कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि उनके इंटरव्यू के बाद भाजपा का हौसला और भी बुलंद हो गया है.

कुछ अन्य विश्लेषणों में ये कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के कारण कांग्रेस की अगले आम चुनाव में हार यक़ीनी है.

कुछ तो यहाँ तक कह रहे हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के लिए बोझ साबित हो रहे हैं.

ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया में उनके इंटरव्यू पर मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है.

जो राहुल गांधी से थोड़ी बहुत सहानुभूति दिखा रहे हैं, उनका कहना है कि वह नरेंद्र मोदी और भाजपा के प्रति आक्रामक रुख़ अख्तियार करने से चूक गए.

बदलाव संभव

राहुल के लिए 'अभी सब कुछ ख़त्म नहीं'

अगर आगामी आम चुनावों में कांग्रेस की हार होती है तो इसका कारण राहुल गांधी नहीं बल्कि केंद्र सरकार होगी जो भ्रष्ट्राचार पर अंकुश नहीं लगा सकी.

कुल मिलाकर यह नतीजा निकाला जा रहा है कि इंटरव्यू से पहले आगामी आम चुनाव में कांग्रेस की हार लगभग तय थी, लेकिन इंटरव्यू के बाद ये निश्चित है.

इनमें से अधिकतर वही राजनीतिक विश्लेषक ऐसी टिप्पणियाँ कर रहे हैं जो दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को पाँच या छह सीटों से अधिक देने को तैयार नहीं थे.

इसका मतलब यह नहीं कि वे सभी ग़लत हैं.

ऐसा संभव है कि उनकी बात सच साबित हो लेकिन चुनाव में अभी कुछ महीने बाक़ी हैं और इस दौरान हालात में काफी उथल-पुथल मच सकती है.

ज़रा याद कीजिए, दिल्ली चुनाव से पहले कोई कह सकता था कि आम चुनाव में आम आदमी पार्टी की कोई भूमिका होगी?

दो महीने में देश के राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है और अगले दो तीन महीनों में काफी बदलाव संभव है.

इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल गांधी इंटरव्यू के दौरान तीखे सवालों का सीधा जवाब देने से हिचकिचाए. सवाल कुछ और जवाब कुछ.

और भी होंगे साक्षात्कार?

राहुल के लिए 'अभी सब कुछ ख़त्म नहीं'

एक टेलीविजन साक्षात्कार के दौरान तीखे सवालों से परेशान होकर नरेंद्र मोदी बीच से ही उठ कर चले गए थे.

लेकिन क्या, अगर नरेंद्र मोदी उनकी जगह एक घंटे तक सवालों का सामना करते तो राहुल गांधी से काफी बेहतर होते?

कुछ कि राय में होते लेकिन कुछ दूसरे कहते हैं कि वह भी लड़खड़ाते.

यह भी सही है कि राहुल गांधी का यह आख़िरी बड़ा इंटरव्यू नहीं होगा.

उनकी पार्टी के अनुसार उनकी योजना है लगातार कई बड़े इंटरव्यू देने की.

यह संभव है कि अगले इंटरव्यू में उनका प्रदर्शन इससे बेहतर हो और चुनाव से पहले आख़िरी इंटरव्यू में और भी बेहतर.

आम जनता आख़िरी इंटरव्यू को शायद अधिक याद रखेगी.

अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा 2012 में राष्ट्रपति पद के चुनाव से पहले हुए तीन टेलीविजन डिबेट में से पहले में अपने प्रतिद्वंद्वी से पिछड़ गए थे लेकिन अगले दो में उनका प्रदर्शन बहुत बेहतर था.

राहुल गांधी कांग्रेस के चुनावी प्रचार के लीडर ज़रूर हैं लेकिन कांग्रेस की अगर चुनाव में हार हुई तो इसकी सारी ज़िम्मेदारी उन पर थोपना शायद पूरी तरह से सही नहीं होगा.

हार भी अवसर

केंद्र में दस साल तक सत्ता में रहकर पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार भ्रष्टाचार को रोकने में सफल नहीं हो पाई.

पार्टी आंतरिक उठापटक पर क़ाबू पाने में भी विफल रही है और खुद को जनता से जोड़ने की कोई ख़ास कोशिश नहीं की है.

राहुल गांधी के सामने पार्टी के बाहर से जितनी चुनौतियां हैं, उतनी ही अंदर से हैं.

उनके क़रीबी लोगों ने दबे शब्दों में ये कहा है कि पार्टी अगर चुनाव हारती है तो बुरा ज़रूर होगा लेकिन ये राहुल गांधी के लिए एक मौक़ा भी होगा कि हार के बहाने से वह उन नेताओं को पार्टी से साफ़ करेंगे जो पार्टी के लिए वर्षों से बोझ बने हुए हैं. उनके बंधे हाथ खुल जाएंगे.

ऐसा संभव है कि इस बार वह चुनाव हार जाएँ लेकिन इसके अगले चुनाव में वह एक जीतने वाले लंबी रेस के घोड़े साबित हो सकते हैं.

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