कभी खाली नहीं दिखता मोरहाबादी मैदान

अभियान : कहां सांस ले शहर

RANCHI (12 May) : दस साल पहले तक सिटी में खेल के मैदानों की कोई कमी नहीं थी। बच्चे सुबह सवेरे उठ कर इन मैदानों में खेलने जाते थे। लेकिन, अब स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। खेल के मैदानों को धीरे-धीरे पार्क या मेला ग्राउंड में तब्दील कर दिया जा रहा है। जो मैदान बचे हैं, वहां भी आए दिन कोई न कोई आयोजन होता रहता है, जिससे बच्चे खेलने से महरूम हो रहे हैं। 'दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट' ने शहर के सिकुड़ते-सिमटते मैदानों का जायजा लिया। इसी कड़ी में प्रस्तुत है मोरहाबादी मैदान के मेला स्थल बनने की कहानी :

पंद्रह दिनों का मेला, महीने भर का इंगेजमेंट

सिटी का ऐतिहासिक मोरहाबादी मैदान कभी खिलाडि़यों का मक्का कहा जाता था। एक साथ दस-दस टीमों के बच्चे इसी मैदान में क्रिकेट और फुटबॉल खेलते नजर आते। ख्भ् एकड़ से भी ज्यादा बड़े इस मैदान में कभी खिलाडि़यों को एक-दूसरे से परेशानी नहीं होती थी। अब हालत यह है कि इसके बड़े हिस्से में आये दिन कोई न कोई मेला लगा दिया जाता है। हर मेला दस से पंद्रह दिन चलता है, जिसके लिए दस दिन पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। मैदान को चारों ओर से घेर कर विशाल संरचना खड़ी की जाती है। इसके बाद जब मेला खत्म होता है, तो उसे हटाने में भी दस दिन का वक्त लग जाता है। इस तरह एक मेले के आयोजन के कारण एक महीने से भी ज्यादा समय तक मैदान इंगेज रहता है। इस दौरान खिलाडि़यों को दूसरे मैदान का मुंह देखना पड़ता है।

साल भर में लगते हैं आठ मेले

मोरहाबादी मैदान में औसतन हर साल आठ मेलों का आयोजन होता है। इस हिसाब से ख्00 दिन तक मैदान में टेंट लगा कर घेराबंदी कर दी जाती है। कुछ मेले तो ख्0 दिन तक चलते हैं। उन्हें ज्यादा जगह की जरूरत होती है, तो पूरा फील्ड ही ढंक जाता है। बाकी बचे स्पेस में पार्किग की व्यवस्था कर दी जाती है, जिससे खेलने के लिए तीन डिसमिल जमीन भी नहीं बचती। मोरहाबादी में खेल के साथ-साथ एक पुरानी परंपरा रही है ड्राइविंग सीखने की। सुबह-सेवेरे इस मैदान में भारी संख्या में लोग ड्राइविंग सीखने आते हैं। मेला लगने के दौरान ड्राइविंग लर्नर्स को भी सड़क पर ही खुद को 'निखारना' पड़ता है। यह कई बार खतरनाक भी साबित होता है। हाल ही में एक कार डिवाइडर से टकराकर पलट गई थी, जिसमें सवार चार लोग घायल हुए थे

कोट

कभी हमने भी मोरहाबादी मैदान में मैच खेले थे। तब जगह की कोई कमी नहीं थी। दस साल पहले तक इतने मेले नहीं लगते थे। अब तो मैदान खोजना पड़ता है।

दिल हुसैन

रांची का मोरहाबादी मैदान एकमात्र ऐसी जगह है, जहां क्रिकेटर्स को खेलने में आनंद आता है। इन दिनों वहां खेलना संभव ही नहीं है। मेले से मैदान ि1घर गया है।

योगेंद्र नारायण

मेलों के आयोजन के लिए कोई ऐसी जगह निधार्रित होनी चाहिए, जहां खिलाड़ी न खेलते हों। ऐसे आयोजनों के लिए होटवार का खेलगांव बेहतर जगह है।

अरश्ाद अंसारी

खेलने की जगह धीरे-धीरे कम होती जा रही है। आम तौर पर सिटी के बच्चे मोरहाबादी मैदान में खेलने जाते थे, लेकिन अब वहां खेल से ज्यादा मेले लग रहे हैं।

किशन कुमार