RANCHI : पंजाबी- हिन्दू बिरादरी की ओर से हर साल की तरह इस बार भी मोरहाबादी मैदान में भव्य रावण दहन कार्यक्रम का आयेाजन किया जा रहा है। गुरूवार को विजया दशमी के मौके पर रावण दहन होगा। इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री रघुवर दास और विशिष्ठ अतिथि के तौर पर सासंद रामटहल चौधरी, नगर विकास मंत्री सीपी सिंह और रांची मेयर आशा लकड़ा मौजूद रहेंगी।

65 फीट लंबा है रावण

विजया दशमी को मोरहाबादी मैदान में रावण-दहन कार्यक्रम में रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण का पुतला दहन किया जाएगा। इस बार रावण का पुतला 65 फीट, मेघनाथ 55 और कुंभकर्ण का 60 फीट लंबा पुतला बनाया गया है। रावण दहन के कार्यक्रम के अवसर पर पंजाब के कलाकारों के द्वारा गतका, भांगड़ा और गिद्धा डांस पेश किया जाएगा। इसके अलावा रावण-दहन के अवसर पर आतिशबाजी की भी धूम होगी।

1947 से हुआ था आगाज

1947 में आजादी मिलने व देश के बंटवारे के बाद पश्चिमी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में रिफ्यूजी देश के विभिन्न शहरों में बनाए गए कैंपों में आकर शरण लिए थे। रांची रेलवे स्टेशन की ओर जानेवाली सड़क पर खजुरिया तालाब के बगल में एमईएस के रेस्ट कैंप में नार्थ वेस्ट फ्रंटियर के बन्नू शहर से आए कई परिवार ठहराए गए थे। इनका यहां पहला दशहरा था। समाज के मुखिया लाला खिलदा राम भाटिया ने अपने सहयोगियों के साथ रावण के पुतले का निर्माण करवाया। इस पुतले की लंबाई 12 फीट थी। लाला कृष्ण लाल नागपाल, शादीराम भाटिया, कृष्णलाल शर्मा, अमीनचंद सतीजा तथा अशोक नागपाल ने दो- तीन सौ रुपए चंदा जमा कर रावण दहन कार्यक्रम रांची कॉलेज कैंपस में आयोजित किया गया। बन्नू समाज के द्वारा रावण दहन का कार्यक्रम इसी मैदान में दो वर्षो तक चला। रावण दहन कार्यक्रम में शिरकत करने वाले लोगों की संख्या भी हर साल बढ़ती गई, जो आजतक जारी है।

1955 तक सिर्फ रांची में रावण दहन

1955 तक बिहार में केवल रांची ही ऐसा स्थान था, जहां रावण दहन कार्यक्रम होता था। 1950 से 1955 तक रावण दहन का कार्यक्रम कचहरी रोड स्थित शिफ्टन पेवेलियन में किया जाने लगा, क्योंकि लोगों की संख्या को देखते हुए रांची कॉलेज परिसर छोटा पड़ने लगा था। इस दरम्यान रावण दहन कार्यक्रम पर करीब 15 से 18 हजार रुपए खर्च किए जाते थे। लाला खिलदा राम भाटिया के निधन के बाद दशहरे की कमान कृष्ण लाल नागपाल ने संभाल ली। इनकी टीम खुद रावण का पुतला बनाती थी। पुतला बनाने का काम पहले रेस्ट कैम्प और बाद में डोरंडा स्थित राममंदिर में होने लगा था। यहां यह बताना जरूरी है कि 1955 तक रावण का मुंह गधे के मुंह के जैसा बनाया जाता था। बाद में इसे मानव मुखौटा का रूप दिया गया।

लाखों में पहुंचा खर्च

रावण दहन कार्यक्रम की लागत में वृद्धि को देखते हुए बन्नुवाल समाज ने इसका जिम्मा पंजाबी हिन्दू बिरादरी के धीमान जी, लाला राधाकृष्ण विरमानी, लाला ईश्वर दास आजमानी और लाला कश्मीरी लाल का सौंप दिया। तभी से लेकर आजतक पंजाबी -हिंदू बिरादरी रावण दहन कार्यक्रम आयोजित करती आ रही है। 1958 से 1960 के दौरान बारी पार्क छोटा पड़ने के कारण रावण दहन का आयोजन स्थल राजभवन के सामने वाले मैदान(एनसीडीसी दरभंगा हाउस अब नक्षत्र वन )कर दिया गया। बाद में रावण के पुतले के साथ मेघनाथ और कुंभकर्ण का भी पुतला दहन की परंपरा शुरू हुई। पुतले की ऊंचाई 40 फुट से 60 फुट तक पहुंच गई। खर्च भी लाखों में पहुंच गया। अब रावण दहन का आयोजन मेकॉन, एचईसी और मोरहाबादी में हो रहा है, लेकिन पंजाबी-हिंदू बिरादरी का रावण दहन का आयोजन मोरहाबादी मैदान में हो रहा है।

एचईसी और अरगोड़ा में भी होगा रावण दहन

मोरहाबादी मैदान के अलावा एचईसी और अरगोड़ा में भी रावण दहन कार्यक्रम आयोजित किया गया है। विजया दशमी को मोरहाबादी मैदान के रावण दहन कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास अरगोड़ा मैदान में आयोजित रावण दहन कार्यक्रम भी भाग लेंगे। रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन एचईएसी में भी किया गया है। यहां पर पर 45 फीट ऊंचा रावण का पुतला दहन जाएगा।