देहरादून, दून मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट को धरातल पर आने से पहले ही नया झटका लगा है। प्रोजेक्ट पर करीब 20 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद अब आल्टरनेटिव स्टडी कर मेट्रो की फिजिबिलिटी पर मंथन होगा। स्टडी के बाद ही तय हो पाएगा कि दून में मेट्रो मुफीद रहेगी या फिर इसका कोई और विकल्प तलाशा जाए। केंद्र सरकार की अधिकृत एजेंसी यूएमटीसीएल ने इसे लेकर स्टडी शुरू कर दी है। दावा किया जा रहा है कि 15 दिन के भीतर स्टडी रिपोर्ट सामने आ जाएगी और मेट्रो के भाग्य का फैसला हो पाएगा।

अब तक कोई रोलआउट नहीं

पिछली सरकार के कार्यकाल में दून मेट्रो प्रोजेक्ट का खाका तैयार हुआ था, इसके बाद दून मेट्रो कॉर्पोरेशन का गठन किया गया था। दिल्ली मेट्रो में कार्य कर चुके जीतेंद्र त्यागी को तत्कालीन सरकार ने कॉर्पोरेशन का एमडी नियुक्त किया था। करीब ढाई वर्ष से प्रोजेक्ट को लेकर मंथन जारी है। प्रोजेक्ट को लेकर 800 पेज की डीपीआर तैयार की गई है, कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान भी तैयार किया गया। इसके बाद प्रोजेक्ट को पहला झटका तब लगा जब मेट्रो को खर्चीला बताते हुए इसके विकल्प के रूप में लाइट रेल ट्रांजिट (एलआरटी) व पर्सनल रैपिड ट्रांजिट (पीआरटी) पर स्टडी शुरू हुई। इसे लेकर शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक के नेतृत्व में अफसर, विधायकों की टीम ने लंदन और जर्मनी का दौरा भी किया और अपनी रिपोर्ट शासन को दी, जिसमें एलआरटी को बेहतर विकल्प बताते हुए शासन को रिपोर्ट दी थी। लेकिन, इस विकल्प को लेकर शासन स्तर पर रोलआउट नहीं हो सका।

सीएम के बयान से असमंजस

हाल ही में पांच दिन पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक कार्यक्रम के दौरान मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर बयान दिया था। जिसमें दून की सड़कों को मेट्रो प्रोजेक्ट के लिहाज से ठीक नहीं बताया गया। उन्होंने कहा था कि जिन सड़कों के एलाइनमेंट के साथ मेट्रो प्रोजेक्ट बनाया जाना है, वे अनुकूल नहीं है। प्रोजेक्ट पर पुनर्विचार किया जाएगा। इससे पहले चीफ सेक्रेटरी उत्पल कुमार सिंह भी मेट्रो ट्रेन के विकल्पों पर जोर देते देखे गए हैं।

तो बिना होमवर्क शुरू हुई थी कवायद

सीएम व सीएम के इन बयानों के बीच अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अब तक जिस मेट्रो प्रोजेक्ट पर काम जारी था। क्या वह बिना किसी होमवर्क के शुरू कर दिया गया था और इसपर करीब 20 करोड़ रुपए भी खर्च कर दिए गए।

क्या है आल्टरेनेटिव स्टडी

मेट्रो अधिकारियों की मानें तो 2017 की मेट्रो पॉलिसी के तहत मेट्रो ट्रेन संचालन के लिए सीएमपी व आल्टरनेटिव स्टडी जरूरी हैं। हालांकि इससे पहले आल्टरनेटिव स्टडी की जरूरत नहीं होती थी। आल्टरनेटिव स्टडी में मेट्रो के विकल्पों का विस्तार से अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करनी होती है। स्टडी में ट्रांसपोर्ट का मेट्रो से बेहतर विकल्प, शहर का इन्फ्रास्ट्रक्चर, पैसेंजर्स की संख्या, रोड्स की स्थिति, इनकम, एक्पेंडिचर जैसे कई बिंदुओं पर मंथन किया जाता है।

दर्जनभर नियुक्तियां, 20 करोड़ खर्च

मेट्रो को लेकर एक बार फिर संशय की स्थिति है, लेकिन अभी तक मेट्रो कॉर्पोरेशन से लेकर डीपीआर बनाने तक इस कवायद में 20 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। 8 करोड़ रुपए तो सिर्फ डीपीआर बनाने में ही खर्च हो गए। कॉर्पोरेशन में एमडी से लेकर कम्प्यूटर ऑपरेटर तक के एक दर्जन से ज्यादा पदों पर नियुक्ति भी हो चुकी है।