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RANCHI: हो गई है पीर पर्वत-सी, पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिएसिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए। दुष्यंत कुमार द्वारा लिखी इन पंक्तियों के साथ बुधवार को रेडियो सिटी की फेमस आरजे और युवा स्टूडेंट्स के बीच क्रेज रखने वाली वर्तिका के सवालों का मिलेनियल्स ने जवाब देना शुरू किया। सरकुलर रोड स्थित एनआईबीएम के परिसर में आगामी लोकसभा चुनाव के मुद्दों पर मिलेनियल्स से उनकी बेबाक राय पूछने पर सबने एक साथ बेरोजगारी की बात कहीं। मिलेनियल्स के तेवर बागी हैं, होठों पर कई सवाल हैं, सत्ता के फेलियर के लिए इतिहास की गवाही भी साथ है और बड़ी बेसब्री से चुनाव का इंतजार भी है। स्टूडेंट्स ने चुनावी मुद्दों पर अपने दर्द बयां किए और अपने सीनियर्स, फैमिली मेंबर्स, पड़ोसियों के जीवन का उदाहरण देते हुए रोजगार को सबसे बड़ा मुद्दा बताया। सोंच बदल रही है, युवा इंसाफ मांग रहे हैं। लोकसभा चुनाव की बिसात पर इस बार प्रत्याशियों के पैंतरे जनता को जाल में फंसाने के लिए काफी नहीं होंगे। बेरोजगारी की मार से युवा बदहाल हैं और सरकारें कई बार बदलने के बाद भी उनके लिए मरहम नहीं तलाश पा रही। एनआईबीएम इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करने वाले मिलेनियल्स ने बेरोजगारी के मामले में नेताओं को घेरने की बात कहीं। मिलेनियल्स की मांग है कि रोजगार के नए अवसर क्रिएट करो, भ्रष्टाचार खत्म करो तभी वोट मांगने आओ।

हर फील्ड में रिक्तियां
मिलेनियल्स कह रहे हैं कि आज की तारीख में हर फील्ड में रिक्तियां नजर आ रही हैं। एक-एक व्यक्ति पर कई-कई विभागों का प्रभार है। यहां तक कि चपरासी पर भी पांच-पांच डिपार्टमेंट्स के लोगों को पानी पिलाने का बोझ है। फिर भी युवा नौकरी की तलाश कर रहे हैं जो दुखद है। युवाओं को हर बार छला जा रहा है लेकिन उनके साथ इंसाफ नहीं हो रहा। कई महत्वाकांक्षी और टैलेंटेड स्टुडेंट्स चाय के ठेले, कुरियर ब्वाय, चाउमिन सेंटर जैसे पेशे में उतर आए हैं। कहीं रिर्जेवेशन की मार तो कहीं सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार हर तरह की कुव्यवस्था की शिकार बनी युवा पीढ़ी नए विकल्पों की तलाश कर रही है।

अब सिर्फ आश्वासन नहीं
राजनी-टी में शिरकत करने वाले सारे स्टुडेंट्स में कमोबेश सभी पहली बार वोटर बनने वाले हैं और अपने बागी तेवरों के साथ चुनाव का इंतजार कर रहे हैं। बेरोजगारी विगत 25 वर्षो से अधिक समय से एक अहम मुद्दा बना हुआ है। पढ़ाई पूरी कर नौकरी, व्यवसाय या अन्य करियर में किस्मत आजमा रहा युवा वर्ग हताशा की मार झेल रहा है। लेकिन एक खास तबका और है जो बेरोजगारों का है। इस तबके में उनलोगों को भी रखा जा सकता है जो पढ़ लिखकर उच्च शिक्षा हासिल कर चुके हैं लेकिन बेरोजगारी की मार के कारण आज घरों में खाना डिलीवरी का काम कर रहे हैं। लोकतंत्र में अपनी भरपूर आस्था रखने वाले मिलेनियल्स आगामी चुनाव के बिगुल फूंके जाने का इंतजार कर रहे हैं। आगामी चुनाव में बेरोजगारी एक ज्वलंत मुद्दा बनकर सभी राजनीतिक पार्टियों की नींद उड़ाने वाली है। यूथ में गुस्सा है, उनका कहना है कि उन्हें वर्षो से छला जा रहा है, कभी प्रशिक्षण देकर स्किल बनाने का वादा कर उपयुक्त रोजगार न देकर तो कभी रोजगार तलाश रहे युवाओं को प्रलोभनों के मंझधार में फंसा कर छोड़ देने से।

 

कड़क बात
गंभीर मुद्दा यह है कि रेलवे की परीक्षा में जो कि 100 मा‌र्क्स की होती है उसमें स्टूडेंट्स को 148 मा‌र्क्स तक दे दिए जाते हैं। अब बताइए कि यह कैसे संभव है कि 100 नंबर की परीक्षा में 148 अंक मिल जाएं। इससे लापरवाही साफ हो जाती है कि सरकारी कर्मियों को युवाओं की नौकरी और उनके करियर को लेकर कोई चिंता ही नहीं है। ऐसे लोगों से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं। ग्रेजुएशन के स्टूडेंट्स को 3 मा‌र्क्स तक मिले हैं। अब ऐसे में नौकरी कहां से मिलेगी।

प्रिया

 

मेरी बात

मुझे लगता है कि युवाओं को आगे आना चाहिए। अपने अधिकारों, कर्तव्यों के प्रति सजग और जागरूक होने की जरूरत है। चुनाव में वोट देना हमलोगों का अधिकार है, हमें यही एकमात्र अवसर मिलता है जब हम यह डिसाइड कर सकते हैं कि आने वाले समय में सत्ता किसे सौंपी जाए और वह कैसे किन योजनाओं द्वारा हमारी समस्याओं का समाधान करेंगे। अपनी कसौटी पर ठीक से परखने के बाद ही किसी भी प्रत्यासी को वोट देना चाहिए।

मनोज गुप्ता, निदेशक

 

दुनिया विकसित हो रही है और हमलोग पिछड़ते ही जा रहे हैं। हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। बेरोजगारी की मार से हमलोग आहत हैं और साथ ही साथ शिक्षा व्यवस्था, सेशन लेट और रिजल्ट की स्थिति के कारण स्थिति और भी खराब होती जा रही है। स्टाफ सेलेक्शन से लेकर रेलवे की परीक्षाओं तक स्टूडेंट्स केवल परीक्षा देते रहते हैं रिजल्ट आता ही नहीं है। रिजल्ट आते-आते 4-5 साल निकल जाते हैं और ऐसे कई मामले न्यायालयों की फाइलों में बंद हैं। समाधान निकालने के साथ पर विभिन्न सरकारों ने केवल युवाओं को छला है। अब वोट मांगने आने से पहले सुधार की रूपरेखा तैयार कर लें प्रत्याशी, हमलोग भी सवाल लेकर तैयार हैं कि आखिर इस बार किस जादू की छड़ी घुमाएंगे नेता लोग।

अलका

 

इन्फ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। नई कंपनियां राज्य और सिटी में आ ही नहीं पा रही हैं। जब तक नई और बड़ी कंपनियां नहीं आएंगी तब तक रोजगार के नए विकल्प कैसे खुल पाएंगे। केवल सरकारी नौकरी के भरोसे बैठे रहने से युवाओं की हालत खराब ही होती जाएगी। सरकार को चाहिए कि राज्य में और देश में निवेश करने वाली बड़ी कंपनियों को हर संभव सहायता प्रदान करें। उन्हें सुरक्षा और व्यवस्था प्रदान करें ताकि वे लोग युवाओं के लिए रोजगार सृजन करें।

श्वेता

 

नई वैकेंसीज क्रिएट होनी चाहिए। रोजगार कैसे मिलेगा जब बाहरी कंपनियां कहती हैं कि आपके भीतर टैलेंट नहीं हैं, आप योग्य नहीं है जबकि अपना कॉलेज और अपनी यूनिवर्सिटी ने टॉपर, फ‌र्स्ट क्लास समेत न जाने कैसी कैसी उपाधियां दे रखी हैं। पूरा सिस्टम लचर है बदलाव जरूरी है। रोजगार देने की लिस्ट तो बनती है लेकिन कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने उस रोजगार के लिए फार्म ही नहीं भरा लेकिन उनका नाम भी नौकरी पाने वालों में होता है।

नीलू परवीन

 

वैकेंसीज तो जेनरेट की ही जा रही हैं लेकिन जितने लोग आवेदक हैं उतनी वैकेंसी नहीं बन पा रही है। हालांकि सरकार द्वारा सारी व्यवस्था ऑनलाइन कर देने से काफी लोगों को सहायता मिल रही है। व्यवस्था भी ट्रांसपेरेंट हो रही है साथ ही तकनीकी रूप से देश काफी मजबूत हो रहा है। पिछले कई सालों का बैकलॉग है जिसके कारण अभी लगातार नौकरियों के अवसर बनते रहने चाहिए तभी शिकायतें दूर होंगी।

रोहित कुमार

 

केवल सरकार पर दोषारोपण करना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। वोटर के लिए न्यूनतम उम्र 18 वर्ष कर दी गई है, इसका मतलब ही है कि बालिग होने के बाद आप अपना निर्णय खुद करें और उचित सरकार का चुनाव करें। हम अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते। वक्त बदल गया है और युवाओं को अपनी सोच भी बदलनी होगी। हमें हर फील्ड में आगे बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए और चुनाव से पूर्व प्रत्याशियों से उनका रूट चार्ट पूछना चाहिए।

अंजलि

 

जितनी तेज रफ्तार से पॉपुलेशन बढ़ रहा है उतनी ही तेज रफ्तार से सरकारी नौकरियों में स्कैम भी सामने आ रहे हैं। ऐसी एक भी वैकेंसी नहीं निकली है जिसपर जांच न चल रही हो। ऐसे में कैसे समाधान निकल पाएगा। यूथ अब किसी से इन्फ्लूएंस नहीं होते। वे समझदार हैं और सही गलत का फैसला ले सकते हैं। बेबशी देखिए कि चपरासी के पोस्ट के लिए इंजीनियर आवेदन कर रहे हैं, यह दुखद है।

स्नेहा पांडेय

 

एक तो सरकारी नौकरी के वैकेंसी बहुत कम हैं जो थोड़ी बहुत नौकरी की उम्मीदें जगती हैं वह भी बिना पैरवी और रुपए के पूरी नहीं हो सकती। पूरा सिस्टम लचर हो गया है। बदलाव की जरूरत है। हमलोग भी इस चुनाव में पूरी तरह तैयार हैं अपने सवालों के जवाब तलाशने के लिए।

मनोज कुमार

 

लड़कियों के लिए सरकार को नए विकल्पों और रोजगार का सृजन करना चाहिए। चुनाव से पहले कई तरह की योजनाएं आती हैं साथ ही पिछड़ चुकी परीक्षाओं के रिजल्ट भी आने लगते हैं। डिजिटल इंडिया, कौशल विकास जैसी कई योजनाएं हैं जिन्हें अमलीजामा पहनाया जा रहा है लेकिन इनके इम्प्लीमेंटेशन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

अदिती प्रिया