-3 जुलाई 2009 को हुआ था रणवीर का एनकाउंटर
-दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने सुनाया फैसला
-फैसले से खुश नहीं हैं मृतक रणवीर के परिजन
-आजीवन कारावास की जगह फांसी की चाहते थे सजा
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DEHRADUN : उत्तराखंड के चर्चित एमबीए स्टूडेंट रणवीर सिंह चौधरी एनकाउंटर मामले में क्7 पुलिस कर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। इस मोस्ट वेटेड केस में मंडे को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने फैसला सुनाया। सजा के साथ ही कोर्ट ने सभी पर ख्0-ख्0 हजार रुपए का जुर्माना भी ठोका है। सीबीआई ने दोषियों के लिए फांसी की सजा मांगी थी। दोष सिद्ध होने के बाद शनिवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सजा का दिन तय होने के बाद एक तरफ जहां पुलिस कर्मियों के तमाम परिजन व जानकार कोर्ट कैंपस में मौजूद थे तो दूसरी ओर रणवीर के पिता रंविद्र सिंह भी सजा के एलान का इंतजार करते रहे।
बढ़ती रही धड़कने
तीस हजारी कोर्ट ने सजा के लिए सुबह के क्क् बजे का समय तय कर रखा था। इससे पहले शनिवार को कोर्ट ने सभी आरोपी पुलिस कर्मियों पर दोष सिद्ध करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को जैसे-जैसे घड़ी की सुईयां आगे बढ़ती गई पुलिस कर्मियों के साथ ही उनके परिजनों के दिल की धड़कन भी बढ़ती गई। उन्हें उम्मीद थी कि दोष सिद्ध होने के बावजूद कोर्ट सजा में कुछ ना कुछ रियायत जरूर करेगा, लेकिन जैसे ही सजा का एलान हुआ उनकी उम्मीदें टूट गई। हां, जसपाल सिंह गुंसाई के परिजन ने राहत की सांस जरूर ली। गुंसाई को कोर्ट ने रिहा कर दिया। साक्ष्य मिटाने और गलत दस्तावेज तैयार करने में जो सजा मिलती है वह पहले ही जेल में रहकर काट चुका था।
इन्हें मिली आजीवन कारवास की सजा
संतोष कुमार जायसवाल
नितीन चौहान
जीडी भट्ट
नीरज यादव
चंद्रमोहन सिंह रावत
राजेश बिष्ट
अजित सिंह
सतबीर सिंह
नागेंद्र राठी
सुनिल सैनी
चंद्रपाल
सौरभ नौटियाल
विकास चंद्र बलूनी
संजय कुमार
मनोज रावत
इंद्रभान सिंह
मोहन सिंह राणा
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आसान नहीं होगी हाईकोर्ट की राह
सजा पाने वाले पुलिस कर्मियों के परिजन हाईकोर्ट जाने की बात कर रहे हैं, लेकिन माना यही जा रहा है कि वहां की राह आसान नहीं होगी। हाईकोर्ट भी ऐसे संगीन मामलों में लोअर कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का सम्मान करता है। इसके अलावा एनकाउंटर का यह मामला रेअर ऑफ द रेअरेस्ट केस में गिना जाता है। वैसे भी मुकदमा लड़ते-लड़ते पुलिस कर्मियों के परिजन की कमर टूट गई है। उनकी आर्थिक स्थिती काफी बुरी है। ऐसे में केवल अपने दम पर उनका केस हाईकोर्ट तक ले जाना आसान नहीं माना जा रहा। सूत्रों की मानें तो तीस हजारी कोर्ट में चली लंबी सुनवाई में राज्य के कुछ पुलिस ऑफिसर्स व कई पुलिस कर्मियों ने आर्थिक मदद की थी। अब एक बार फिर से वे आर्थिक रूप से सहायता कर पाएंगे कहना मुश्किल है।