इसके बाद हुए दो रेल मंत्रियों ने इसका शिलान्यास जरूर किया लेकिन अब भी इसका निर्माण अधूरा है. इसी तरह कई रेल अन्य परियोजनाएं भी अधूरी पड़ी हैं.

संसद में रेल बजट 14 मार्च को पेश होना है. देश को सबसे अधिक रेल मंत्री बिहार ने दिया है, इसलिए यहां के लोगों की उम्मीदें नए रेल बजट से जुड़ी हुई हैं. बिहार से रेल मंत्री बनने वाले नेताओं ने अपने-अपने कार्यकाल के दौरान अपने राज्य के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थीं, लेकिन उनके पद से हटते ही बहुत-सी योजनाएं अधर में लटक गईं.

बिहार में हरनौत रेल कारखाना आज तक अस्तित्व में नहीं आ सका है. मढ़ौरा डीजल इंजन कारखाना भी पूरा होने की प्रतीक्षा कर रहा है. इसी तरह छपरा रेल चक्का निर्माण कारखाने से भी अब तक उत्पादन शुरू नहीं हो सका है.

घोषित मधेपुरा इलेक्ट्रिक इंजन कारखाना भी सरकारी फाइलों में गुम है. ये ऐसी परियोजनाएं हैं, जिनसे राज्य के बेरोजगारों को न केवल रोजगार मिल सकता था, बल्कि बिहार के विकास में नए आयाम भी जुड़ सकते थे.

राज्य में उत्तर बिहार और मिथिलांचल की करीब 74 किलोमीटर सकरी-हसनपुर रेल लाइन का कहने के लिए तो दो-दो रेल मंत्रियों ने शिलान्यास किया, लेकिन यह परियोजना भी अभी पूरी नहीं हो पाई है.

वर्ष 1969 में समस्तीपुर रेल मंडल की स्थापना हुई थी. इसके बाद उत्तर बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने तथा बेहतर आवागमन की सुविधा के लिए 22 फरवरी, 1974 को तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने इस रेल लाइन का शिलान्यास किया था. इसके लिए पांच करोड़ 95 लाख रुपये भी स्वीकृत किए गए, लेकिन एक बमकांड में मिश्र के निधन के बाद यह योजना बंद हो गई.

इसके बाद वर्ष 1996 में तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान ने इसका दोबारा शिलान्यास किया. इसके लिए 20 करोड़ रुपये की स्वीकृति भी दी गई, लेकिन आज भी यहां के लोग इस महत्वपूर्ण रेल परियोजना के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं.

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी रेल मंत्री रह चुके हैं. लेकिन पूर्णिया, सहरसा, मधेपुरा, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर जिलों के साथ राज्य के विभिन्न हिस्सों से रेल संपर्क स्थापित करने वाली कई योजनाएं अब तक अधूरी हैं. इनमें सीमांचल की अररिया-सुपौल बड़ी रेल परियोजना, अररिया-गलगलिया रेल लाइन और जलालगढ़-गलगलिया रेल लाइन परियोजनाएं भी शामिल हैं.

बिहार से रेल मंत्री बने नेताओं पर एक नजर :

1.बाबू जगजीवन राम (1962)

2. राम सुभग सिंह (1969)

3. ललित नारायण मिश्र (1973)

4. केदार पांडेय (1982)

5. जॉर्ज फर्नाडीस (1989)

6. रामविलास पासवान (1996)

7. नीतीश कुमार 1998 और 2001 (दो बार)

8. लालू प्रसाद यादव (2004)

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