शनिवार भोर में हुआ निधन, कई दशकों से भूले-भटकों के लिए बने थे पालनहार

ALLAHABAD:

कुंभ, अर्धकुंभ और माघ मेले में भूले-भटकों को अपनों से मिलाने वाले राजाराम तिवारी का शनिवार सुबह निधन हो गया। वह 80 वर्ष के थे। पिछले सत्तर सालों से वह मेलों में भूले-भटके शिविर का संचालन कर रहे थे। अपने जीवित रहते उन्होंने लाखों लोगों को परिवार से मिलवाने का नेक काम किया। उनकी मृत्यु से शहरवासियों समेत प्रशासनिक अमला भी गमगीन हो गया।

1946 में शुरू किया शिविर

मूल रूप से प्रतापगढ़ के रानीगंज तहसील के गौरा पूरे बदल गांव के राजाराम तिवारी ने वर्ष 1946 में भूले-भटके शिविर की शुरुआत की थी। महज 16 साल की उम्र में वह कुंभ मेला घूमने आए थे और यहीं पर उन्हें एक बुजुर्ग महिला मिली जो परिवार से बिछड़ गई थी। उन्होंने महिला को उसके परिवार से मिलवाया और तभी से ठान लिया कि वे मेले में बिछड़ने वालों को उनके परिवार के सदस्यों से मिलवाएंगे। उनका यह प्रयास रंग लाया और साल दर साल उन्होंने अपने संकल्प को चार चांद लगाया। जानकारी के मुताबिक वर्ष 2016 तक उन्होंने दस लाख से अधिक लोगों को परिवार से मिलाने में सफलता पाई थी। कई दशक पहले लाउडस्पीकर नहीं होने से राजाराम टीन का भोंपू बनाकर मेले में एनाउंस करते थे। वह टोली बनाकर भूले-भटकों को उनके शिविरों तक पहुंचाते थे।

बेटा संभाल रहा जिम्मेदारी

राजाराम 80 वर्ष के हो चले थे, ऐसे में अब उनके बेटे उमेश चंद्र तिवारी शिविर में उनका साथ देते थे। शिविर के संचालन में उमेश का महती योगदान रहता है। बताया जाता है कि 1954 के कुंभ में दर्दनाक हादसा होने से एक हजार लोगों की मौत हो गई थी। इस मेले में राजाराम तिवारी के शिविर ने हजारों लोगों को उनके परिवार से मिलवाने का काम किया था। खुद बॉलीवुड शहंशाह अमिताभ बच्चन ने हाल ही में राजाराम से मुलाकात कर उनके पुण्य कार्य की जमकर तारीफ की थी। इसके अलावा उन्हें इस काम के लिए कई पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है। शनिवार भोर में उनके निधन के बाद शहर के लोगों को खासा दुख पहुंचा है। परिवार वाले उनका शव लेकर गांव चले गए हैं। उनकी अंत्येष्टि रविवार को सुबह होगी।