-प्रतियोगियों के बीच पहुंचकर आई नेक्स्ट ने जानी हकीकत

-तमाम कारण आए सामने, सिस्टम के रवैए को ज्यादा जिम्मेदार बताया

ALLAHABAD: यूपी पीसीएस प्री ख्0क्ब् का आयोजन इसी महीने की तीन तारीख को हुआ था। करीब ब्भ् फीसदी आवेदकों ने परीक्षा में शामिल होना जरूरी नहीं समझा। रविवार ख्ब् अगस्त को आईएएस प्री ख्0क्ब् का आयोजन हुआ। इसे छोड़ देने वालों की संख्या करीब ब्क् फीसदी थी। प्रदेश और देश की इन दो सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण परीक्षाओं से प्रतियोगी छात्रों की इस कदर बेरुखी ने कई सवाल खड़े कर दिए। सिस्टम के साथ सरकार सवालों के घेरे में आ गई। छात्र सवालों के घेरे में आ गए। आखिर क्यों हुआ ऐसा? यह जानने के लिए आई नेक्स्ट पहुंचा इन परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के बीच। बहस शुरू हुई तो तमाम व्यूज सामने आए

सबके बीच लग गई बोलने की होड़

आई नेक्स्ट की टीम ने आईएएस-पीसीएस के साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली संस्था दस्तक के साथ इस इश्यू पर छात्रों के बीच इस सवाल को रखा तो एक्सपर्ट डा। अतुल मिश्रा भी मौजूद थे। सवाल सुनते ही छात्रों में बहस शुरू हो गई। शबाना ने कहा कि यह ज्यादातर वे स्टूडेंट होते हैं जो सिर्फ यह सोचकर फॉर्म भर देते हैं कि चलो एक बार परीक्षा में शामिल होकर देखते हैं। ऐन वक्त पर उन्हें अपनी तैयारी का अंदाजा होता है तो वे परीक्षा छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझते हैं। उन्होंने कहा कि आयोग को फॉर्म भरने का मानक तय करते समय यह भी मेंशन कर देना चाहिए कि परीक्षा छोड़ने वालों के साथ कैसे पेश आएगा। तभी ऐसे लोग परीक्षा की गंभीरता को नजरअंदाज करने से बचेंगे। इससे आयोग के संसाधनों का भी अपव्यय बचेगा।

पहले ही बता दें परीक्षा कब होगी

चर्चा में यह मुद्दा जोर शोर से उठा कि यूपीपीएससी को यूपीएससी की तर्ज पर अपना परीक्षा कैलेंडर साल की शुरुआत में ही जारी कर देना चाहिए। ताकि छात्र आवेदन के साथ ही खुद को मेंटली प्रिपेयर कर ले कि किस तिथि पर उसे किस एग्जाम में शामिल होना है और इसी अनुसार वह अपनी तैयारी भी करे। यूपीपीएससी परीक्षा करीब आने पर बताता है कि परीक्षा कब होगी। ऐसे में कई बार होता है कि कई परीक्षाएं आपस में टकरा जाती हैं। इससे मजबूरन में कोई न कोई परीक्षा तो परीक्षार्थियों को छोड़नी ही होगी।

सभी जगह होने चाहिए परीक्षा केन्द्र

सुमैया के उपरोक्त तर्क से सहमति जताते हुए कमलेश बोले, चौंकाने वाली बात तो यह होती है कि जो परीक्षाएं टल जाती हैं, उनको लेकर भारी लापरवाही बरती जाती है। इन परीक्षाओं को भी सीरीयसली लेना चाहिए और परीक्षा की तैयारी में जुटे परीक्षार्थियों की मनोदशा को समझते हुए उन्हें परीक्षा की डेट से काफी पहले इसकी इन्फार्मेशन देनी चाहिए। मोहित कुमार पांडेय का तो कहना था कि राज्य विशेष की परीक्षाओं का आयोजन भी सेंट्रल लेवल की परीक्षाओं की तरह ही प्रत्येक राज्य में एग्जामिनेशन सेंटर बनाकर कराना चाहिए। ताकि परीक्षा केन्द्रों की दूरी परीक्षार्थियों के लिए रोड़ा न बने।

अटेम्ट कटे तो समझ आए परीक्षा का महत्व

नवनीत मिश्रा की राय थोड़ी जुदा थी। उन्होंने कहा कि आईएएस जैसी परीक्षा को कोई भी हल्के में न ले, इसके लिए अनिवार्य किया जाए कि जो परीक्षार्थी फॉर्म भरकर परीक्षा में नहीं बैठता उसका एक अटेम्ट कम कर दिया जाएगा। अभी सिविल सेवा की परीक्षा में जनरल कैटेगरी के अभ्यर्थियों के लिए नम्बर ऑफ अटेम्ट छह, ओबीसी के लिए नौ और एससी व एसटी के लिए अवसरों की कोई बाध्यता नहीं है। जनरल के लिए आयु सीमा तीस वर्ष, ओबीसी के लिए तैंतीस और एससी व एसटी के लिए फ्भ् वर्ष है।

कन्फ्यूजन बना बड़ा कारण

बहस को आगे बढ़ाते हुए कविता ने कहा कि इसके लिए सिस्टम और सरकार जिम्मेदार है। सरकार ने कहा कि वह सीसैट पैटर्न हटाने पर विचार कर रही है। इससे परीक्षा कैंसिल किए जाने की संभावना बन गई। विवेक ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह बड़ा मसला था। सरकार सी सैट से अंग्रेजी और हिंदी में ट्रांसलेशन को ईजी बनाने की बात कर रही थी। इससे छात्र रिलैक्स मोड में चले गए। वर्मा आयोग के गठन और इसे लेकर दिल्ली के साथ तमाम अन्य शहरों में आंदोलन ने कन्फ्यूजन क्रिएट कर दिया। मेरी नजर में यही वह सबसे बड़ा कारण था जिससे तैयारी डिस्टर्ब हुई और परीक्षार्थियों ने और कोई चारा समझ में न आने पर परीक्षा ही छोड़ देने का फैसला लिया।

ज्यादातर महिला अभ्यर्थियों के परीक्षा छोड़ने की बड़ी वजह परीक्षा केन्द्र तक के सफर में उन्हें होने वाली भारी असुविधा है। परीक्षा के दिन ट्रेन में पढ़े लिखे छात्र छात्राएं जानवर की तरह भरकर जाने को विवश होते हैं।

कविता पांडेय

परीक्षा से जुड़ी सभी संस्थाओं को आपस में ऐसा तालमेल डेवलप करना होगा, जिससे एक दूसरे को सभी परीक्षाओं की जानकारी हो। अफसोस की हमारे देश में ऐसा कोई सिस्टम ही नहीं है। सब अपनी ही बात करते हैं।

विवेक पांडेय

मुझे तो लगता है कि परीक्षा छोड़ने वालों की बड़ी संख्या कन्फ्यूजन के चलते थी। करीब दो महीने पहले से सब कुछ डिस्टर्ब चल रहा था। सीरियस परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए एक सप्ताह का डिस्टर्बेस मैटर करता है। यहां तो यह महीनों रहा। इसके लिए सिस्टम के साथ गवर्नमेंट भी कम जिम्मेदार नहीं है।

अरविन्द सिंह

लास्ट ऑवर्स में कोई चेंज नहीं होना चाहिए। चाहे वह पैटर्न का मामला हो या सब्जेक्ट का। जिसने तैयारी को इंग्लिश पर फोकस किया होगा उसे लास्ट में पता चलेगा कि इसके मा‌र्क्स जोड़े ही नहीं जाएंगे मेरिट में उसकी मनोदशा क्या रह जाएगी। यही बात सवालों के दूसरे पोर्शन पर भी लागू होती है।

मनोज यादव

एक नजर इधर भी

इलाहाबाद में क्म्,क्ख्ख् ने छोड़ी सिविल सेवा प्री परीक्षा।

तीन अगस्त को पूरे प्रदेश में हुई यूपीपीसीएस प्री में ब्भ् परसेंट (क्,7फ्,77क्) ने परीक्षा छोड़ दी थी।

-एसएससी, आरआरबी और आरआसी की परीक्षा छोड़ने वालों की भी बड़ी तादात