेंस बेहतर नहीं है। मॉल के टॉयलेट में भी गंदगी रहती है। साफ-सफाई की बेहतर व्यवस्था नहीं होती। जिस पर ध्यान देना चाहिए।

मॉर्निग वॉकर लेडिज सबसे ज्यादा होती हैं परेशान

नुसरत राशिद ने कहा कि पब्लिक यूटिलिटी की व्यवस्था न होने से सिटी में दिन की शुरुआत होते ही प्रॉब्लम शुरू हो जाती है। मार्निग वॉकर को ही ले लीजिए। सिटी के जितने भी गार्डेन हैं, वहां जाने वाले मॉर्निग वॉकरों में महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा होती है, और परेशानी भी उन्हें ही सबसे ज्यादा होती है। कंपनी गार्डेन की ही बात करें तो सबसे ज्यादा भीड़ कंपनी गार्डेन में आती है। लेकिन कंपनी गार्डेन में एक भी टॉयलेट या वॉशरूम नहीं है। ऐसे में पर डे सैकड़ों लेडिज को प्रॉब्लम होती है। मेडिटेशन के दौरान कईयों को मेडिटेशन छोड़ कर घर भागना पड़ता है। इस तरह की प्रॉब्लम से पर डे महिलाओं को जूझना पड़ता है। आखिर इस प्रॉब्लम पर किसी का ध्यान क्यों नहीं है।

मोहल्ले से हो शुरुआत

पब्लिक यूटिलिटी की बेहतर व्यवस्था की शुरुआत मोहल्लों से होनी चाहिए। पहले सिटी के पॉश एरिया और मोहल्लों में बेहतर पब्लिक यूटिलिटी बननी चाहिए। इसके बाद थोड़े-थोड़े डिस्टेंस पर मेन मार्केट में टॉयलेट-वॉशरूम बने। ताकि महिलाएं परेशान न हों.बेहतर यूटिलिटी की व्यवस्था भी एक बेहतर संस्कृति को दर्शाती है। जहां किसी को शर्मसार और मजबूर न होना पड़े। फिलहाल मौजूदा दौर में पब्लिक यूटिलिटी की जो व्यवस्था है, वो शर्मसार ही करती हैं। इसके लिए पब्लिक भी जिम्मेदार है। जो मेंटिनेंस पर ध्यान नहीं देती और लापरवाही बरतती है।