इसका सीधा मतलब यह है कि बैंकों से लिए जाने वाले क़र्ज़ की ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं होता और आम आदमी को सस्ते क़र्ज़ के लिए इंतज़ार करना पड़ेगा.

रेपो दर यानी रिज़र्व बैंक जिस दर पर बैंकों को क़र्ज़ देता है, उनमें कोई बदलाव नहीं किया गया है और वह आठ प्रतिशत के स्तर पर बनी हुई है.

इसी तरह नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) भी चार प्रतिशत के स्तर पर बना हुआ है. बैंकों को अपनी जमा राशि का एक हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास रखना पड़ता है, जिसे सीआरआर कहा जाता है.

रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति में कहा है कि अगर महंगाई के मोर्चे पर सब कुछ योजना के मुताबिक़ चलता रहा तो मौद्रिक नीति में आगे सख्ती किए जाने का अनुमान नहीं है.

इससे उम्मीद जताई जा सकती है कि यहां आगे ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू हो सकता है.

चुनौतियां

'सस्ते क़र्ज़ के लिए करना होगा इंतज़ार'

रिज़र्व बैंक ने कहा है कि महंगाई के आंकड़े बताते हैं कि मांग पक्ष से दबाव अभी भी बना हुआ है.

खुदरा महंगाई फ़रवरी में लगातार तीसरे महीने घटी है, लेकिन इसके बावजूद फलों और दूध की क़ीमतों में तेज़ी बरक़रार है और सब्जियों की क़ीमतों में यहां से आगे और कमी होने की उम्मीद नहीं है.

दूसरी ओर 2014 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून को लेकर अनिश्चितता बरक़रार है और ऐसे में हो सकता है कि पिछले साल के दौरान कृषि क्षेत्र में जो सुधार देखा गया था, वो चालू साल में देखने को न मिले.

रिज़र्व बैंक ने वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान आर्थिक विकास दर के अनुमान को 5.6 प्रतिशत से घटाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया है.

केंद्रीय बैंक का कहना है कि वैश्विक मोर्चे पर दबाव अभी भी बरक़रार हैं, हालांकि सरकार के चालू खाता घाटे में कमी देखने को मिलेगी.

रिज़र्व बैंक ने कहा है कि अनिश्चित बाहरी मांग के चलते घरेलू अर्थव्यवस्था पर दबाव बना हुआ है. इसके साथ ही विदेशी पूंजी में उतार-चढ़ाव के जोखिम भी बने हुए हैं.

मौद्रिक नीति में कहा गया है कि रियल एस्टेट और परिवहन जैसे कुछ क्षेत्रों में सुधार के संकेतों के बावजूद औद्योगिक गतिविधियों में मंदी के चलते अर्थव्यवस्था को गति नहीं मिल पा रही है.

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