रफ्तार पकड़ते ही बेपटरी हुई पवन एक्सप्रेस

भ्रष्टाचार से जुड़े आरोपों में पवन कुमार बंसल को भले ही इस्तीफा देना पड़ा हो, लेकिन उनकी छवि मिस्टर क्लीन नेताओं वाली रही है और वह अपने काम में बेहद निपुण माने जाते रहे हैं. रेल मंत्री के पद से इस्तीफा देने वाले 64 वर्षीय पवन बंसल पंजाब के तापा के रहने वाले हैं. उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत थोड़ी धीमी रही और जब उन्होंने रफ्तार पकड़ी तो बेपटरी होने में बहुत कम समय लगा.

1976 में 28 साल की उम्र में चंडीगढ़ यूथ कांग्रेस के सेक्रेटरी बनने से लेकर अपने 36 साल के राजनीतिक करियर में बंसल उस समय शिखर पर पहुंचे जब वह रेल मंत्री के लिए अप्रत्याशित रूप से चुने गए. पवन कुमार बंसल 36 साल की उम्र में राज्यसभा के सदस्य बन गए. इसके बाद चंडीगढ़ से लोकसभा सदस्य चुने गए.

वह इस सीट से चार बार सांसद निवार्चित हुए. हालांकि 1996 और 1998 के लोकसभा चुनावों में उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा. यूपीए के  पहले कार्यकाल में बंसल को वित्त राज्य मंत्री बनाया गया, बाद में उन्होंने संसदीय कार्य मंत्रालय का भी प्रभार संभाला. यूपीए दो के कार्यकाल में उन्हें संसदीय कार्य और जल संसाधन मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया गया, लेकिन जब कांग्रेस के पास 18 साल बाद रेल मंत्रालय आया तो आश्चर्यजनक रूप से उन्हें इसका प्रभार सौंपा गया.

कांग्रेस पार्टी में बंसल के उत्थान में अंबिका सोनी और मनमोहन सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं का बेहद योगदान माना जाता है. बंसल का परिवार अंबिका सोनी के साथ मिलकर चंडीगढ़ में एक प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल भी चलाता है.

नाटकीय अंदाज में उदय और अस्त हुए अश्विनी

पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार का राजनीति में उदय और अस्त बहुत ही नाटकीय अंदाज में हुआ. राज्यसभा के लिए मई, 2002 में चयनित कुमार ने इतनी बड़ी-बड़ी राजनीतिक छलांगें लगाईं कि पार्टी में उनके समकक्ष नेताओं में ईष्र्या की भावना फैलने लगी थी.

उच्च सदन के लिए चुने जाने से पहले पंजाब के गुरदासपुर के अश्विनी कुमार अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भी रह चुके थे. वह 2004 और 2010 में भी राज्यसभा के लिए चुने गए थे.

संसद में पदार्पण के महज चार साल के भीतर 2006 में वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में बतौर औद्योगिक नीति व प्रोन्नति और वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री के तौर पर शामिल हुए. माना जा रहा है कि कोयला घोटाले की सीबीआइ जांच की प्रगति रपट देखने और उसमें बदलाव कराने के विवाद में फंसने के बावजूद प्रधानमंत्री से नजदीकियों के चलते ही उनके इस्तीफे में देरी हुई.

कुमार 2009 में बहुत कम समय के लिए कांग्रेस प्रवक्ता भी रहे. हालांकि, एक विवाद के बाद कांग्रेस प्रवक्ताओं की सूची से उनका नाम हटा दिया गया था. अप्रैल, 2010 में एक बार फिर वह राज्यसभा के लिए चुने गए और 2011 में संसदीय कार्य राज्यमंत्री बने। जुलाई, 2011 में उन्हें योजना मंत्रालय और विज्ञान व तकनीक मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया.

इसके बाद अक्टूबर, 2012 में उन्हें सलमान खुर्शीद की जगह केंद्रीय कानून मंत्री पद की जिम्मेदारी दे दी गई. यहीं से तय हुआ उनका विवादों में फंसने और अस्त होने का सिलसिला. अश्विनी पर कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले की सीबीआइ जांच रिपोर्ट में बदलाव करने के आरोप लगे और अंत में उन्हें मंत्रिमंडल को विदा कहना पड़ा.

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