- 70 फीसद शिकायतें नोएडा की,अफसरों का दावा, नोएडा में गिरी इमारत का रजिस्ट्रेशन नहीं

- 156 करोड़ रुपये बायर्स को लौटाने का आदेश दे चुका रेरा

- जुर्माना और सजा का अधिकार नहीं, अध्यक्ष का भी इंतजार

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW : ग्रेटर नोएडा के बाद गाजियाबाद में रविवार को हुए हादसे से साफ हो गया है कि एनसीआर का यह बेशकीमती इलाका अवैध निर्माण कार्यो की वजह से राज्य सरकार की मुसीबत का सबब बन चुका है। साथ ही रेरा के प्रभावशाली न होने की वजह से समय रहते ऐसे हादसों की रोकथाम के प्रयास नहीं हो सके है। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि यूपी रियल एस्टेट रेगुलेटिंग अथॉरिटी (रेरा)) में अब तक दर्ज की गयी शिकायतों में से 70 फीसद नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद की हैं। इनमें से ज्यादातर शिकायतें अवैध निर्माण, घटिया सामग्री का इस्तेमाल और प्रोजेक्ट्स में देरी को लेकर दर्ज करायी गयी हैं। यूं कहे कि जनता तो बाकायदा एक हजार रुपये फीस जमा कर शिकायतें दर्ज करा रही है पर कहीं न कहीं नौकरशाही ही रेरा को ज्यादा पावरफुल बनाने को संजीदा नहीं है। इसका नतीजा इन हादसों के रूप में सामने आया है।

रेरा में रजिस्टर्ड नहीं था बिल्डिंग प्रोजेक्ट

ग्रेटर नोएडा के बिसरख थाना क्षेत्र में 17 जुलाई को निर्माणाधीन इमारत के बगल की इमारत पर गिरने के बाद सरकारी मशीनरी में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में रेरा में भी तलाशा जाने लगा कि इस बिल्डिंग का रजिस्ट्रेशन हुआ था कि नहीं। साथ ही इसके बारे में किसी ने शिकायत तो नहीं दर्ज करायी थी। इस बाबत रेरा के अफसरों का दावा है कि गैरकानूनी तरीके से बन रही इस बिल्डिंग का रजिस्ट्रेशन उनके पोर्टल पर नहीं कराया गया था। अब इसे रेरा की कमजोरी ही माना जाएगा कि कई लोगों की मौत का सबब बनी इस इमारत का रजिस्ट्रेशन कराने की बिल्डर ने जहमत तक नहीं उठाई। इसी तरह रविवार को गाजियाबाद में हुए हादसे ने भी रेरा की पोल खोल कर रख दी है। दरअसल रेरा एक्ट में जुर्माना या सजा का प्रावधान नहीं है जिसका फायदा ऐसे बिल्डर उठा रहे हैं जो कम कीमत में फ्लैट बनाकर बेचते हैं और ज्यादा मुनाफा कमाने को घटिया निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करते है। फिलहाल इस घटना के बाद रेरा के अफसर भी सक्रिय हो गये हैं और नोएडा और ग्रेटर नोएडा से आई शिकायतों की नये सिरे से गहन जांच करायी जा रही है।

अध्यक्ष का इंतजार

रेरा अथॉरिटी बनने के बावजूद अभी तक इसमें पूर्णकालिक अध्यक्ष की तैनाती नहीं हो सकी है लिहाजा प्रोजेक्ट्स की जांच और शिकायतों की पड़ताल का काम सुस्त गति से चल रहा है। विगत 15 जुलाई तक रेरा को पूरी तरह क्रियाशील करने की कवायद तो की गयी पर इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका हालांकि ग्रेटर नोएडा के हादसे के बाद शासन द्वारा आनन-फानन में 32 पद सृजित किए गये है। पूर्व मुख्य सचिव राजीव कुमार को रेरा का अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है पर इस बाबत राज्य सरकार ने अभी कोई निर्णय नहीं लिया है। फिलहाल प्रमुख सचिव आवास ही इसके कार्यकारी अध्यक्ष हैं।

कोट

रेरा में आ रही शिकायतों में से करीब 70 फीसद एनसीआर के बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स की हैं। मंगलवार को जो इमारत ध्वस्त हुई, उसका प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन रेरा में नहीं कराया गया था। फिलहाल रेरा एक्ट में जुर्माना या सजा का कोई प्रावधान नहीं है।

अबरार अहमद

सचिव, यूपी रेरा

फैक्ट फाइल

- 2436 प्रोजेक्ट्स का अब तक रेरा पोर्टल पर हो चुका है रजिस्ट्रेशन

- 4862 शिकायतें अब तक आ चुकी हैं बिल्डर्स के खिलाफ

- 1666 शिकायतों का अब तक निस्तारण कर चुकी है रेरा

- 592 शिकायतों में रेरा ने बिल्डर्स को दिए बॉयर्स का पैसा लौटाने के निर्देश

- 156 करोड़ रुपये वापस करने के आदेश जारी कर चुका है रेरा

- 40 से ज्यादा मामलों में अब तक 1.5 करोड़ की हो चुकी है रिकवरी