- दोपहर करीब दो बजे से लेकर शाम साढ़े चार बजे तक चलता रहा सक्सेजफुल रेस्क्यू

- रेस्क्यू प्लेस से करीब दो सौ मीटर की दूरी पर बनाया गया था सुरक्षा घेरा, फैमिली संग पहुंचे कमिश्नर

BAREILLY:

रबड़ फैक्ट्री वाले बाघ को सुरक्षित पकड़ने के लिए ऑपरेशन सुबह 7 बजे शुरू हो गया था। पूर्व निर्धारित रेस्क्यू प्रोग्राम के तहत टीमों ने मोर्चा संभाल लिया था। सीसीटीवी फुटेज से बाघ के मूवमेंट की लोकेशन ली गई। बेडरूम से निकलकर वह बेट यानि चारा को खाकर सिटिंग रूम पहुंचा। वहां थोड़ी देर आराम करने के बाद जैसे ही बाघ बेडरूम में वापस आया। टीम ने जाल बिछाना शुरू कर दिया। दोपहर करीब दो बजे बाघ को पहला ट्रेंक्युलाइजर का डॉट यानि शूट दिया। करीब 20 मिनट बाद फिर से उसे एक और टॉप अप शॉट दिया, जिसके बाद वह बेहोश हुआ और टीम ने उसे पकड़ने में बड़ी कामयाबी हासिल की।

फायर बॉक्स नंबर 6 थ्ा बेडरूम

बाघ ने रबड़ फैक्ट्री में अपना बेडरूम फायर बॉक्स नंबर 6 को बनाया था। जिसमें भारी तादाद में लगाई गई मशीनों के नीचे खाली पड़ी जगह में वह आराम करता था। दोपहर चारा खाने के बाद वह यहीं पहुंचा था। उस दौरान डब्ल्यूटीआई की टीम व फॉरेस्ट ऑफिसर उसे ट्रेस करते रहे। बेडरूम में पहुंचने के बाद तत्काल सभी टीमें हरकत में आई। उन्होंने खिड़की से अंदर झांककर देखा तो बाघ मौजूद दिखा। बॉक्स से बाहर निकलने के सभी 5 स्थानों को बंद कर दिया। इसके बाद उसे दोबारा देखा तो वह नजर नहीं आया। बॉक्स के ऊपर चढ़कर देखा तो वह दिखा। जहां से टीम मेंबर वेटरिनरी डॉ। रीतिका ने मौका पाकर पहला डॉट दिया। जिसके बाद 20 मिनट तक इंतजार किया लेकिन जब वह बेहोश नहीं हुआ तो दूसरा डॉट दिया तो वह बेहोश हुआ।

खींचकर निकाला बाहर

बॉक्स के नीचे खाली पड़ी जमीन से बेहोश हुए बाघ को बाहर निकालना भी किसी चुनौती से कम नहीं था। काफी सघन बॉक्स से स्ट्रेचर पर लिटाकर उसे बाहर निकालना मुनासिब नहीं था। ऐसे में क्लॉथ स्ट्रेचर का प्रयोग किया गया। जिस पर बाघ को लिटाने में करीब 8 लोगों को मशक्कत करनी पड़ी। करीब ढाई फीट की ऊंचाई के तहखाने जैसे खाली स्थान से स्ट्रेचर को रस्सियों से बांधकर बाघ को ढकेलते और खींचते बाहर निकाला। ताकि बाघ सुरक्षित तरीके से पकड़ा जा सके। जिसमें टीम को कामयाबी मिली।

हुआ हेल्थ चेकअप

बाघ को रस्सियों से बांधकर बगैर नुकसान पहुंचाए बाहर निकालने के बाद डब्ल्यूटीआई की टीम ने उसका मेडिकल चेकअप किया। जिसमें हाइट, वेट, बदन पर घाव समेत उसकी हार्ट बीट और ब्लड चेकअप हुआ। पंजा में घाव को साफ किया, जिसके बाद सब कुछ नॉर्मल पाए जाने के बाद उसे पिंजरे में कैद करने की प्रक्रिया शुरू हुई। बेहोश बाघ को पिंजरे में कैद करने के बाद टीम ने राहत की सांस ली। और एक दूजे को सक्सेजफुल रेस्क्यू की बधाई दी। शाम करीब साढ़े चार बजे कैद में आए बाघ को रबड़ फैक्ट्री से सीबी गंज फॉरेस्ट ऑफिस लाया गया। जिसके बाद रिपोर्ट के आधार पर उसे लखनऊ जू में रखने का निर्णय लेने के बाद रवाना कर दिया गया।

परिवार संग पहुंचते रहे अधिकारी

बाघ को पकड़े जाने की सूचना मिलते ही प्रशासन के अधिकारी मौके पर परिवार संग पहुंचे। कमिश्नर डॉ। पीवी जगनमोहन पत्‍‌नी और बेटी के साथ रबड़ फैक्ट्री पहुंचे। उन्होंने डीएफओ भारत लाल के साथ रेस्क्यू एरिया में कदम रखने से पहले पूरी जानकारी ली। मिली सूचना के मुताबिक अंदर पहुंचकर उन्होंने चीफ कंजर्वेटर व टीम को सराहा। साथ ही, फैमिली को बेहोश बाघ के साथ पिक्स क्लिक की।

पिक्स क्लिक करने का क्रेज

बाघ को पूरी तरह कैद करने में सफलता हासिल करने के बाद फॉरेस्ट ऑफिसर्स ने मौजूद अन्य कर्मियों को अंदर बुला लिया। जिसके बाद शुरू हुआ पिक्स क्लिक करने का सिलसिला। जिसके लिए मौजूद अधिकारी मना करते रहे लेकिन किसी ने एक न सुनी। पिंजरे के एक छोटे से छेद से लोग बाघ को निहारते और पिक्स क्लिक करते रहे। बाघ को पकड़े जाने की सूचना से वहां फतेहगंज पश्चिमी के निवासी और अहलादपुर के निवासी पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया।

डरा देती थी हल्की सी सरसराहट

पिछले माह भर से रेस्क्यू मिशन में शामिल माधव सिंह व मौजूद अन्य लोगों ने गुजरे हुए दिनों को साझा किया। बताया कि दिन में खिली धूप और दूर तक का नजारा दिखने की वजह से हल्की राहत रहती थी। डर कम होता था, लेकिन जैसे ही रात गहराने लगती थी हल्की सी आहट से धड़कनें थम जाती थीं। सूखे पत्तों पर किसी भी जानवर या इंसान के चलने से भी हुई आहट समूची टीम को खौफ से भर देती थी। पिछले 5 दिनों से जब सीसीटीवी फुटेज से बाघ का पूरा मूवमेंट नोट कर लिया गया तब कहीं राहत का अहसास हुआ। बताया कि पकड़े जाने की सूचना पर भी तत्काल यकीन नहीं हुआ।

फतेहगंज में फतेह इसलिए नाम 'फतेह'

रेस्क्यू के बाद बाघ को सुरक्षित पकड़ने के बाद देर शाम बाघ का नियमानुसार नामकरण संस्कार किया गया। चीफ कंजर्वेटर पीपी सिंह ने बताया कि बाघ को फतेहगंज पश्चिमी में बगैर बाघ को नुकसान पहुंचाए उसे सुरक्षित और स्वस्थ हालात में पकड़ा गया। ऐसे में सभी टीम मेंबर्स ने मिलकर बाघ के कई नामों में से 'फतेह' नाम पर मुहर लगाई। जिससे रेस्क्यू में फतेह और एरिया दोनों का नाम शामिल किया गया है।

इसलिए रबड़ फैक्ट्री के बाहर नहीं गया

जानकारी देते हुए चीफ कंजर्वेटर ने बताया कि बाघ के लिए रबड़ फैक्ट्री की जगह सूटेबल थी। बाघ को जंगल में एरिया के मुताबिक बेडरूम, ड्राइंग रूम और सिटिंग रूम चाहिए होता है। जो वहां मौजूद थी। इसके बाद उसे बेट यानि चारा चाहिए। जो वहां मुफीद था। छोटे-छोटे जानवरों के अलावा टीम द्वारा दिया गया बेट उसके लिए पर्याप्त था। ऐसे में उसने रबड़ फैक्ट्री के बाहर कदम नहीं रखा।

बाघ को पकड़ने का रेस्क्यू मिशन सक्सेजफुल रहा। टीम के सभी मेंबर्स ने अपना पूरा सहयोग दिया। देर शाम बाघ को लखनऊ जू रवाना कर दिया गया।

पीपी सिंह, चीफ कंजर्वेटर

सीसीटीवी फुटेज के मुताबिक रिकॉर्ड हुई बाघ की मूवमेंट से उसे ट्रेस करने के बाद मिशन शुरू किया गया। सक्सेजफुल मिशन में हर किसी का सहयोग रहा।

प्रेमचंद पांडेय, टीम हेड, डब्ल्यूटीआई

45 दिनों तक बाघ को पकड़ने के लिए सभी टीमें जुटी रहीं। पिछले 10 दिनों से ट्रैक हुई मूवमेंट के आधार पर योजनाबद्ध तरीके से बाघ को कपड़ा गया।

भारत लाल, डीएफओ