- एटीएस एएसपी राजेश साहनी की मौत का मामला

- डीजीपी को दिया पत्र, जांच में खामियों और लीपपोती करने का किया उल्लेख

- कहा, एटीएस के मनोबल और मेरी छवि को नुकसान पहुंचाने की हो रही कोशिश

LUCKNOW :

यूपी पुलिस में अफसरों के बीच रार का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हालिया घटनाक्रम में एटीएस के आईजी असीम अरुण ने गुरुवार को लेटर बम फोड़कर पुलिस विभाग में हड़कंप मचा दिया है। डीजीपी ओपी सिंह को दिए एक पत्र में उन्होंने एटीएस के एएसपी राजेश साहनी की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के मामले में एडीजी लखनऊ राजीव कृष्णा की जांच रिपोर्ट पर ही तमाम सवाल उठा दिए हैं। साथ ही कहा कि साहनी की मौत के बाद एटीएस के मनोबल को गिराने और मेरी छवि को चोट पहुंचाने का कुचक्र रचा जा रहा है, जिसे सब देख रहे हैं। जांच रिपोर्ट को लीक करना और एटीएस पर विपरीत टिप्पणी करना इसी कुचक्र का हिस्सा है। असीम ने डीजीपी से इस प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने का अनुरोध भी किया है।

परिवार को नहीं दी रिपोर्ट

डीजीपी को दिए अपने ज्ञापन में असीम ने इस पर आपत्ति जताई है कि संवेदनशीलता की दृष्टि से आखिर राजेश साहनी के परिजनों को जांच रिपोर्ट क्यों नहीं मुहैया कराई गयी। साथ ही डीजीपी को जांच रिपोर्ट देने और उस पर उनके द्वारा निर्णय लेने के बाद सार्वजनिक करने की बात भी कही है। उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी ने डीजीपी को भी इसका अवसर नहीं दिया और जांच रिपोर्ट लीक कर दी। उन्होंने जांच समिति में एएसपी अजय मिश्र को शामिल करने पर भी सवाल किया है। कहा कि अजय मिश्र अच्छे इंसान हैं पर वे राजेश साहनी के अच्छे मित्र थे और पीपीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। मैंने इस त्रुटि के बारे में जांच अधिकारी को बताया भी था फिर भी इसमें सुधार नहीं किया गया। अजय मिश्र द्वारा तमाम गवाहों के बयान जांच अधिकारी की अनुपस्थिति में लिए गये, ऐसे में निष्पक्ष जांच की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी।

एक कर्मचारी के बयान को बनाया आधार

असीम ने लिखा कि जांच में राजेश की आत्महत्या का कारण कार्यालय में नहीं मिला क्योंकि ऐसा था ही नहीं। एटीएस की तमाम फाइलों का कई हफ्ते तक परीक्षण हुआ लेकिन एक भी कमी नहीं मिली। राजेश के सभी सहयोगी स्टाफ के बयान भी हुए लेकिन कोई विपरीत बात नहीं मिली। फिर भी जांच अधिकारी ने मात्र एक कर्मी के बयान पर एटीएस की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक टिप्पणी की जोकि आपके द्वारा उन्हें दी गयी जांच का संदर्भ भी नहीं था। असीम ने दावा किया कि आत्महत्या का असली कारण कार्यालय से अन्यत्र था। जिसके बारे में तमाम साक्ष्य भी हैं लेकिन उन्हें लीपापोती के उद्देश्य से नहीं जुटाया गया। राजेश साहनी ने अपने जीवन के अंतिम दो घंटे में जिन व्यक्तियों से बात अथवा मैसेज कर रहे थे, उनमें से कई के बयान नहीं लिए गये। उनके फोन का वैज्ञानिक परीक्षण नहीं हुआ। डाटा एक्सट्रैक्शन तक नहीं किया गया। महत्वपूर्ण गवाहों के बयानों में विरोधाभास है पर उनका लाई डिटेक्टर टेस्ट नहीं कराया गया।

सच अतिसंवेदनशील है

असीम ने पत्र के अंत में लिखा कि मैं यह जानता हूं कि सच अति-संवेदनशील है लेकिन जांच में सत्य का अंवेषण होना चाहिए था। उसे प्रकाशित करना है कि नहीं, यह डीजीपी का निर्णय होता। आगे कहा कि मेरी स्थिति इस प्रकरण में बड़ी मुश्किल रही है। एक ओर मुझ पर तमाम आरोप लगते रहे, दूसरी ओर राजेश के परिवार की कल्याण की जिम्मेदारी भी मेरे ऊपर है, जिसे मैंने पूरी शक्ति और संयम से निभाने की कोशिश की और आगे भी करता रहूंगा। राजेश मेरे सहकर्मी ही नहीं, मित्र भी थे। अपनी व्यक्तिगत समस्याएं वे मुझे बताते थे और मैं उनकी मदद करता था। मुझे परिस्थितियों की पूरी जानकारी है पर इस बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि ये बातें उन्होंने मुझे विश्वास में बताई थी। जांच अधिकारी को इस संबंध में मैंने पूरी जानकारी और साक्ष्य भी दिए थे जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।

दस दिन पहले सौंपी थी जांच रिपोर्ट

ध्यान रहे कि एटीएस के इस मामले की जांच एडीजी लखनऊ राजीव कृष्णा ने पूरी करके विगत 24 जुलाई को डीजीपी ओपी सिंह को जांच रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में राजेश साहनी द्वारा सुसाइड किए जाने की पुष्टि की गयी थी हालांकि उन्होंने किन वजहों से यह कदम उठाया, उसका जिक्र नहीं किया गया था। रिपोर्ट में एटीएस मुख्यालय में तैनात वरिष्ठ अधिकारियों की कार्यशैली और बर्ताव को लेकर टिप्पणी भी की गयी थी जिसके बाद आईजी असीम अरुण ने अपना पक्ष रखने के लिए डीजीपी को यह ज्ञापन सौंपा है।