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PATNA : रविवार को मस्जिदों में तरावीह शुरू होगी और सोमवार से मुस्लिम सामाज रोजा रखेगा। इस बार रमजान भीषण गर्मी में है और मुस्लिम समाज के लोग इसी भीषण गर्मी में 30 रोजे रखेंगे। 1985 में माहे रमजान का महीना मई में आया था। उस समय 21 मई से शुरू हुआ था। इसके बाद 1986 में रमजान 10 मई से शुरू हुआ। 1987 में 30 अप्रैल से शुरू हुआ। इसके बाद 34 साल का सफर पुरा करते हुए वापस रमजान का मुकद्दस महीना मई में आया है।

14 घंटे का होगा पहला रोजा

मुस्लिम समाज पहला सहरी सुबह 4.39 बजे करेगा। इसके बाद इफ्तार 6।59 मिनट पर करेगा। यानी पहला रोजा करीब 14 घंटा 20 मिनट का होगा। शहरी मं हर रोज एक मिनट का समय घटता जाएगा। वहीं इफ्तार में एक मिनट का समय बढ़ता जाएगा। कई दिन ऐसे भी हैं जब लगातार दो और तीन दिन इफ्तार और शहर के समय में कोई बदलाव नहीं होगा। इसी तरीके से 30 वे रोजे के लिए मुस्लिम समाज सहरी 4.24 और इफ्तार 7.13 मिनट पर करेगा।

देता है समानता का संदेश

आर्थिक समानता का संदेश रमजान के महीने में जकात यानी दान का खास तौर पर हुक्म दिया गया है। अपनी सालभर की कमाई का एक छोटा-सा हिस्सा गरीबों-यतीमों के बीच जब हम दान करते हैं तो समाज में आर्थिक समानता आती है। गरीबों के उत्थान में जकात की राशि का बड़ा योगदान होता है। आर्थिक रूप से कमजोर लोग भी सुख से जीने की स्थिति में आ जाते हैं।

क्या है तरावीह का नमाज

रमजान के पूरे महीने में रोजे के साथ-साथ तरावीह की नमाज पढऩा भी जरूरी है। इसमें एक हाफिज-ए- कुरआन (जिनको पूरा कुरआन कंठस्त होता है) प्रति दिन कुरआन के एक पारा (अध्याय) की तिलावत (पाठ) करते हैं। आम तौर पर प्रति दिन एक- एक पारा खत्म कर तीस दिनों में पूरा तिलावत-ए-कुरआन मुकम्मल कर लिया जाता है। चूंकि शहर में भाग- दौड़ की जिंदगी होती है। लोगों की व्यस्तताएं अधिक होती हैं।

तीन अशरों में रमजान

रमजान के महीने को तीन अशरों में बांटा गया है। पहले 10 दिन को पहला अशरा कहते हैं जो रहमत का है। दूसरा अशरा अगले 10 दिन को कहते हैं जो मगफिरत का है और तीसरा अशरा आखिरी 10 दिन को कहा जाता है जो कि जहन्नम से आजाती का है।

700 गुणा मिलता सवाब

इस्लाम के जानकारों का मानना है कि रमजान के महीने में नेकियों का सवाब 10 से 700 गुणा तक बढ़ा दिया जाता है। नफ्ल नमाज का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब 70 फर्ज के बराबर हो जाता है। इसलिए मुस्लिम समाज के लोग खूब नमाज पढ़ते हैं।

खजूर से करें इफ्तार

इफ्तार की शुरुआत हल्के खाने से करें। खजूर से इफ्तार करना बेहतर माना गया है। इफ्तार में पानी, सलाद, फल, जूस और सूप ज्यादा खाएं और पीएं। इससे शरीर में पानी की कमी पूरी होगी।

सहरी में ज्यादा तला न खाएं

सहरी में ज्यादा तला, मसालेदार, मीठा खाना न खाएं, क्योंकि ऐसे खाने से प्यास ज्यादा लगती है। सहरी में ओटमील, दूध, ब्रेड और फल सेहत के लिए बेहतर होता है।

कुरान की करें तिलावत

रमजान में ज्यादा से ज्यादा कुरान की तिलावत, नमाज की पाबंदी, जकात, सदाक और अल्लाह का जिक्र करके इबादत करें। रोजेदारों को इफ्तार कराना बहुत ही सवाब का काम माना गया है।

गलती से नहीं टूटता है रोजा

अगर कोई रोजेदार रोजे की हालत में जानबूझकर कुछ खा ले तो उसका रोजा टूट जाता है, लेकिन अगर कोई गलती से कुछ खा-पी ले तो उसका रोजा नहीं टूटता है।

खूब करें सद्दाका

रमजान के महीने में रोजाना सद्दाका करने की आदत डालें, चाहे थोड़ा ही क्यों ना हो। इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाएं। साथ ही जरूरतमंदों को आर्थिक रूप से मदद करें।

आप रमजान का महीना शुरू होने से पहले ही पूरे महीने की जरूरत का सामान खरीद लें, ताकि आपको रोजे की हालत में बाहर ना भटकना पड़े और आप ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में बिता सकें।

हाजी हसनैन खान

रमजान के महीने में इफ्तार के बाद ज्यादा से ज्यादा पानी पीयें। दिनभर के रोजे के बाद शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है। मर्दों को कम से 2.5 लीटर और औरतों को कम से कम 2 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए।

डॉक्टर मोहम्मद, जमील खान