रणदीप कहते हैं कि उनकी और नसीर साहब की दोस्ती 'मानसून वेडिंग' के दिनों से चली आ रही है. 'मानसून वेडिंग' साल 2001 में रिलीज़ हुई थी लेकिन रणदीप को आज भी नसीर साहब के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद है.

रणदीप कहते हैं, ''जब मैंने पहली बार नसीर साहब को देखा तो ऐसा लगा कि मैं किसी भगवान को देख रहा हूं. वो कमरे में बैठे थे. मैं चुप-चाप जा कर एक कोने में खड़ा हो गया और अपनी लाइनों की रिहर्सल करने लगा. चाय-ब्रेक के वक़्त नसीर साहब ने मुझसे बातचीत की और साथ ही मुझसे दोस्ती भी कर ली.''

अपनी दोस्ती के बारे में रणदीप कहते हैं, ''तब से हमारी दोस्ती है. जब मैं मुंबई गया तो मैं सीधे नसीर साहब के पास पहुंचा और मैंने गिड़गिड़ाते हुए उनसे काम मांगा. उन्होंने बड़े ही हिचकिचाते हुए मुझे अपने थिएटर ग्रुप में काम दिया था. बस तब से मैं उनके साथ थिएटर कर रहा हूं. मंच पर वो मेरे सह-कलाकार भी रहे हैं. मैंने उनके निर्देशन तले भी काम किया है.''

जॉन डे

मैं नसीर साहब के सामने गिड़गिड़ाया: रणदीप

'जॉन डे' के निर्देशक हैं अहिशोर सोलोमन. बतौर निर्देशक ये सोलोमन की पहली फिल्म है.

दिल्ली में अपनी फ़िल्म 'जॉन डे' को प्रोमोट करने पहुंचे रणदीप कहते हैं कि उन्होंने इस फ़िल्म के लिए हां इसलिए की क्योंकि फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह हैं.

रणदीप कहते हैं, ''फ़िल्म के निर्देशक अहिशोर सोलोमन ने जब मुझे फ़िल्म की कहानी दी तो साथ ही उन्होंने मुझसे ये भी कहा कि नसीर साहब 'जॉन डे' के लिए पहले ही हां कर चुके हैं. मैंने स्क्रिप्ट तुरंत पढ़ी और सोलोमन को हामी भर दी. इस फ़िल्म का हिस्सा होना मेरे लिए गर्व की बात है.''

वैसे जहां तक बात है गर्व की तो गर्व तो रणदीप को इस बात पर भी होता होगा कि फ़िल्मों में इतने नकारात्मक किरदार निभाने के बावजूद भी महिलाओं में उनकी अच्छी ख़ासी लोकप्रियता है.

फ़ीमेल फ़ैन्स

"जानता हं कि मेरी फ़िल्मों से मेरी जो एक छवि बन गई है लोग उसे बड़ी गंभीरता से लेते हैं. लेकिन लगता है कि लड़कियों को 'बैड बॉयज़' ज्यादा पसंद आते हैं. 'बैड बॉयज़' ज्यादा मज़ेदार जो होते हैं."

-रणदीप हूड्डा

रणदीप की कुछ महिला प्रशंसक तो ऐसी भी हैं जो उनके लिए कविताएं लिखती हैं उनके चित्र भी बनाती हैं. तो कैसा लगता है रणदीप को इतना प्यार पा कर.

बीबीसी को इस सवाल का जवाब देते हुए रणदीप कहते हैं, ''ये सब बातें सुन कर, जान कर मुझे बहुत अच्छा लगता है. लेकिन कभी कभी ये भी लगता है कि वो ये सब मेरे लिए नहीं किसी और के लिए कर रही हैं.''

परदे पर इतनी नकारात्मक छवि के बावजूद भी इतनी महिला प्रशंसक. ये तो कमाल की बात है. लेकिन ऐसा हुआ कैसे?

इस सवाल का जवाब बड़ी ही सहजता से देते हुए रणदीप कहते हैं, ''मैं जानता हं कि मेरी फ़िल्मों से मेरी जो एक छवि बन गई है लोग उसे बड़ी गंभीरता से लेते हैं. लेकिन लगता है कि लड़कियों को 'बैड बॉयज़' ज्यादा पसंद आते हैं. 'बैड बॉयज़' ज्यादा मज़ेदार जो होते हैं.''

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