- लापरवाह प्रशासनिक सिस्टम से बर्बाद हो रहा इतना पानी

- जागरूकता के अभाव में पब्लिक भी अभी नहीं चेत रही है

आगरा। यह संख्या देखकर और सुनकर आप सकते में आ गए होंगे। लेकिन हकीकत कुछ यही है, यदि आप एक बाल्टी पानी भी घर में खर्च करते हैं तो उसमें से 90 परसेंट पानी बर्बाद हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार आप एक साल के अंदर 16 अरब 20 करोड़ लीटर पानी को दोहन करके उसे सिर्फ व्यर्थ बहा देते हैं। यदि आज अधिकारी और खुद आप नहीं चेते तो दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन जैसे हालात बनने में ताजनगरी को जरा भी देर नहीं लगेगी।

जून से अगस्त तक ज्यादा बर्बादी

दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में वाटर क्राइसिस को लेकर राशनिंग करनी पड़ रही है। लगभग समूची दुनिया में पानी को लेकर हाहाकार मचा है। शहर में भी पूरे साल पानी की हाय-तौबा मची रहती है। राज्य शासन से लेकर नगर निगम और जलकल विभाग पानी किल्लत से निपटने के लिए टैंकरों के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर देता है। इसे सिर्फ तीन महीने की पानी बचत करके खत्म किया जा सकता है। लेकिन जिला प्रशासन ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से बचाने में संजीदगी नहीं दिखाई। जनता ने भी जागरुकता का परिचय नहीं दिया। इसके दुष्परिणाम हर साल सामने आ रहा है। बारिश का अनमोल पानी व्यर्थ में बह जा रहा है। ये जून से मध्य अगस्त महज तीन महीनों में अरबों लीटर होता है।

दो महीने तक पिला सकते हैं पानी

पूरे शहर में लगभग 3 लाख मकान हैं। इसमें महज सरकारी और गिनेचुने मकानों में ही वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा हुआ है। ये सिस्टम रख-रखाव के अभाव में बेकार हो रहे हैं। वहीं जिला और जिम्मेदार प्रशासनिक विभागों ने भवनों में न तो वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने में सक्रियता बरती और नहीं सरकारी भवनों के लगे सिस्टमों के बेहतर काम करने पर ध्यान दिया। इसका परिणाम इस मानसून में भी देखने को मिलेगा। जानकारों की मानें तो शहर में जून से 15 अगस्त के बीच 660 मिलीमीटर बारिश होती है। इस पानी को बचाने के कोई उपाय नहीं किए गए हैं। इसलिए हर साल 16 अरब 20 करोड़ लीटर से ज्यादा पानी व्यर्थ में बहा दिया जा रहा है। जबकि इस पानी को बचाकर शहर की 20 लाख की आबादी को पूरे दो महीने यानी 60 दिनों तक पानी पिला सकते हैं।

सरकारों के कागजी आदेश

पानी की बचत को लेकर सरकारें कितनी संजीदा हैं। ये इसी से समझा जा सकता है कि प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने पद ग्रहण करते ही हर मकान में रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद अधिकारी बेपरवाह हैं। वॉटर हार्वेस्टिंग को लेकर कागजों पर ही काम चल रहा है। सिस्टम लगाने पर न तो जोर दिया जा रहा है और नहीं मानिटरिंग के लिए टीम गठित की गई है। जून महीने में मानसून दस्तक देगा। इसके बाद हर साल की तरह वॉटर हार्वेस्टिंग पर जोर दिया जाएगा।

तो मीठे पानी में बदल जाए

शहर में पानी किल्लत की समस्या है ही, साथ में खारा पानी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। जानकारों का कहना है कि वाटर हार्वेस्टिंग से जमीन के लेवल का पानी बढ़ेगा। इससे पानी का खारापन कम होगा और मीठा पानी मिलने लगेगा।