सेतु समुद्रम परियोजना पर सेंटर गवर्नमेंट ने एक बार फिर पलटी खाई है. उसने इस मसले पर गठित आरके पचौरी समिति की रपट को खारिज करते हुए कहा है कि वह इस परियोजना का काम आगे बढ़ाना चाहती है. उसने तर्क दिया है कि इस परियोजना पर 800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और ऐसे में काम बंद करने का कोई मतलब नहीं.

रामसेतु हिंदू धर्म का अंग नहीं

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में गवर्नमेंट ने यह भी कहा है कि रामसेतु हिंदू धर्म का आवश्यक अंग नहीं. इस परियोजना के तहत रामसेतु कहे जाने वाले एडम ब्रिज को तोड़कर जहाजों के आने-जाने का रास्ता तैयार करना है. बीजेपी ने गवर्नमेंट के ताजा रुख की कठोर आलोचना करते हुए कहा है कि रामसेतु से कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

सेतुसमुद्रम परियोजना के तहत इंडिया और श्रीलंका के बीच से जहाजों के गुजरने के लिए रामसेतु को पार करते हुए 30 मीटर चौड़े, 12 मीटर गहरे और 167 किलोमीटर लंबे रास्ते की खुदाई करनी है.

सुप्रीम कोर्ट की दखल पर रुखा था काम

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 2008 में गठित की गई पचौरी कमेटी की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सेतुसमुद्रम पोत परिवहन मार्ग बनाने की परियोजना आर्थिक एवं पर्यावरणीय दोनों ही दृष्टि से ठीक नहीं है. इसके अलावा बीजेपी, अन्नाद्रमुक और हिंदू संगठनों की ओर से इस आधार पर परियोजना का विरोध किया जा रहा है कि रामसेतु भगवान राम से जुड़ा है और इस धार्मिक महत्व के कारण उसे तोड़ा नहीं जाना चाहिए.

भगवान ने लौटते समय तोड़ा था सेतु

गवर्नमेंट ने फ्राइडे को सुप्रीम कोर्ट में पेश नए शपथपत्र में कहा है कि इस धार्मिक विश्वास की पुष्टि नहीं हो सकी है कि भगवान राम ने इस सेतु को श्रीलंका से लौटते समय तोड़ा था. फिर किसी तोड़ी गई चीज की पूजा नहीं की जाती. गवर्नमेंट ने यह भी तर्क दिया है कि जो धार्मिक विश्वास संबंधित धर्म का आंतरिक और आवश्यक अंग न हो उसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता.

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