-पांच खिलाड़ी भी हासिल नहीं कर पाते मुकाम

-सिटी में 32 टीमें 'ए' और 'सुपर' डिवीजन की

-100 टीमें हैं 'बी' डिवीजन लीग की खेलती हैं मैच

असल फुटबॉलर कोई बन ही नहीं पाता
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RANCHI :  रांची और 1800 फुटबॉलर, असंभव। हो सकता है कि शीर्षक पढ़ने के बाद आपकी भी यही प्रतिक्रिया रही होगी। लेकिन, यह सच है कि हर साल रांची में 1800 के आसपास फुटबॉल के खिलाड़ी तैयार होते हैं। सिटी के साथ ही आसपास के इलाकों, जैसे सिल्ली, मुरी, तमाड़, बुंडू आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फुटबॉल के खिलाड़ी निकलते हैं। कुछ को टाटा फुटबॉल एकेडमी में चांस मिल जाता है, तो कुछ सीसीएल, सीएमपीडीआई, मेकॉन जैसे लोक उपक्रमों से खेलकर अपने लिए जीविका का साधन जोड़ लेते हैं। लेकिन, असल फुटबॉलर कोई बन ही नहीं पाता। आज भी भारतीय टीम में रांची का एक भी खिलाड़ी मौजूद नहीं है। यहां तक कि इंडियन सुपर लीग में भी रांची के बदले जमशेदपुर की टीम मौजूद है, जिसमें स्थानीय खिलाडि़यों से ज्यादा पश्चिम बंगाल के प्रतिष्ठित क्लब मोहन बगान के खिलाड़ी शामिल हैं।

अस्सी का दशक था स्वर्णिम
रांची में अस्सी के दशक को फुटबॉल के स्वर्णिम काल के रूप में याद किया जाता है। प्रभाकर मिश्रा और तरुण घोष जैसे एक से बढ़कर एक उम्दा खिलाडि़यों की मौजूदगी किसी भी टूर्नामेंट में चार चांद लगा देती थी। सिटी में फुटबॉल के खिलाड़ी दिनों-दिन बढ़ते चले गये, पर एक्सिलेंस पर ध्यान घटता चला गया। आज स्थिति यह है कि शहर में खिलाडि़यों की तो कोई कमी नहीं, लेकिन एक भी टीम ऐसी नहीं, जिसे लेकर नेशनल लेवल पर चर्चा हो। इसके पीछे कारण यह है कि खिलाडि़यों ने अपना ध्यान इस खेल के माध्यम से कमाई पर ज्यादा लगा दिया है। अधिकतर खिलाड़ी स्थानीय फुटबॉल टूर्नामेंट में भाग लेकर पैसे कमाने के टार्गेट को अचीव करना चाहते हैं। रांची एवं आसपास इन दिनों जितने फुटबॉल टूर्नामेंट होते हैं, उनमें फटाफट पैसे बन जाते हैं। फाइनल जीतनेवाली टीम को 50-60 हजार रुपए और कहीं-कहीं दो-दो खस्सी भी मिलते हैं। टूर्नामेंट जीतने से हुई आमदनी खिलाडि़यों और कोच के अलावा अन्य स्टाफ में बांट दी जाती है। यही वजह है कि खिलाडि़यों की प्रतिभा सिमट कर रह जा रही है।

रांची में 132 टीमें खेलती हैं डिवीजन लीग
रांची में 132 टीमें तीन स्तरीय डिवीजन लीग मैच खेलती हैं। इसमें ए डिवीजन में 16, सुपर डिवीजन में 16 और करीब 100 टीमें बी डिवीजन लीग मैच खेलती हैं। इनमें खेलने वाले खिलाडि़यों की संख्या करीब 1800 के आसपास पहुंचती है। विभिन्न स्कूलों में तो खिलाडि़यों की संख्या अनगिनत है। किसी स्कूल में 40, तो किसी में 50 स्टूडेंट्स खेलते हैं। इन सबके बावजूद रांची में बेहतर प्रदर्शन करनेवाले प्लेयर्स नहीं टिकते।