अयोध्या 
यहीं श्री राम का जन्म हुआ और बचपन बीता था ऐसा रामायण में कहा गया है। आज भी कई जगह ऐसे अवशेष मिलते हैं जो कहते हैं कि वास्तव में यहां ऐसा स्थान था। कहते हैं कि श्री राम ने अयोध्या की रक्षा का दायित्व अपने परम भक्त श्री हुनमान को सौंपा था और इसीलिए यहां हनुमानगढ़ी मंदिर बना और मानते हैं कि आज भी वहां हनुमान वास करते हैं। ऐसे बेहद प्राचीन कालीन अवशेष यहां मिलते रहते हैं।
  
श्रृंगवेरपुर
कहते हैं अपने बनवास के दौरान यहीं पर केवटराज गुह का राज्य था और श्रीराम ने उनसे नाव मांगी ताकि वो नदी पार कर सकें। उत्तर-प्रदेश के इलाहाबाद जिले की तहसील सोरॉव में, इलाहाबाद-लखनऊ मार्ग पर मुख्य रोड से तीन किलोमीटर अंदर गंगानदी के किनारे आज भी सिगरौर नाम की जगह है। जिसे श्रृंगवेरपुर का ही बिगड़ा नाम कहा जाता है। इसका एक प्रमाण ये भी दिया जाता है कि इलाहाबाद में ही सिगरौर के पास नदी के दूसरी ओर कुरई नाम की जगह है जहां राम उतरे थे। 

चित्रकूट 
कुरई से थोड़ी दूर चित्रकूट है जहां राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पहुंचे थे और यहीं पर वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम और भरतकूप जैसे स्थानों के अवशेष मिलते हैं जिनका जिक्र रामायण में आया है। 
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सिद्धा पर्वत 
यहीं पर एक पर्वत है जिसके बारे में कहा जाता है कि यही वो सिद्धा पर्वत है जिसका जिक्र रामायण में है।

अत्रि ऋषि आश्रम 
चित्रकूट के आगे सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम भी है। जहां राम के आने की बात कही जाती है। 

दंडकारण्य 
इसके बाद राम आगे बढ़ गए थे और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में अपना आश्रय बनाया था जिसे दंडकारण्य कहा जाता था। आजकल ये इलाका नक्सलवाद से प्रभावित है। यहां पर ऐसे सबूतों की भरमार है जो साबित करते हैं कि यहां कभी राम आये थे। 
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पंचवटी 
वर्तमान नासिक में श्रीराम का पंचवटी आश्रम बताया जाता है जहां स्वर्ण मृग बन कर मारीच आया था। इसी स्थान पर अगस्त्य ऋषि का आश्रम भी था। इस बात के भी कई प्रमाणों के मिलने का दावा किया जाता है। 

सर्वतीर्थ
नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में आज भी सर्वतीर्थ नाम का वो स्थान मौजूद बताया जाता है जहां से सीता का रावण ने हरण किया था।  

शबरी का स्थान 
केरल का प्रसिद्ध सबरिमलय मंदिर शबरी को समर्पित माना जाता है। ये वही स्थान है जहां श्री राम के शबरी नाम की अपनी भीलनी भक्त से मिलने की बात कही जाती है। शबरी का असली नाम श्रमणा बताया जाता है। 
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रामसेतु 
अंत में सबसे बड़ा प्रमाण तो राम सेतु ही है जिसके अवशेष खोजने का दावा नासा द्वारा भी किया गया था ऐसा माना जाता है। इसके साथ ही इस जगह पर पानी में तैरने वाले पत्थर भी मिले हैं जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि राम के समय में इन्हीं तैरने वाले पत्थरों से श्रीलंका तक जाने वाला पुल बनाया गया था। 
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श्रृंगवेरपुर

कहते हैं अपने बनवास के दौरान यहीं पर केवटराज गुह का राज्य था और श्रीराम ने उनसे नाव मांगी ताकि वो नदी पार कर सकें। उत्तर-प्रदेश के इलाहाबाद जिले की तहसील सोरॉव में, इलाहाबाद-लखनऊ मार्ग पर मुख्य रोड से तीन किलोमीटर अंदर गंगानदी के किनारे आज भी सिगरौर नाम की जगह है। जिसे श्रृंगवेरपुर का ही बिगड़ा नाम कहा जाता है। इसका एक प्रमाण ये भी दिया जाता है कि इलाहाबाद में ही सिगरौर के पास नदी के दूसरी ओर कुरई नाम की जगह है जहां राम उतरे थे। 

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कुरई से थोड़ी दूर चित्रकूट है जहां राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पहुंचे थे और यहीं पर वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम और भरतकूप जैसे स्थानों के अवशेष मिलते हैं जिनका जिक्र रामायण में आया है। 

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चित्रकूट के आगे सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम भी है। जहां राम के आने की बात कही जाती है। 

 

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इसके बाद राम आगे बढ़ गए थे और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में अपना आश्रय बनाया था जिसे दंडकारण्य कहा जाता था। आजकल ये इलाका नक्सलवाद से प्रभावित है। यहां पर ऐसे सबूतों की भरमार है जो साबित करते हैं कि यहां कभी राम आये थे। 

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नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में आज भी सर्वतीर्थ नाम का वो स्थान मौजूद बताया जाता है जहां से सीता का रावण ने हरण किया था।  

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